वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

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स्वास्थ्य

दुनिया भर में अत्यन्त चरम मौसम की घटनाओं ने बहुत से लोगों के जीवन को अत्यन्त गम्भीर रूप में प्रभावित किया है.
© WMO/Muhammad Amdad Hossain

गर्माती पृथ्वी पर जीवनरक्षा, COP30 में स्वास्थ्य व प्रवासन मुद्दों पर ज़ोर

यूएन जलवायु शिखर सम्मेलन (COP30) में बेलेम स्वास्थ्य कार्रवाई योजना नामक एक ख़ाका जारी किया गया है जिसका उद्देश्य, पृथ्वी पर बढ़ते तापमान और मौसम के बिगड़ते मिज़ाज के साथ तालमेल बिठाने के लिए, वैश्विक स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत बनाया जाना है. साथ ही प्रवासन या विस्थापन के मुद्दे को भी जलवायु कार्रवाई में शामिल किए जाने पर ज़ोर दिया गया है.

वर्ष 2018 में न्यूमोनिया के कारण आठ लाख बच्चों की मौत हुई. न्यूमोनिया ख़ासतौर से 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों को अधिक निशाना बनाता है.
© UNICEF/Jannatul Mawa

हर साँस की अहमियत, न्यूमोनिया अब भी जानलेवा संक्रामक रोग

न्यूमोनिया आज भी दुनिया की प्रमुख जानलेवा संक्रामक बीमारियों में बना हुआ है जो बच्चों, बुज़ुर्गों और गम्भीर स्वास्थ्य परिस्थितियों वाले लोगों को अधिक निशाना बनाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने न्यूमोनिया की रोकथाम के लिए, स्वास्थ्य प्रणालियों को इस तरह से मज़बूत किए जाने की पुकार लगाई है जिसमें प्रभावितों को बिना किसी देरी के स्वास्थ्य सहायता मिल सके.

ग़ाज़ा में तमाम अस्पताल बुरी तरह ध्वस्त हुए हैं. तबाही का मलबा हटाने में भी वर्षों का समय लगेगा.
© WHO

ग़ाज़ा युद्धविराम एक 'जीवन रेखा' मगर वहाँ के अस्पताल अब भी जर्जर

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुखिया डॉक्टर टैड्रॉस ऐडहेनॉम घेबरेयेसस ने आगाह किया है कि ग़ाज़ा में युद्धविराम की नाज़ुक स्थिति के बावजूद, वहाँ की स्वास्थ्य व्यवस्था जर्जर अवस्था में है, जहाँ लाखों लोग अब भी तत्काल चिकित्सा और मानवीय ज़रूरतों का सामना कर रहे हैं.

WHO के अनुसार, विदेशों में प्रशिक्षित बहुत से डॉक्टर और नर्सें, योरोप में कामकाज करते हैं.
© Unsplash/Ezebunwo Omachi

योरोप में स्वास्थ्यकर्मी मानसिक संकट में, हिंसा और असुरक्षित हालात बढ़ा रहे दबाव

योरोप में 10 में से कम से कम एक डॉक्टर आत्मघाती या आत्म हत्या करने के विचारों का सामना कर रहे हैं. WHO के एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि योरोप में डॉक्टर और नर्स लगातार तनावपूर्ण व असुरक्षित परिस्थितियों में काम कर रहे हैं, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गम्भीर असर पड़ रहा है. 

हेती में गिरोह हिंसा का भयानक असर, बच्चों पर भी पड़ा है, जिसके कारण लाखों बच्चों से उनका घर छिन गया है.
© UNICEF/Patrice Noel

हेती में हिंसा के कारण बड़ी संख्या में बच्चों का पलायन

हेती में हिंसा के कारण विस्थापित हुए बच्चों की संख्या पिछले एक साल में लगभग दोगुनी हो गई है, और अब तक 6 लाख 80 हज़ार बच्चे अपने घरों से बिछड गए हैं.

, दुनिया भर में 80 फ़ीसदी आबादी द्वारा पारम्परिक औषधि व चिकित्सा पद्धति का इस्तेमाल किया जाता है.
WHO

औषधीय व सुगन्धित पौधे - स्वास्थ्य, विरासत और आजीविका का अनमोल ख़ज़ाना

औषधीय और सुगन्धित पौधे (MAPs) केवल स्वास्थ्य और उपचार के आधार ही नहीं, बल्कि आजीविका, सांस्कृतिक विरासत और पर्यावरणीय सन्तुलन से भी गहराई के साथ जुड़े हैं. दुनिया भर में लोग बीमारियों की रोकथाम और उनके इलाज के लिए, औषधीय व सुगन्धित पौधों (MAPs) का सहारा लेते हैं. ये पौधे न केवल परम्परागत चिकित्सा के आधार हैं बल्कि आधुनिक दवाओं की जड़ भी इन्हीं में छिपी है. 

उत्तरी शहर बैत हनून से विस्थापित हुई, उम मुहम्मद अल-मसरीअस्थमा से जूझ रही हैं
UN News

ग़ाज़ा: भोजन पकाने के लिए प्लास्टिक जलाने को विवश महिलाएँ, बढ़ रहे हैं साँस के रोग

ग़ाज़ा में डॉक्टरों ने साँस रोगों के मामलों में तेज़ी से बढ़ोत्तरी होने की चेतावनी दी है. इसकी वजह कई परिवारों का बुनियादी ज़रूरतों से वंचित होना है. दरअसल, वे भोजन पकाने और गर्माहट के लिए प्लास्टिक और गत्ते जलाने पर मजबूर हैं. डॉक्टरों के मुताबिक़, अगर जीवनरक्षक दवाओं, ईंधन और भोजन को इस तबाह इलाके़ में पहुँचाने की अनुमति नहीं दी गई, तो हालात और भी गम्भीर हो सकते हैं.

भारत ने 18 महीने से भी कम समय में, 2 अरब से अधिक कोविड-19 टीके लगाने में सफलता हासिल की है.
UNDP India/ Gaurav Menghaney

WHO: 'वैश्विक महामारी तैयारी सन्धि' के रास्ते में बाधाओं को दूर करना की पुकार

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुखिया डॉक्टर टैड्रॉस ऐडहेनॉम घेबरेयेसस ने देशों से, वैश्विक महामारी सन्धि को अन्तिम रूप देने में आने वाली शेष बाधाओं को दूर करने की पुकार लगाई है.

19 वर्षीय निकिता संजय धस, पुणे के PCMC विकलांग भवन फाउंडेशन में थेरेपी के लिए जाते हुए.
© UNICEF/Faisal Magray

भारत: निकिता की तालियों में सुनाई देती है उम्मीद की गूंज

तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण के बीच महाराष्ट्र का पिंपरी-चिंचवड़ इलाक़ा दिखा रहा है कि असली विकास वही है जिसमें कोई पीछे नहीं छूटे. निकिता की कहानी बताती है कि जब प्रशासन संवेदनशीलता और समझदारी के साथ काम करता है तो समावेशी शासन वास्तविकता बन सकता है.