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भारत: विज्ञान के ज़रिए, 'पारम्परिक चिकित्सा पद्धति' के विस्तार की पुकार

वियतनाम में, बहुत से लोग, उपचार के लिए, परम्परागत औषधि का प्रयोग करते हैं, और उन औषधियों के 90 प्रतिशत तत्व, जंगलों से प्राप्त होते हैं.
UN-REDD/Leona Liu
वियतनाम में, बहुत से लोग, उपचार के लिए, परम्परागत औषधि का प्रयोग करते हैं, और उन औषधियों के 90 प्रतिशत तत्व, जंगलों से प्राप्त होते हैं.

भारत: विज्ञान के ज़रिए, 'पारम्परिक चिकित्सा पद्धति' के विस्तार की पुकार

स्वास्थ्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का प्रथम पारम्परिक औषधि वैश्विक शिखर सम्मेलन, गुरूवार को, भारत के गुजरात प्रदेश में गांधीनगर में शुरू हुआ है. इस दो दिवसीय सम्मेलन में लोगों और ग्रह के सार्वभौमिक स्वास्थ्य व कल्याण हेतु, पारम्परिक औषधि की विशाल क्षमता और अनुप्रयोगों पर नए सिरे से नज़र डाली जा रही है. 

17 से 18 अगस्त तक चलने वाले इस दो दिवसीय शिखर सम्मेलन का विषय है - "सर्वजन के स्वास्थ्य और कल्याण की ओर". इस सम्मेलन के ज़रिए, गम्भीर स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने और वैश्विक स्वास्थ्य व टिकाऊ विकास में प्रगति आगे बढ़ाने में पारम्परिक, अनुपूरक और एकीकृत औषधि की भूमिका पर चर्चा की जा रही है.

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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के महानिदेशक, डॉक्टर टैड्रॉस ऐडहेनॉम घेबरेयेसस ने, सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में, पारम्परिक औषधि व मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के बीच के घनिष्ठ सम्बन्धों पर प्रकाश डालते हुए कहा, "पारम्परिक औषधि उतनी ही पुरानी है जितनी कि मानवता. सभी देशों के लोगों ने अपने जीवन में किसी न किसी मुक़ाम पर पारम्परिक उपचार पद्धतियों का उपयोग किया है." 

उन्होंने बताया कि अनक आधुनिक दवाओं के स्रोत, किस तरह समुदायों द्वारा इस्तेमाल की जा रहीं, स्थानीय चिकित्सा पद्धतियों में निहित है. जैसेकि ऐस्प्रिन की खोज के लिए एक ख़ास पेड़ की छाल, या बच्चों में कैंसर के उपचार के लिए एक प्रकार की गुलाबी वनस्पति का इस्तेमाल किया गया है.

उन्होंने कहा, “यही कारण है कि डब्ल्यूएचओ, जामनगर में वैश्विक पारम्परिक चिकित्सा केन्द्र के ज़रिए, पारम्परिक चिकित्सा की क्षमता उजागर करने के लिए देशों का समर्थन करने हेतु प्रतिबद्ध है.” 

डॉक्टर टैड्रॉस ने, इससे पहले बुधवार को, गुजरात में एक स्वास्थ्य व कल्याण केन्द्र का दौरा किया था, जो लगभग एक हज़ार घरों के 5 हज़ार लोगों को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएँ मुहैया कराता है. उन्होंने बताया कि उन्होंने वहाँ देखा कि किस तरह पारम्परिक चिकित्सा को, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल से एकीकृत किया जा रहा है.”

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी प्रमुख ने कहा कि वो यह देखकर बेहद प्रभावित हुए कि भारत में किस प्रकार टैलीमैडिसिन (दूरस्थ चिकित्सा) का इस्तेमाल करके, दूर-दराज़ के क्षेत्रों में स्वास्थ्य सलाह उपलब्ध कराई जा रही है, जिससे इन सेवाओं के विस्तार के साथ ही, मरीज़ के समय व धन की बचत भी हो रही है.

उन्होंने कहा, “सर्वजन के लिए स्वास्थ्य की तस्वीर कुछ ऐसी ही दिखती है.”

डब्ल्यूएचओ महानिदेशक ने सम्मेलन में उपस्थित सभी देशों से, अपनी राष्ट्रीय प्रणालियों में पारम्परिक एवं पूरक औषधि को एकीकृत करने के उपाय खोजने का आग्रह किया. 

उन्होंने कहा कि वे “विशिष्ट, साक्ष्य-आधारित और कार्रवाई योग्य सिफ़ारिशों की पहचान करें,” जिससे डब्ल्यूएचओ की अगली पारम्परिक चिकित्सा वैश्विक रणनीति बनाने में मदद मिल सके.

डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने कहा, “मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि विज्ञान व नवाचार के ज़रिए, इस बैठक को पारम्परिक औषधि की शक्ति उजागर करने के एक वैश्विक आन्दोलन की शुरुआत के रूप में इस्तेमाल करें.”

समग्र दृष्टिकोण आवश्यक

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी (WHO) के प्रमुख टैड्रोस एडहेनॉम घेबरेयेसस
WHO/Christopher Black

शिखर सम्मेलन की सह-मेज़बानी भारत सरकार कर रही रही है, जिसने 2023 के लिए G20 सम्मेलन का अध्यक्षता पद भी सम्भाला हुआ है. यह सम्मेलन, G20 की स्वास्थ्य मंत्रिस्तरीय बैठक के साथ आयोजित की जा रही है.

सम्मेलन के उद्घाटन पर भारत सरकार के केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉक्टर मनसुख मंडाविया ने कहा, "पारम्परिक चिकित्सा के लिए वैश्विक शिखर सम्मेलन, एक आशा की वो किरण है, जिससे स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिए समग्र दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलेगा. हम प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान अपनाकर, सामूहिक रूप से, ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ की नीति के ज़रिए, स्वास्थ्य सम्बन्धी टिकाऊ विकास लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं. 

वहीं विश्व व्यापार संगठन के महानिदेशक डॉक्टर नगोजी ओकोंजो-इविआला ने एक वीडियो सन्देश में कहा कि पारम्परिक चिकित्सा, आधुनिक चिकित्सा विरोधी नहीं, बल्कि उसकी पूरक है. उन्होंने आशा जताई कि यह शिखर सम्मेलन, पारम्परिक चिकित्सा की समझ को व्यापक बनाने में मदद करेगा, और उठाए गए मुद्दों के लिए ठोस एवं समावेशी मंच का काम करेगा.

सम्मेलन के पहले दिन, स्थानीय एवं पारम्परिक चिकित्सा ज्ञान पर चर्चा आयोजित की गई. साथ ही, साक्ष्य जुटाने व शिक्षा एवं मानदंड स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया. 

दुनियाभर के देशों ने अपने देशों की पारम्परिक व पूरक चिकित्सा पद्धतियों के बार में उपलब्ध साक्ष्य व आँकड़े सामने रखे. भूटान की स्वास्थ्य मंत्री, लोनपो दाशो डेचेन वांग्मो ने भूटान में ‘सोवा रिग्पा’ पद्धति की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा, "हमारी पारम्परिक औषधि केवल उपचार की प्रणाली नहीं हैं, बल्कि हमारी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं."

विभिन्न पहलुओं पर ज्ञान साझा

इस वैश्विक शिखर सम्मेलन में दुनिया में पारम्परिक औषधि के विभिन्न पहलुओं पर दो दिनों तक विस्तृत विचार-विमर्श और ज्ञान साझा किया जाएगा, जिसमें चिकित्सा की पारम्परिक प्रणालियों की ज़रूरत, प्रभाव, नवाचार व उपयोग पर आँकड़ें शामिल होंगे. 

साथ ही शिखर सम्मेलन में, दुनिया भर में पारम्परिक चिकित्सा के मूल्य एवं विविधता पर एक प्रदर्शनी भी लगाई गई है. 

शुक्रवार को, शिखर सम्मेलन में जी20 मंत्रियों के साथ एक संयुक्त वार्ता होगी, जिसमें समाज और अर्थव्यवस्थाओं के कल्याण हेतु, स्थानीय ज्ञान और पारम्परिक चिकित्सा के योगदान पर चर्चा शामिल होगी.

शिखर सम्मेलन के अन्त में पारम्परिक औषधि पर गुजरात घोषणापत्र जारी किया जाएगा. WHO प्रमुख ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि यह गुजरात घोषणापत्र, राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों में पारम्परिक औषधि के उपयोग को एकीकृत करने में सहायक होगा और विज्ञान के माध्यम से पारम्परिक चिकित्सा की शक्ति उजागर करने में मदद देगा.