वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

साक्षात्कार

Dr. Rajesh Bhatia

एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध से मानव स्वास्थ्य को बड़ा ख़तरा

कई तरह के संक्रमणों से लोगों, जानवरों और पौधों की रक्षा करने में एंटी-माइक्रोबियल अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन उनका दुरुपयोग और हद से ज़्यादा इस्तेमाल उनके बेअसर होने की वजह भी बन सकता है.

पिछले कुछ वर्षों में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहां रोगाणुओं ने इन जीवनरक्षक दवाओं के विरुद्ध प्रतिरोध विकसित कर लिया और मरीज़ों पर दवाओं का असर होना बंद हो गया.

इसी एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 18 से 24 नवम्बर तक 'विश्व एंटीबायोटिक जागरूकता सप्ताह' मनाया जाता है. 

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UN Women/Arachika Kapoor

'ऑरेंज द वर्ल्ड' - महिलाओं के प्रति हिंसा का अंत करने की मुहिम

संयुक्त राष्ट्र की महिला संस्था (UN Women), भारत सरकार के गृह मंत्रालय और साझेदारों ने मिलकर शुक्रवार को भारत की राजधानी दिल्ली के सुल्तानपुर मैट्रो स्टेशन पर एक मैट्रो ट्रेन हरी झंडी दिखाकर रवाना की.

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा रोकने के लिए एकजुट होने के अभियान के तहत इस मैट्रो को नारंगी रंग के पोस्टरों से सजाया गया है.

'ऑरेंज द वर्ल्ड' मुहिम महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के उन्मूलन के अंतरराष्ट्रीय दिवस से शुरू होने वाले वैश्विक अभियान का हिस्सा है. ये दिवस 25 नवंबर को मनाया जाता है.

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UN India

भारत में 'छह प्रतिशत बच्चों को ही मिल रहा है पर्याप्त आहार'

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ़) और भारत सरकार ने पहले व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (CNNS) के नतीजे जारी किए हैं, जिनके अनुसार भारत में बाल कुपोषण कम करने में थोड़ी प्रगति तो हुई है, लेकिन अभी भी स्थिति में सुधार देखने के लिए प्रयास किए जाने की आवश्यकता है. 

यूनीसेफ़ में बाल विकास और पोषण विशेषज्ञ डॉक्टर गायत्री सिंह का कहना है कि बच्चों में कुपोषण के लिए ख़राब आर्थिक हालात के अलावा अन्य कारण भी ज़िम्मेदार हैं और महज़ छह फ़ीसदी बच्चों को ही पर्याप्त आहार मिल पा रहा है.

ऐसी स्थिति में सेहतमंद आहार सुनिश्चित करने में बच्चों के अभिभावकों की भी अहम भूमिका है.  

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प्रोफ़ेसर अभिजीत बैनर्जी

ग़रीबी मिटाने के नुस्ख़े आज़माते नोबेल विजेता अभिजीत बैनर्जी से बातचीत

वर्ष 2019 का अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार तीन विद्वानों को दिया गया है जिनके नाम हैं – एस्थर डफ़लो, अभिजीत बैनर्जी और माइकल क्रेमर. एस्थर डफ़लो औरअभिजीत बैनर्जी एमआईटी में अर्धशास्त्र के प्रोफ़ेसर हैं जबकि माइकल क्रेमर हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं.

इन तीनों अर्थशास्त्रियों ने ग़रीबी दूर करने के लिए भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश सहित अनेक देशों में ऐसे प्रयोग किए हैं - जिनके तहत ग़रीब लोगों को कुछ संपदा व कारोबार करने का कुछ प्रशिक्षण देकर उन्हें हालात सुधारने का मौक़ा दिया जाता है.

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Photo: World Bank/Curt Carnemark

महिला सरपंचों ने 'बदली अपने गांवों की तस्वीर'

निर्णय लेने की प्रक्रिया में महिलाओं की हिस्सेदारी ज़मीनी स्तर पर कितना बदलाव ला सकती है, इसकी एक बानगी दिखाई दी न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में, जिसमें दो महिला सरपंचों ने बताया कि किस तरह वे ग्रामीण क्षेत्रों में ज़रूरतमंदों तक बुनियादी सुविधाएँ पहुंचा रही हैं.

भारत में पंचायती राज व्यवस्था निचले स्तर पर लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का एक ऐसा मॉडल है जो टिकाऊ विकास एजेंडा के महत्वाकांक्षी सपने को साकार करने में अहम भूमिका निभा रहा है.

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UN News/Mehboob Khan

शांतिरक्षा अभियानों में 'महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने को तैयार है भारत'

हिंसा, संघर्ष और राजनीतिक अस्थिरता से होकर जो रास्ता शांति और सुरक्षा की ओर जाता है उस रास्ते में कई बड़े अवरोधों और मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. और पिछले सात दशकों से ऐसी ही चुनौतियों से पार पाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं ब्लू हेलमेट पहने संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षक.

अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा से जुड़ी इस अहम ज़िम्मेदारी को सफलतापूर्वक निभाने में भारत के शांतिरक्षकों ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है.

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UN News/Sachin Gaur

यूथ फ़ॉरम ने वैश्विक चुनौतियों से निपटने की उम्मीद बंधाई

हाल ही में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक एवं सामाजिक परिषद की आठवीं यूथ फ़ॉरम हुई जिसके ज़रिए टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने में युवाओं की आवाज़ों और सुझावों को शामिल करने का प्रयास हुआ.

दुनिया में इस समय 6 करोड़ से ज़्यादा युवा बेरोज़गार हैं. ऐसे में युवाओं को सशक्त बनाकर टिकाऊ विकास लक्ष्यों को पाने में काफ़ी हद तक सफलता मिल सकती है.

भारत से मृदुल उपाध्याय इस फ़ॉरम में शामिल हुए जो यूथ फॉर पीस इंटरनेशनल संगठन के संस्थापक हैं. यह संगठन टिकाऊ समाज और शांतिपूर्ण दुनिया के निर्माण में योगदान देने के लिए युवाओं की भूमिका को बढ़ावा देने में जुटा है.

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UN News/Sachin Gaur

महिलाओं के प्रति भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर केंद्रित यूएन 'संधि'

महिलाओं के प्रति भेदभाव को रोकने और उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने के लक्ष्य के साथ 1979 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक संधि पारित हुई. इसे 'Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women' (CEDAW) या 'महिलाओं के प्रति हर प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर संधि' का नाम दिया गया और यह 1981 में प्रभावी हो गई.

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UN News/Sachin Gaur

टिकाऊ विकास और महिला सशक्तिकरण में खादी की अहम भूमिका

खादी वस्त्र नहीं विचार है. भारत के स्वाधीनता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी का यह सूत्र वाक्य ग्रामीण आत्मनिर्भरता, विकेंद्रित विकास और आर्थिक स्वावलंबन का प्रतीक बन गया.

खादी का इतिहास यूं तो 100 साल से भी ज़्यादा पुराना है लेकिन वर्तमान दौर में भी इसका महत्व कायम है. टिकाऊ विकास, जलवायु परिवर्तन, रोज़गार सृजन और महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण सहित कई वैश्विक चुनौतियां हैं जिनसे निपटने में खादी का उपयोग और उसका प्रचार-प्रसार अहम भूमिका निभा सकता है.

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UNDP Eurasia/Tajikistan

'मेरे किसान मेरे साथ हैं'

कृषि एक ऐसा क्षेत्र हैं जहां महिलाएं बड़ी ज़िम्मेदारियां संभालती हैं लेकिन उनके योगदान को कई बार नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है. छोटे किसानों, विशेषकर महिला किसानों के सामने आने वाली मुश्किलों को कम करने की ललक के साथ और ऑरगैनिक या जैविक खेती के क्षेत्र में नई संभावनाओं से प्रेरित होकर नेहा उपाध्याय ने 'गुण ऑरगैनिक्स' नाम के एक एनजीओ की शुरुआत की.

उनकी टीम ने लद्दाख में महिला किसानों के साथ काम करना शुरू किया और पोषक तत्वों से परिपूर्ण कृषि उत्पादों को दिल्ली सहित अन्य शहरों में पहुंचाया.

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