वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

पारम्परिक चिकित्सा पद्धतियाँ, आधुनिक युग में भी सदुपयोगी

दुनिया भर में 80 फ़ीसदी आबादी द्वारा पारम्परिक औषधि व चिकित्सा पद्धति का इस्तेमाल किया जाता है.
WHO
दुनिया भर में 80 फ़ीसदी आबादी द्वारा पारम्परिक औषधि व चिकित्सा पद्धति का इस्तेमाल किया जाता है.

पारम्परिक चिकित्सा पद्धतियाँ, आधुनिक युग में भी सदुपयोगी

स्वास्थ्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) 17 और 18 अगस्त को, भारत के गुजरात प्रदेश के गांधीनगर शहर में प्रथम पारम्परिक चिकित्सा वैश्विक शिखर सम्मेलन आयोजित कर रहा है. भारत सरकार की साझेदारी में आयोजित होने वाले इस सम्मेलन में, गम्भीर स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने और वैश्विक स्वास्थ्य एवं टिकाऊ विकास में प्रगति को आगे बढ़ाने में, पारम्परिकपूरक व एकीकृत चिकित्सा की भूमिका पर चर्चा होगी. आधुनिक चिकित्सा में पारम्परिक प्रणालियों के योगदान पर प्रकाश डालती एक रिपोर्ट.

मलेरिया के इलाज के लिए, 2 लाख 40 हज़ार तत्वों पर असफल परीक्षणों के बाद, चीनी वैज्ञानिक तू योयो ने पारम्परिक चीनी चिकित्सा पर उपलब्ध पुस्तकों का रुख़ किया. वहाँ उन्हें बार-बार आने वाले बुख़ार के इलाज के लिए, मीठी कीड़ाजड़ी (sweet wormwood ) के बारे में जानकारी मिली. 

1971 में, तू योयो की टीम ने, मीठे वर्मवुड से एक सक्रिय यौगिक, आर्टेमिसिनिन (Artemisinin) को अलग किया, जो मलेरिया के इलाज में बहुत प्रभावी था. वर्तमान में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मलेरिया के इलाज के लिए आर्टेमिसिनिन को मान्यता दी गई है. 

2015 में, तू योयो को, मलेरिया पर उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए फ़िज़ियोलॉजी या मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, जिसने लाखों लोगों की जान बचाने में अहम योगदान दिया था.

आम दवा ‘एस्पिरिन’ की बात करें, तो यह जानकर आश्चर्य होगा कि इसका आधार, विलो वृक्ष की छाल है. प्रकृति और पारम्परिक ज्ञान के समन्वय से आधुनिक चिकित्सा में प्रगति की यह जीवन्त मिसाल है. 

गुणवत्तापरक पारम्परिक औषधि के इस्तेमाल के ज़रिए, स्वास्थ्य देखभाल को दूरदराज़ के इलाक़ों में पहुँचाया जा सकता है, जहाँ स्वास्थ्य सेवाएँ सीमित है.
WHO/Ernest Ankomah

साढ़े तीन हज़ार वर्ष पहले, सुमेरियन व मिस्रवासियों द्वारा विलो पेड़ की छाल का उपयोग, दर्द निवारक और सूजन रोधक के रूप में किया जाता था. बाद में, प्राचीन ग्रीस में इसे प्रसव पीड़ा कम करने और बुख़ार से निजात पाने के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा. 

1897 में, बेयर कैमिस्ट फ़ेलिक्स हॉफ़मैन ने एस्पिरिन तत्व को अलग किया और इससे बनी दवा हर दिन लाखों लोगों का जीवन सुधारने या बचाने के लिए इस्तेमाल की जाने लगी - दिल के दौरे या स्ट्रोक को रोकने, रक्तचाप में सुधार, दर्द व सूजन से राहत सहित इसके अनगिनत लाभ सामने आए. वर्तमान में, एस्पिरिन दुनिया में सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं में से एक बन चुकी है.

प्रकृति व स्थानीय ज्ञान का दोहन

पारम्परिक चिकित्सा को पूर्व-वैज्ञानिक युग की पद्धति के रूप में देखा जाता है, जिसका स्थान आधुनिक, बेहतर, विज्ञान-आधारित चिकित्सा ने लिया. हालाँकि, आधुनिक विज्ञान और चिकित्सा का प्रादुर्भाव, पारम्परिक उत्पादों व प्रथाओं से ही हुआ है, जिसका एक लम्बा इतिहास है.

आज लगभग 40 प्रतिशत फ़ार्मास्युटिकल उत्पाद, प्रकृति और पारम्परिक ज्ञान से आते हैं, जिनमें कई महत्वपूर्ण दवाएँ शामिल हैं: जैसेकि एस्पिरिन, आर्टेमिसिनिन और बाल कैंसर के उपचार. इन दवाओं पर नज़दीकी नज़र डालने से मालूम होता है कि उनके वैज्ञानिकों ने अपनी खोज के लिए पारम्परिक ज्ञान का सहारा लिया था.

पारम्परिक एवं पूरक चिकित्सा पर WHO की वैश्विक रिपोर्ट (2019) के अनुसार, दुनिया भर में इस्तेमाल की जा रही पारम्परिक चिकित्सा की विभिन्न प्रणालियों में, एक्यूपंक्चर, हर्बल दवाएँ, स्वदेशी पारम्परिक चिकित्सा, होम्योपैथी, पारम्परिक चीनी चिकित्सा, प्राकृतिक चिकित्सा, कायरोप्रैक्टिक, ऑस्टियोपैथी, आयुर्वेद व यूनानी उपचार शामिल हैं. WHO के 170 सदस्य देशों ने अपनी आबादी द्वारा पारम्परिक चिकित्सा के उपयोग पर रिपोर्ट दी है.

प्राचीन पद्धितियों से वैश्विक रोगों का निदान

1950 में कोरिया गणराज्य में आबादी के चेचक टीकाकरण कार्यक्रम का एक दृश्य.
UN Photo/Grant McLean

प्राचीन संस्कृतियों द्वारा चिकित्सा हेतु प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के अलावा, आधुनिक रोगों से निपटने के लिए पारम्परिक समुदाय-आधारित स्वास्थ्य प्रथाओं का भी अभूतपूर्व महत्व है. चेचक के टीके का विकास इसका एक सशक्त उदाहरण है.

चेचक एकमात्र ऐसी बीमारी है जिसका पूर्ण उन्मूलन हो चुका है. चेचक ने हज़ारों वर्षों तक, दुनिया भर में करोड़ों लोगों की जान ली. चेचक के लिए वर्तमान टीका, प्राचीन वैरियोलेशन सिद्धान्त पर आधारित है, जिसमें चेचक के तत्व स्वस्थ लोगों में स्थानान्तरित किए जाते थे, जिससे हल्की बीमारी होकर, रोग के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती थी. वैरियोलेशन की प्राचीन प्रथाएँ 200 ईसा पूर्व की हैं, और एशिया व अफ़्रीका के कुछ हिस्सों में इसका व्यापक उपयोग किया जाता रहा है.

वर्ष 1721 में, लेडी मैरी वोर्टली मोंटागू ने ग्रीस और अर्मेनिया की महिलाओं के बीच प्रचलित प्रतिरक्षा पद्धति का अवलोकन करके, अपने बच्चे को चेचक का टीका लगाया. इस पद्धति का प्रयोग फ़ारस, चीन, भारत और अन्य देशों में भी किया जाता था. 

समय के साथ, व्यापक परीक्षण के बाद, टीकाकरण की पारम्परिक पद्धति को चेचक के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने व उसके व्यापक उपयोग द्वारा पूर्ण उन्मूलन के लिए अपनाया गया.

एक्यूपंचर चिकित्सा.
© Unsplash/Katherine Hanlon

योग और एक्यूपंक्चर भी पारम्परिक उपचार पद्धतियों के ऐसे उदाहरण हैं, जिनका उपयोग स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान के लिए सफलतापूर्वक किया गया है. 

WHO के पारम्परिक चिकित्सा विशेषज्ञ परामर्श समूह की सह-अध्यक्ष और कोक्रेन पूरक चिकिस्ता की निदेशक, डॉक्टर सुसन वीलैंड बताती हैं कि किस तरह से "20 से अधिक नैदानिक ​​​​परीक्षणों से प्राप्त साक्ष्यों से ज्ञात हुआ है कि योगासन, पुराने पीठ के दर्द व रीढ़ की हड्डी सम्बन्धित समस्याओं के लिए बेहद प्रभावी है. जब दर्द से राहत की बात आती है तो यही बात एक्यूपंक्चर पर भी लागू होती है." 

शोध से प्राप्त आँकड़े उन प्राचीन पद्धतियों का महत्व रेखांकित करने में मददगार साबित होते हैं, जो आधुनिक समय में दुनिया भर में लोकप्रिय हो चुकी हैं.

योगाभ्यास से स्वास्थ्य लाभ मिलता है और यह तनाव घटाने में सहायक होता है.
© Unsplash/Carl Newton

नवीन प्रौद्योगिकियाँ व पारम्परिक ज्ञान 

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) भी, पारम्परिक उपचार प्रणालियों के अध्ययन और अभ्यास में क्रान्ति ला रही है. AI के उन्नत एल्गोरिदम और मशीनी क्षमताएँ, शोधकर्ताओं को व्यापक पारम्परिक चिकित्सा ज्ञान की सूक्ष्म समझ, साक्ष्यों का मानचित्रण करने और पुरातन मायावी रुझानों को पहचानने में मदद दे रही है.

कार्यात्मक चुम्बकीय अनुनाद इमेजिंग (Functional magnetic resonance imaging) के ज़रिए, मस्तिष्क गतिविधि के अध्ययन से, योग एवं ध्यान की पारम्परिक प्रथाओं में लगे व्यक्तियों का चित्त शान्त करने की क्षमता मापन करना सम्भव हो सका है. फिर आश्चर्य नहीं कि योग व ध्यान का उपयोग, मानसिक स्वास्थ्य, तनाव प्रबन्धन व समग्र कल्याण के लिए किया जा रहा है. 

पारम्परिक चिकित्सा उत्पादों और पद्धतियों के शोध का यह उपयुक्त समय है. दुनियाभर में लोग वैकल्पिक निदानों का रुख़ कर रहे हैं. इससे अधिक शोध व अधिक साक्ष्य सामने आ रहे हैं. और शोध के परिणाम बेहद आशाजनक दिख रहे हैं!