टिकाऊ विकास और महिला सशक्तिकरण में खादी की अहम भूमिका
खादी वस्त्र नहीं विचार है. भारत के स्वाधीनता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी का यह सूत्र वाक्य ग्रामीण आत्मनिर्भरता, विकेंद्रित विकास और आर्थिक स्वावलंबन का प्रतीक बन गया.
खादी का इतिहास यूं तो 100 साल से भी ज़्यादा पुराना है लेकिन वर्तमान दौर में भी इसका महत्व कायम है. टिकाऊ विकास, जलवायु परिवर्तन, रोज़गार सृजन और महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण सहित कई वैश्विक चुनौतियां हैं जिनसे निपटने में खादी का उपयोग और उसका प्रचार-प्रसार अहम भूमिका निभा सकता है.
न्यूयॉर्क में कमीशन ऑन स्टेट्स ऑफ वीमेन या महिलाओं की स्थिति पर आयोग के 63वें सत्र के दौरान आयोजित एक कार्यक्रम ‘खादी गोज़ ग्लोबल’ में ग्रामीण क्षेत्रों में ग़रीबी उन्मूलन और महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में खादी की भूमिका पर भी चर्चा हुई.
यूएन समाचार से बातचीत में ऑल इंडिया वीमेन्स एजुकेशन फंड एसोसिएशन (अखिल भारतीय महिला शिक्षा कोष संघ) की अध्यक्ष आशा चंद्रा ने बताया कि ग्रामीण भारत में महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में यह एक अनूठा आर्थिक मॉडल है. साथ ही मौजूदा दौर में खादी की प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए किए जा रहे प्रयासों पर भी जानकारी दी.