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WHO: पारम्परिक औषधि पर प्रथम वैश्विक शिखर सम्मेलन, भारत में

गुणवत्तापरक पारम्परिक औषधि के इस्तेमाल के ज़रिए, स्वास्थ्य देखभाल को दूरदराज़ के इलाक़ों में पहुँचाया जा सकता है, जहाँ स्वास्थ्य सेवाएँ सीमित है.
WHO/Ernest Ankomah
गुणवत्तापरक पारम्परिक औषधि के इस्तेमाल के ज़रिए, स्वास्थ्य देखभाल को दूरदराज़ के इलाक़ों में पहुँचाया जा सकता है, जहाँ स्वास्थ्य सेवाएँ सीमित है.

WHO: पारम्परिक औषधि पर प्रथम वैश्विक शिखर सम्मेलन, भारत में

स्वास्थ्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ‘प्रथम पारम्परिक औषधि वैश्विक शिखर सम्मेलन’, 17 और 18 अगस्त को गुजरात प्रदेश के गांधीनगर शहर में आयोजित कर रहा है. भारत सरकार की सह-मेज़बानी में आयोजित हो रहे इस सम्मेलन में, स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने और वैश्विक स्वास्थ्य व टिकाऊ विकास में प्रगति को आगे बढ़ाने में पारम्परिक, अनुपूरक (Complementary) और एकीकृत औषधि की भूमिका पर चर्चा होगी.

इस उच्च-स्तरीय सम्मेलन विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक व क्षेत्रीय निदेशक, G20 के स्वास्थ्य मंत्री और WHO के छह क्षेत्रों के देशों से उच्च-स्तरीय आमंत्रित सदस्य, पारम्परिक औषधि के विशेषज्ञ, स्वास्थ्यकर्मी और सिविल सोसायटी संगठनों के सदस्य शामिल होंगे.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के महानिदेशक डॉक्टर टैड्रॉस ऐडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा है कि पारम्परिक औषधि, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की प्राप्ति और स्वास्थ्य-सम्बन्धी वैश्विक लक्ष्यों को पूरा करने में एक अहम और उत्प्रेरक भूमिका निभा सकती है.

उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सम्बन्धी वैश्विक लक्ष्य, कोविड-19 महामारी के कारण आए व्यवधान से पहले ही पटरी से उतर गए थे.

सर्वजन के स्वास्थ्य की ख़ातिर

इस शिखर सम्मेलन में, वैज्ञानिक प्रगति के विस्तार और विश्व भर में लोगों के स्वास्थ्य व कल्याण के लिए पारम्परिक चिकित्सा के उपयोग से सम्बन्धित, साक्ष्य-आधारित ज्ञान में निहित सम्भावनाओं पर विचार विमर्श किया जाएगा.

वैज्ञानिकों और अन्य विशेषज्ञों के नेतृत्व में तकनीकी बातचीत, विभिन्न विषयों पर केन्द्रित रहेगी, जिनमें शोध, साक्ष्य और अधिगम; नीति, डेटा और नियंत्रण; नवाचार और डिजिटल स्वास्थ्य; साथ ही जैव विविधता, समता और आदिवासी लोगों का ज्ञान शामिल हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के महानिदेशक डॉक्टर टैड्रॉस ऐडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा है कि पारम्परिक चिकित्सा को, नवीनतम वैज्ञानिक साक्ष्यों पर सुरक्षित रूप में आधारित बनाकर, समुचित व प्रभावशाली रूप में स्वास्थ्य देखभाल की मुख्यधारा में शामिल करके, दुनिया भर में करोड़ों लोगों तक स्वास्थ्य देखभाल की उपलब्धता में मौजूद खाइयों को भरने में मदद मिल सकती है.

वर्तमान में, पारम्परिक और पूरक चिकित्सा, विश्व के अनेक हिस्सों में पूर्ण रूप से स्थापित है, जहाँ ये अनेक समुदायों की संस्कृति, स्वास्थ्य और बेहतर रहन-सहन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. कुछ देशों में तो ये, स्वास्थ्य क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण हिस्से का प्रतिनिधित्व करती है और दुनिया भर में करोड़ों लोगों के लिए, स्वास्थ्य देखभाल की उपलब्ध स्रोत केवल पारम्परिक चिकित्सा ही है.

पारम्परिक चिकित्सा क्षेत्र में विज्ञान को प्रोत्साहन

पारम्परिक चिकित्सा ने ना केवल उल्लेखनीय चिकित्सा प्रगति में अग्रणी भूमिका निभाई है, बल्कि इसमें भविष्य में आशाजनक प्रगति की सम्भावना निहित है.

नए शोध व अनुसन्धान, नवीन, सुरक्षित और चिकित्सकीय रूप से कुशल दवाओं की पहचान करने की क्षमता रखते हैं. साथ ही, स्वास्थ्य देखभाल और चिकित्सा में जीनोमिक्स, उन्नत निदान तकनीक और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकियाँ, पारम्परिक चिकित्सा पर ज्ञान के नए मोर्चे खोल सकती हैं.

विश्व भर में पारम्परिक चिकित्सा का उपयोग बढ़ने के मद्देनज़र, पारम्परिक उत्पादों और प्रक्रिया-आधारित उपचारों की सुरक्षा, प्रभावशीलता और गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करना, स्वास्थ्य अधिकारियों और आम जनता दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता है.

दुनिया भर में 80 फ़ीसदी आबादी द्वारा पारम्परिक औषधि व चिकित्सा पद्धति का इस्तेमाल किया जाता है.
WHO

केवल प्राकृतिक होने का मतलब, सुरक्षित नहीं होता, किसी चीज़ का उपयोग सदियों से किया जा रहा है, यह तथ्य भी, स्वतः रूप से उसकी प्रभावशीलता सुनिश्चित नहीं करता है. इसलिए, विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों के तहत पारम्परिक औषधियों की सिफ़ारिश के लिए, आवश्यक साक्ष्य प्रस्तुत करने की ख़ातिर, वैज्ञानिक पद्धति और प्रक्रियाओं को लागू किया जाना होगा.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के उष्णकटिबन्धीय (Tropical)) रोगों में अनुसन्धान और प्रशिक्षण के विशेष कार्यक्रम के निदेशक व स्वास्थ्य अनुसन्धान विभाग के निदेशक डॉक्टर जॉन रीडर का कहना है, “पारम्परिक चिकित्सा पर विज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए उन्हीं सटीक मानकों का पालन किया जाना चाहिए, जैसा कि स्वास्थ्य देखभाल के अन्य क्षेत्रों में होता है.”

गुजरात प्रदेस के गांधीनगर में होन वाले इस शिखर सम्मेलन में, पारम्परिक चिकित्सा के अनुसन्धान और मूल्यांकन का जायज़ा लिया जाएगा, जिनमें वैश्विक शोध एजेंडा विकसित करने और पारम्परिक चिकित्सा की प्राथमिकताओं के लिए प्रक्रियाँ भी शामिल होंगी. साथ ही इनमें, पारम्परिक चिकित्सा में 25 वर्षों के शोध पर आधारित चुनौतियाँ और अवसर भी शामिल होंगे.

पारम्परिक चिकित्सा और स्वास्थ्य पर केन्द्रित व्यवस्थित समीक्षाओं के नतीजे, नैदानिक ​​​​प्रभावशीलता को उजागर करने वाले साक्ष्य और कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा संचालित पारम्परिक चिकित्सा पर एक वैश्विक शोध मानचित्र भी, इस शिखर सम्मेलन में पेश किया जाएगा.

पारम्परिक चिकित्सा WHO वैश्विक सर्वेक्षण

शिखर सम्मेलन में, WHO पारम्परिक चिकित्सा पर तीसरे विश्वव्यापी सर्वेक्षण के प्रारम्भिक परिणाम प्रस्तुत भी किए जाएंगे. 

यह सर्वेक्षण विशेष रूप से, पारम्परिक और पूरक चिकित्सा के वित्तपोषण, आदिवासी जन की भलाई, गुणवत्ता आश्वासन, पारम्परिक चिकित्सा ज्ञान, जैव विविधता, व्यापार, एकीकरण, रोगी सुरक्षा और विभिन्न अन्य पहलुओं से सम्बन्धित सवालों को रेखांकित करता है.

पूर्व सर्वे वर्ष 2023 के अन्त में जारी किया जाएगा, पहले तो ऑनलाइन मंच पर और उसके बाद एक रिपोर्ट के रूप में. इसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवीन पारम्परिक चिकित्सा रणनीति 2025-2034 के विकास पर भी जानकारी दी जाएगी, जिसका अनुरोध विश्व स्वास्थ्य ऐसेम्बली ने, मई 2023 में किया था.