भारत: ख़ुशहाल कहानियाँ बुनती महिलाएँ, असम की बुनकर उद्यमियों की दास्तान
रेनू बरुआ का जन्म 1980 में एक ऐसे निर्धन परिवार में हुआ था, जिसे अधिकतर समय अपनी गुज़ार-बसर के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था. लेकिन रेनू के माता - पिता ने, अपनी निर्धनता के बावजूद, अपनी बेटी के सपनों को पहचाना और उनको जल्दी शादी करने के लिए मजबूर नहीं किया.
वर्ष 2004 में रेनू की शादी एक ऐसे समृद्ध परिवार में हुई, जिन्होंने हमेशा उन्हें पूर्ण सहयोग दिया.
रेनू बताती हैं, “शादी के बाद अपने नए घर में जाने के कुछ ही दिनों बाद, मेरे पति ने मुझे एक हथकरघा मशीन ख़रीदने में मदद की. मेरे पति, कुछ वर्षों के बाद, मेरे लिए एक ऐसी मशीन भी ख़रीद कर लाए, जिससे मुझे कपड़ों पर नए डिज़ाइन बनाने में मदद मिली. हमने दस महिलाओं के साथ एक स्वयं सहायता समूह शुरू करके, गमछे बुनने का काम शुरू किया."
काम अच्छा चलने लगा. रेनू ने गमछों की मांग बढ़ने पर भारत सरकार के राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन और नाबार्ड के समर्थन से, अपनी दूसरी हथकरघा मशीन ख़रीदने के लिए 45 हज़ार रुपये का ऋण लिया.
रेनू ने इसके साथ ही , क्षेत्र में काम करने वाले एक ग़ैर सरकारी संगठन, राष्ट्रीय ग्रामीण विकास निधि के कौशल-निर्माण कार्यक्रमों का लाभ उठाते हुए, टिकाऊ आजीविका के विभिन्न आयामों में प्रशिक्षण प्राप्त किया.
उन्होंने एक अनुकूलित परिधान डिज़ाइनिंग ब्रैंड ‘ईशक्ति’ के साथ, एनिमेटर के तौर पर काम भी किया.

रेनू के स्वयं सहायता समूह (SHG) की सदस्य, प्रणति डेका कहती हैं, “उनके स्वयं सहायता समूह में काम करते हुए, मैंने पिछले कुछ वर्षों में अपनी आमदनी दोगुनी होते देखी है. उन्होंने मास्टर ट्रेनर के रूप में प्रशिक्षण प्राप्त करके हमें प्रशिक्षण दिया. इससे हमें बेहतर कौशल और हमारे उत्पादों को स्थानीय बाज़ार में बढ़त मिलने में मदद मिली.”
वो कहती हैं, “हम बेहतर डिज़ाइन में प्रशिक्षण के अवसर ढूंढते रहते हैं, जिससे हमारे उत्पादों की बेहतर क़ीमत मिल सके. हम बुनाई के लिए आधुनिक तकनीक तक पहुँच चाहते हैं, ताकि हमारी उत्पादकता बढ़े और हमारी आमदनी में वृद्धि हो सके.”
रेनू का कहना है कि कुछ समय पहले तक वह अपने हाथों से डिज़ाइन बनाती थीं. “मशीन-आधारित प्रशिक्षण पाने के बाद, हम अधिक डिज़ाइन बनाने में सक्षम हैं, जिनकी आसानी से, फ़ैक्स की तरह कई कॉपियाँ बनाई जा सकती हैं. इससे डिज़ाइन सटीक व तेज़ी से बन पाते है.”
आगे बढ़ने की चाह
उनके पड़ोस में सिपाझार ग्राम पंचायत के गाँव, भुक्ताबारी की हेमा प्रभा को तब बेहद कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जब उनके पति को ब्रेन स्ट्रोक हुआ और 2018 में वो, फेफड़ों की पुरानी बीमारी की वजह से मौत का शिकार हो गए.
इससे परिवार के संसाधन ख़त्म होते गए और परिवार का भरण-पोषण मुश्किल हो गया.
फिर हेमा ने, नए उद्यमियों को ऋण प्रदान करने की असम सरकार की स्वयम योजना के तहत ऋण लिया. "इस ऋण से, मैंने एक करघा ख़रीदा और राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के 25 हज़ार रुपये के परिक्रामी अनुदान के ज़रिए, एक सूक्ष्म उद्यम स्थापित किया, जिससे नियमित आमदनी और छोटे लाभ प्राप्त होंगे."
हेमा के लघु उद्यम में अब 10 करघे चलते हैं.

ईशक्ति के ज़रिए, महिलाओं को 30 विभिन्न स्वयंसेवक समूहों की 300 से अधिक महिलाओं के साथ बातचीत करने व डिज़ाइनों एवं कच्चे माल के अभिनव उपयोग का आदान-प्रदान करने का अवसर मिलता है.
हेमा कहती हैं, ''मुझे जो भी हासिल हुआ, उससे मैं बहुत ख़ुश हूँ. मुझे उम्मीद है कि अन्य महिलाओं को भी आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के समान अवसर मिलेंगे."