यमन में वर्ष 2011 के शुरुआती महीनों में अस्थिरता शुरू होने के बाद से ही संयुक्त राष्ट्र वहाँ शांतिपूर्ण समाधान तलाश करने में यमन के लोगों की मदद करने के लिए सक्रिय रहा है. संयुक्त राष्ट्र ये काम अपने अनेक दफ़्तरों और प्रतिनिधियों के माध्यम से करता रहा है.
संयुक्त राष्ट्र ने सरकार और विपक्ष के बीच राजनैतिक बातचीत को संभव बनाने के लिए समर्थन और सहायता मुहैया कराई है. इस बातचीत के परिणामस्वरूप खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के प्रस्ताव दस्तावेज़ पर रियाद में 23 नवंबर 2011 को हस्ताक्षर किए गए. इसी दस्तावेज़ में इस शांति पहल को लागू करने की प्रक्रिया का भी ब्यौरा दिया गया है. संयुक्त राष्ट्र तभी से यमन में इस राजनैतिक पहल को लागू करने में सहायता मुहैया कराने के प्रयासों के तहत देश के सभी राजनैतिक गुटों के साथ सक्रिय रूप से संपर्क में रहा है.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतॉनियो गुटेरेश ने फ़रवरी 2018 में ब्रितानी राजनयिक मार्टिन ग्रिफ़िथ्स को यमन में अपना विशेष दूत नियुक्त किया. उनसे पहले इस्माइल औल्द शेख़ अहमद यमन के लिए महासचिव के विशेष दूत थे.
तीन वर्षों से भी ज़्यादा समय से जारी भीषण संघर्ष और युद्ध की वजह से यमन के लोगों को भारी तबाही और तकलीफ़ों का सामना करना पड़ रहा है. युद्ध के कारण देश में भारी आर्थिक नुक़सान भी हुआ है.
यमन में क़रीब दो करोड़ 22 लाख लोगों को किसी ना किसी रूप में मानवीय सहायता और सुरक्षा की ज़रूरत है.
क़रीब एक करोड़ 78 लाख लोगों के पास समुचित मात्रा में खाने-पीने का सामान उपलब्ध नहीं है. क़रीब 84 लाख लोगों के पास जीवित रहने के लिए भोजन सामग्री उपलब्ध नहीं है और ये लोग भुखमरी के कगार पर पहुँच चुके हैं.
क़रीब एक करोड़ 60 लाख लोग पीने के साफ़ पानी और साफ़-सफ़ाई के साधनों से वंचित हैं.
क़रीब एक करोड़ 64 लाख लोगों को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध नहीं हैं.
पूरे देश में लोगों की रोज़-मर्रा की ज़रूरतें पूरी नहीं हो रही हैं. क़रीब एक करोड़ 13 लाख लोगों को जीवित रहने के लिए किसी ना किसी रूप में सहायता की ज़रूरत है. इस संख्या में पिछले कुछ वर्षों के दौरान क़रीब दस लाख का इज़ाफ़ा हुआ है.
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