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भारत: थोड़ा समर्थन, थोड़ा प्रशिक्षण, महिला सशक्तिकरण के लिए नई राह

यूएनवीमेन के प्रशिक्षण के ज़रिए, महिलाएँ अपने समुदायों में लैंगिक कुरीतियों के ख़िलाफ़ लड़ते हुए बदलाव लाने के प्रयास रही हैं.
UN Women/Ruhani Kaur
यूएनवीमेन के प्रशिक्षण के ज़रिए, महिलाएँ अपने समुदायों में लैंगिक कुरीतियों के ख़िलाफ़ लड़ते हुए बदलाव लाने के प्रयास रही हैं.

भारत: थोड़ा समर्थन, थोड़ा प्रशिक्षण, महिला सशक्तिकरण के लिए नई राह

महिलाएँ

सामने एक विशाल चुनौती, मगर कुछ समर्थन और कुछ प्रशिक्षण मिला तो खुल गया सफलता का एक रास्ता. भारत में संयुक्त राष्ट्र महिला संस्था (UNWomen), असम के चाय बागानों की महिला श्रमिकों को घरेलू हिंसा, जागरूकता व महिला सशक्तिकरण सहित, विभिन्न क़ानूनों एवं नीतियों पर प्रशिक्षण देकर, अपने समुदायों में लैंगिक कुरीतियों के ख़िलाफ़ लड़ाई में सक्षम बनाने के प्रयास कर रही है.

 

भारत के पूर्वी प्रदेश असम के चाय बागानों में काम करने वाले श्रमिकों में, 20 फ़ीसदी संख्या महिलाओं की है. इस क्षेत्र से देश का आधे से अधिक चाय उत्पादन होता है. यहाँ लगभग 65 लाख चाय बागान श्रमिक रहते हैं, जिनमें से एक बड़ी संख्या, असम के 800 से अधिक चाय बागानों के आवासों में रहती है.

यह समुदाय प्रतिदिन, प्रति व्यक्ति लगभग 232 रुपए (लगभग 3 डॉलर) की मामूली मज़दूरी कमाता है. महिलाओं को डिजिटल वित्तीय अशिक्षा, अंतरंग साथी की हिंसा, घरेलू हिंसा और गर्भावस्था के दौरान काम करने जैसी कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.

इन महिलाओं को बाल-विवाह या एक से अधिक विवाह, कुपोषण, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओँ, लैंगिक हिंसा, गर्भनिरोधकों तक सीमित पहुँच आदि समस्याओं से भी जूझना पड़ता है. 

संयुक्त राष्ट्र महिला संस्थान (UN Women ) ने 2021 में, असम के दस चाय बागानों की महिलाओं व लड़कियों के सशक्तिकरण हेतु, कोविड-19 प्रतिक्रिया कार्यक्रम शुरू किया था. यह कार्यक्रम असम के उस चाय बागान क्षेत्र की महिला श्रमिकों के बीच जागरूकता पैदा करने पर केंद्रित था, जो अत्यधिक निर्धनता व स्वास्थ्य, कल्याण एवं सुरक्षा सम्बन्धित विषम विकास मापदंडों के लिए जाना जाता है.

यूएनवीमेन ने अपने कार्यान्वयन भागीदार, बिंदी इंटरनेशनल के सहयोग से, युवा पुरुषों व महिलाओं तक पहुँचकर, उन्हें महिला अधिकारों के बारे में जागरूक करने व अपने समुदायों के भीतर उनके समग्र सशक्तिकरण की पैरोकारी करने के लिए, समुदाय के चैम्पियन बनने के लिए प्रशिक्षित किया.

मंजू करमाकर

2021 में चाय बागान में प्रशिक्षण लेने के बाद, मंजू करमाकर अब क़ानून व नीतियों के प्रति अधिक जागरूक हैं.
UN Women/Ruhani Kaur

मंजू करमाकर के बेटे को भारत की राजधानी, दिल्ली से लापता हुए कई साल बीत चुके हैं. उस समय वो छोटा था, लेकिन मंजू को भरोसा है कि वो उसे देखते ही पहचान लेंगी. वो कहती हैं, “उसके माथे पर, एक बैल के हमले से लगी चोट का निशान है. वो अब बड़ा ज़रूर हो गया होगा, लेकिन, उस चोट का निशान अभी भी होगा."

2013 में, मंजू करमाकर का 17 साल का बेटा शोबीर दिल्ली में काम करने गया था. एक रात 2 बजे उसका फोन आया. वो बताती हैं, “उसने मुझे बताया कि जहाँ वो काम करता है, वो लोग उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते, इसलिए वो दिल्ली छोड़कर वापस आ रहा है. लेकिन वो वापस घर नहीं आया. परिवार का मानना है कि वो ग़लत ट्रेन में चढ़ गया और खो गया.”

हालाँकि बाद में मंजू का बड़ा बेटा उसकी तलाश में दिल्ली गया. लेकिन चूँकि उन्हें शोबिर के कार्यस्थल की जानकारी नहीं थी, इसलिए उसे ख़ाली हाथ ही वापस लौटना पड़ा. मंजू उदास होकर कहती हैं, “मैं और भी बहुत कुछ कर सकती थी, लेकिन मुझे इस बात की जानकारी ही नहीं थी कि ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए. मुझे यह भी नहीं मालूम था कि दिल्ली है कहाँ.”

2021 में चाय बागान में प्रशिक्षण लेने के बाद, अब उन्हें लगता है कि उन्होंने काफ़ी समय बर्बाद किया है. वो कहती हैं, “अगर मुझे यह प्रशिक्षण पहले मिला होता - तो मुझे मालूम होता कि मुझे अपने बेटे की तलाश के लिए क्या रास्ता अपनाना है. मुझे मालूम होता कि मैं उनकी तस्वीर के साथ पुलिस स्टेशन जाकर एक लापता व्यक्ति की शिकायत दर्ज कर सकती हूँ.”

यूएनवीमेन के कार्यान्वयन भागीदारों के नेतृत्व में, प्रशिक्षण एवं जागरूकता सत्रों के ज़रिए इन महिलाओं को अपने क़ानूनी अधिकारों के बारे में जागरूक करने के प्रयास किए जा रहे हैं. इससे क़ानूनी प्रणालियों व अवसरों की एक अलग दुनिया खुल गई है और महिलाएँ यहाँ प्रशिक्षण लेकर, अपने समुदाय को क़ानूनी चुनौतियों से निपटने में मदद कर रही हैं.

मंजू बताती हैं, “अपने दिल में मैं हमेशा से जानती थी कि मेरे बेटे को तलाश करने का कोई-न-कोई रास्ता ज़रूर है - अब मुझे यह रास्ता मालूम है, और मैं अपने समुदाय के अन्य लोगों को भी विभिन्न क़ानूनी जानकारी देकर उनकी मदद कर रही हूँ.”

अनास्तासिया

UNWomen के प्रशिक्षणों में भाग लेने से, अपने समुदाय के समग्र कल्याण के लिए अनास्तासिया का जुनून और गहरा हो गया है.
UN Women/Ruhani Kaur

 

अनास्तासिया, केलीडेन टी गार्डन के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी के साथ मिलकर, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य के कामकाज में मदद करती थीं. उसी दौरान उन्हें एक मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) के लिए प्रशिक्षण में हिस्सा लेने का अवसर मिला.

अनास्तासिया बताती हैं, "कार्यक्रम के लिए चुनी गई तीन महिलाओं में से दो, आंगनवाड़ी कार्यक्रम में शामिल हुईं, जबकि तीसरी गर्भवती होने के कारण भाग नहीं ले सकी. चूँकि मैं पहले से ही इस तरह का काम कर रही थी, इसलिए चिकित्सा अधिकारी ने मुझे प्रशिक्षण के लिए जाने का सुझाव दिया." 

अनास्तासिया को आशा कार्यकर्ता के रूप में काम करना पसन्द आया. वह कहती हैं, "सुरक्षित मातृत्व और बचपन के बारे में जागरूकता पैदा करना बहुत संतुष्टिदायक है."

उन्हें वो समय याद था जब चाय बागानों की महिलाओं का प्रसव घर पर ही किया जाता था. वह याद करती हैं, "गर्भावस्था के दौरान रक्तचाप की निगरानी न होने के कारण, ये महिलाएँ प्रसव के दौरान मौत का शिकार हो जाती थीं.

"भारत सरकार के नीति आयोग के अनुसार, भारत में प्रत्येक एक लाख जीवित जन्मों पर, 130 महिलाओं की गर्भावस्था सम्बन्धी जटिलताओं के कारण मृत्यु हो जाती है. 

असम की मातृ मृत्यु दर (MMR) 237 है, जोकि भारत के औसत से दोगुनी है, लेकिन फिर भी यह एक दशक पहले 480 की तुलना में यह काफ़ी बेहतर है. 

UNWomen के प्रशिक्षणों में भाग लेने से, अपने समुदाय के समग्र कल्याण के लिए अनास्तासिया का जुनून और गहरा हो गया, “मुझे अब मालूम हो गया है कि मेरे समुदाय की महिलाओं को उनकी स्वास्थ्य व सुरक्षा में मदद करने के लिए क़ानून एवं नीतियाँ मौजूद हैं. प्रशिक्षण के दौरान यह जानकर मुझमें सुरक्षा की भावना जगी कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए क़ानून हैं.''

कोविड-19 महामारी के दौरान अनास्तासिया अग्रिम पंक्ति की कार्यकर्ता थीं. वह याद करती हैं, "मैं डरी हुई थी, लेकिन मैं जो काम करती हूँ वह अपने समुदाय के लिए है - और मैंने अपने समुदाय की सुरक्षा के लिए अपने व्यक्तिगत डर को एक तरफ़ रख दिया.” 

कोविड-सुरक्षित स्वास्थ्य देखभाल, स्वास्थ्य आपात स्थितियों का प्रबंधन, पोषण एवं गर्भनिरोधक की जानकारी से युक्त, अनास्तासिया अब अपने समुदाय के कल्याण के लिए अथक प्रयास करती हैं.

और उन्हें उसका क्या इनाम मिलता है? वो कहती हैं, "जब मैं उनके घरों में जाती हूँ – तो एक स्वस्थ बच्चे, एक मुस्कुराती माँ को देखकर मेरा दिल कृतज्ञता से भर जाता है."

हेमा रेड्डी

हेमा, माताओं के एक क्लब की सदस्य हैं, जो चाय बागान में महिला श्रमिकों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को सम्बोधित करता है.
UN Women/Ruhani Kaur

हेमा, माताओं के एक क्लब की सदस्य हैं, जो चाय बागान में महिला श्रमिकों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देता है. यह महिला श्रमिकों, आशा/एएनएम और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का एक स्थानीय समूह है.

हेमा बताती हैं कि वो समय-समय पर अपने समूह के साथ मिलकर विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करती हैं. "हम समानता के बारे में बात करते हैं, महिलाओं के स्वास्थ्य आदि मुद्दों पर, बाल-विवाह भी यहाँ एक मुद्दा रहा है.”

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के अनुसार, असम में लगभग 32 प्रतिशत महिलाएँ वयस्क होने से पहले ही शादी कर लेती हैं. “लेकिन हमने महिलाओं को यह समझाने के लिए कई सत्र आयोजित किए हैं कि कम उम्र में शादी करना लड़कियों के लिए क्यों हानिकारक है और शिक्षा का महत्व क्या है. इससे संख्या में काफ़ी कमी आई है.”

मदर्स क्लब घरेलू हिंसा का सामना करने वाली स्थानीय महिलाओं को महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करता है. हेमा कहती हैं कि पहले घरेलू हिंसा बड़े पैमाने पर होती थी लेकिन अब इसमें कमी आई है. 

वह कहती हैं, ''हम महिलाओं के साथ पुरुषों को भी सलाह देने की कोशिश करते हैं. और अगर बाक़ी सब विफल हो जाता है, तो हम किसी प्रकरण के दौरान हस्तक्षेप करने में संकोच नहीं करते हैं."

हालाँकि अब उन्हें पुरुषों से भी पूर्ण सहयोग मिलने लगा है. वह कहती हैं, ''जब हम समानता के बारे में बात करते हैं कि पुरुष और महिलाएँ समान हैं, और हिंसा स्वीकार्य नहीं है, तो वे सुनते हैं. पहले कोई सवाल नहीं पूछ रहा था और इसलिए कोई जवाबदेही नहीं थी. अब महिलाएँ अधिक जागरूक हैं, और वे हिंसा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाती हैं."

उन्होंने बताया, " लैंगिक हिंसा से सुरक्षित रूप से निपटने के लिए, यूएनवीमेन के प्रशिक्षण सत्रों में भाग लेने और विभिन्न क़ानूनी समाधानों की जानकारी से, मैं ऐसी स्थितियों से निपटने में सक्षम हुई. हमें लिंग आधारित हिंसा, स्वास्थ्य, कल्याण पर निरन्तर चर्चा करने में मदद करने के लिए एक टूलकिट प्रदान किया गया था, जो बेहद मददगार साबित हुआ.”

रश्मी सावरा

रश्मि अपने समुदाय में पौष्टिक और संतुलित भोजन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अथक प्रयास कर रही हैं.
UN Women/Ruhani Kaur

रश्मी एकमात्र महिला सरदारनी यानि पर्यवेक्षक हैं, और असम के गुडरिक में, नोनाइपराई चाय बागान में ग्राम रक्षा पार्टी की सदस्य हैं. वह चाय बागान में 70 महिला श्रमिकों की निगरानी का कामकाज सम्भालती हैं. 

वो कहती हैं, “मैंने एक कार्यकर्ता के रूप में शुरुआत की. हालाँकि, प्रबंधन ने मेरे आत्मविश्वास और सीखने की इच्छा देखकर, सरदारनी के रूप में मेरी नियुक्ति की.”

रश्मि अपने समुदाय में पौष्टिक और संतुलित भोजन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अथक प्रयास कर रही है, जिसमें भोजन पकाने की सामग्री को ठीक से धोने और खाना बनाते समय बर्तन को ढकने का महत्व समझाना भी शामिल है. रश्मी कहती हैं, “यहाँ बड़े पैमाने पर कुपोषण व्याप्त है. इसका मतलब यह है कि इस समस्या से निपटने के लिए उचित आहार पहला क़दम है.” 

असम राज्य में शिशु मृत्यु दर उच्च है, यानि 48 पर, जबकि पाँच साल से कम उम्र के 38 प्रतिशत बच्चे अपर्याप्त पोषण के कारण अविकसित हैं. चौदह प्रतिशत बच्चे तीव्र कुपोषण से पीड़ित हैं, उनमें से चार प्रतिशत गम्भीर तीव्र कुपोषण की श्रेणी में हैं.

वह कहती हैं, ''कभी-कभी साधारण चीजों को अपनाना काफ़ी होता है. जैसेकि उन्हें यह बताना कि चाय और मुरमुरे खाने के बजाय, उन्हें सब्ज़ियों और दाल के साथ उबले चावल खाने चाहिए.'' 

रश्मी, लौकी, खीरा, आलू, मटर जैसे स्थानीय भोजन खाने पर ज़ोर देकर, अपने समुदाय के बीच स्वस्थ खान-पान के बारे में जागरूकता फैलाती हैं.

“यह महिलाओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. हम दिन भर काम करते हैं, और फिर घर पर बाक़ी सभी की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी भी हम पर ही है. हमें पौष्टिक भोजन की ज़रूरत है.”

पिछले नौ वर्षों में, रश्मी ने विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लिया है. उनका कहना है कि इससे "दूसरों की मदद करने की उनकी क्षमता बढ़ी है."

मैरी नाग 

मैरी नाग अपने गाँव की रक्षा समिति की सदस्य हैं.
UN Women/Ruhani Kaur

मीरा मज़बूत विचार रखती हैं और उन विचारों को अच्छी तरह व्यक्त करने की क्षमता रखती हैं. वह महिलाओं के सशक्तिकरण, उन्हें हिंसा के ख़िलाफ़ खड़े होने के लिए तैयार करने और आत्मनिर्भर जीवन के लिए प्रेरित करने हेतु, कार्यशालाओं का आयोजन करती हैं.

मैरी नाग कहती हैं, ''हम हमेशा लैंगिक-हिंसा को पूर्णत: समझ नहीं पाते हैं. इन कार्यशालाओं से जागरूकता बढ़ती है और महिलाओं एवं लड़कियों को हिंसा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए प्रोत्साहन मिलता है. हम छोटे बच्चों को काम पर लगाने के ख़िलाफ़ भी अभियान चलाते हैं.''

यूएनवीमेन प्रशिक्षण सत्रों से उन्हें वित्तीय ज्ञान भी प्राप्त हुआ, "मुझे समझ आया कि बचत व निवेश कैसे करना है और सुरक्षित भविष्य की योजना कैसे बनानी है. मुझे अपने समुदाय की लड़कियों एवं महिलाओं के साथ इन कौशलों को साझा करना पसन्द है." 

मीरा के काम में अक्सर घरेलू हिंसा की घटनाओं में मध्यस्थता करना भी शामिल होता है. वह कहती हैं कि घरेलू हिंसा की स्वीकार्यता अब कम हो रही है. वह कहती हैं, ''पुरुष भी जानते हैं कि यह ग़लत है.''

छह साल पहले मैरी के पति की मृत्यु हो गई थी. लेकिन अपने दुख को उन्होंने समुदाय, विशेषकर महिलाओं और बच्चों की सेवा के आड़े नहीं आने दिया. आज, वो आत्मविश्वास से परिपूर्ण हैं और सहजता से प्रबंधन के पास जाकर श्रमिकों की समस्याओं के हल के लिए बातचीत करती हैं. 

वह कहती हैं, "इन प्रशिक्षणों ने मुझे यह सिखाया कि कौन सी समस्या किस अधिकारी के सामने रखनी चाहिए. शुरुआत में मेरे अन्दर इतना आत्मविश्वास नहीं था, लेकिन अब मैं बिना किसी डर के उनसे बात करती हूँ. अब हमारे बीच परस्पर सम्मान है क्योंकि हमें भी इसका पूर्ण ज्ञान है."

यूएनवीमेन के प्रयासों से, असम के चाय बागानों के समुदायों के सशक्तिकरण और उन्हें महामारी के बाद अधिक समावेशी व टिकाऊ तरीक़े से अपने जीवन का पुनर्निर्माण करने तथा क्षमताओं से सुसज्जित करने में सफलता मिली है. इससे यह भी स्पष्ट हुआ है कि सशक्त होने पर महिलाएँ कितनी मज़बूत और दृढ़निश्चयी हो सकती हैं - और अपने समुदायों की कितनी परवाह करती हैं.