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भारत: डिजिटल वित्तीय कौशल के ज़रिए महिला सशक्तिकरण की मुहिम

भारत में डिजिटल एवं वित्तीय समावेशन के ज़रिए महिला सशक्तिकरण.
SEWA - Self Employed Women's Association
भारत में डिजिटल एवं वित्तीय समावेशन के ज़रिए महिला सशक्तिकरण.

भारत: डिजिटल वित्तीय कौशल के ज़रिए महिला सशक्तिकरण की मुहिम

महिलाएँ

भारत में संयुक्त राष्ट्र महिला संस्था (UNWOMEN)संयुक्त राष्ट्र पूंजी विकास कोष (UNCDF) द्वारा संचालित "बैटर दैन कैश अलायंस" के सहयोग सेजी20 शिखर सम्मेलन के लिए वित्त मार्ग प्रशस्त करने में, भारत सरकार को तकनीकी सहायता प्रदान कर रही है, जिसमें महिलाओं के डिजिटल एवं वित्तीय समावेशन पर ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है. यह शिखर सम्मेलन भारत की अध्यक्षता में हो रहा है.

गुजरात के अरावली ज़िले में नागानो मठ गाँव की निवासी, संगीताबेन राठौड़ एक प्रशिक्षित डिजिटल वित्तीय समावेशन (डीएफ़आई) ई-सखी हैं. वो आधार कार्ड आधारित, भुगतान प्रणाली (एईपीएस) के ज़रिए, डिजिटल तरीक़े से लेन-देन व भुगतान का काम करती हैं. 

उन्होंने बताया, “हमारे गाँव में बैंक नहीं है, जिसकी वजह से महिलाओं को अपने खातों से पैसे निकालने के लिए संघर्ष करना पड़ता है. मैं अपने गाँव की महिलाओं को मंत्रा मशीन से धन निकालने में मदद करती हूँ; और मोबाइल रीचार्ज, बिजली का बिल, सैटेलाइट टेलीविजन का किराया, टेलीफोन बिल आदि का भी डिजिटल रूप से भुगतान करती हूँ.”

बीकॉम ग्रेजुएट 25 वर्षीय मित्तलबेन अपने परिवार के साथ गुजरात के अहमदाबाद ज़िले में स्थित निधाराद गाँव में रहती हैं. उन्होंने 2018 में सेवा संस्था में डेटा-एंट्री ऑपरेटर के रूप में काम करना शुरू किया. मित्तलबेन, काम के साथ-साथ अपने परिवार के मिट्टी के बर्तन (मटका) आदि बनाने के छोटे से व्यवसाय के प्रबन्धन में भी अपने पिता की मदद करती थीं.

वर्ष 2021 में मित्तलबेन के पिता का निधन हो गया, और पारिवारिक व्यवसाय का भार उनके कंधों पर आ गया, लेकिन मित्तलबेन ने इस चुनौती का डटकर सामना किया. उन्होंने वर्ष 2019 में डिजिटल वित्तीय साक्षरता प्रशिक्षण लिया और विभिन्न डिजिटल मंचों का उपयोग करना सीखा. उन्हें इस प्रशिक्षण के ज़रिए, कोविड-19 के दौरान और बाद के समय में, थोक में ख़रीदे गए कच्चे माल एवं उत्पादों के लिए विक्रेता को भुगतान करने में आसानी हो गई है.

संगीताबेन राठौड़ एक प्रशिक्षित डीएफआई ई-सखी हैं. वो आधार कार्ड आधारित, भुगतान प्रणाली (एईपीएस) के ज़रिए, डिजिटल तरीक़े से लेन-देन व भुगतान का काम करती हैं.
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एकजुट प्रयास

यह प्रशिक्षण अभियान, महिलाओं के डिजिटल वित्तीय समावेशन हेतु, यूएन वीमेन और यूएनसीडीएफ़ आधारित, बैटर दैन कैश अलायंस ने, भारत सरकार के जी20 वित्तीय विभाग की साझेदारी में शुरू किया है.

इसी प्रशिक्षण के कारण, आज मित्तलबेन अपने छोटे से स्टॉल पर QR कोड चिपकाकर, विभिन्न डिजिटल मंचो के ज़रिए भुगतान भी स्वीकार कर लेती हैं. साथ ही, उनके लिए ज़रूरी बिलों का ऑनलाइन भुगतान करना भी आसान हो गया है. मित्तलबेन ने सभी लेन-देन दर्ज करने के लिए, अपने व्यवसाय का रिकॉर्ड को डिजिटल रूप देने भी शुरू कर दिया है, जिससे उन्हें मासिक तौर पर, वार्षिक बिक्री, आय और व्यय, सबसे अधिक मांग वाले उत्पादों एवं निवेश के बारे में विभिन्न मत हासिल करने में मदद मिलती है.

डीएफ़आई यानि डिजिटल वित्तीय समावेशन कार्यक्रम, विश्व बैंक और जापान सामाजिक विकास निधि (JSDF) द्वारा समर्थित है.

जी20 अध्यक्षता का अवसर

डिजिटल मंचों के लिए यह साझेदारी, महिलाओं की आवाज़ बुलन्द करने, आर्थिक सशक्तिकरण पर ज़ोर देते हुए, उनकी वित्तीय स्वतंत्रता को बढ़ावा देती है. इस प्रभावशाली मंच का रणनीतिक उपयोग करके, यूएन वीमेन और बैटर दैन कैश अलायंस, ठोस बदलाव लाने और वैश्विक स्तर पर महिलाओं के लिए अधिक समावेशी एवं न्यायसंगत वित्तीय परिदृश्य बनाने के लिए प्रयासरत है.

भारत में यूएनवीमेन की उप प्रतिनिधि, कान्ता सिंह ने बताया, "बेटर दैन कैश एलायंस के साथ हमारे सहयोग के ज़रिए, हम महिलाओं के लिए वित्तीय समानता को 'बेहतर बनाने' की दिशा में महत्वपूर्ण क़दम उठा रहे हैं. डिजिटल वित्तीय समावेशन की शक्ति का उपयोग करके, हम उन बाधाओं को तोड़ सकते हैं जो लम्बे समय से महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण रास्ते में व्यवधान बनकर खड़ी हैं." 

"हम साथ मिलकर बदलाव का समर्थन करेंगे, समावेशी नीतियों की पैरोकारी करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि वित्तीय समानता की दिशा में कोई भी महिला पीछे न रह जाए. हर महिला की वित्तीय स्वतंत्रता के साथ दुनिया अधिक मज़बूत, अधिक न्यायसंगत बनती है."

, यूएन वीमेन और बैटर दैन कैश अलायंस के बीच एक रणनीतिक साझेदारी के तहत, डिजिटल वित्तीय समावेशन की प्रगति को आगे बढ़ाने और महिलाओं के लिए वित्तीय समानता का समर्थन करने की कोशिशें की जा रही हैं.
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सेवा संस्था की भागेदारी 

भारत की स्व-रोज़गार महिलाओं की पहली और सबसे बड़ी ट्रेड यूनियन, SEWA अपने 25 लाख सदस्यों के लिए डिजिटल भुगतान लेनदेन में 2025 तक 50 प्रतिशत की वृद्धि हासिल करने के लक्ष्य के साथ, संयुक्त राष्ट्र-आधारित बैटर दैन कैश अलायंस में शामिल हुई है. 

जब डिजिटल भुगतान को ज़िम्मेदारी से डिज़ाइन किया जाता है, तो इसमें लागत कम करने, पारदर्शिता बढ़ाने, दक्षता में सुधार करने और वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ाने की क्षमता होती है. 

इस साझेदारी के ज़रिए, SEWA इन लाभों को अपने सदस्यों तक पहुँचा रही है, जो ज़्यादातर अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाली ग्रामीण और शहरी कम आय वाली महिलाएँ हैं. महिलाओं पर ध्यान केन्द्रित करके और वित्तीय समानता तक पहुँचने के लिए ठोस कार्यों पर काम करके, यह साझेदारी, सतत विकास लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में मदद करेगी.

राजस्थान के डूंगरपुर इलाक़े के गमदा बामनिया गाँव की ऋतिका कुँवर चौहान, वर्ष 2014 से सेवा संस्था की सदस्या हैं. ऋतिका बताती हैं, "मैं राजपूत समुदाय से आती हूँ और हमारे यहाँ पर्दे की परम्परा चली आई हैं, जिसमें महिलाओं को घर की चाहरदीवारी से बाहर निकलने पर पाबन्दी होती है. इसलिए जब मैं सेवा में शामिल हुई तो मेरे ससुराल वालों ने इसका काफ़ी विरोध किया.”

"लेकिन मैंने अपनी सास को समझाया कि मैं घर पर बेकार नहीं बैठना चाहती, और अपने परिवार की आमदनी बढ़ाने के लिए कुछ करना चाहती हूँ."

ऋतिकाबेन बताती हैं, "मैं अपने गाँव की बहनों को बैंक खाते खोलने, केवाईसी प्रक्रिया पूरा करने, और उनके खातों को आधार कार्ड से जोड़ने में भी मदद करती हूँ.”
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फिर उन्होंने लीलावती (डीएफ़आई) प्रशिक्षण में हिस्सा लिया, जहाँ उन्हें बताया गया कि वो, फ़ोन की मदद से सब कुछ करने में सक्षम हैं. वो कहती हैं, “लेकिन विडम्बना यह है कि मेरे पास फ़ोन नहीं था! हमारे घर में एकमात्र फोन मेरे पति के पास था - वो उसे इस्तेमाल करते और मैं बस उन्हें देखती थी."डीएफ़आई प्रशिक्षण के ज़रिए उन्होंने स्मार्टफोन की विशेषताएँ और उपयोग सीखे.

और फिर उन्होंने अपनी आमदनी एक स्मार्टफोन ख़रीदा और अपने गाँव की बहनों को लीलावती (डीएफ़आई) प्रशिक्षण देना शुरू किया.

ऋतिका गर्व से बताती हैं, "यह प्रशिक्षण मेरे लिए भी परिवर्तनकारी रहा है. आज मेरे पास अपना घर-आधारित परिधान सूक्ष्म-उद्यम है. मैं अब अपने उत्पादों को व्हाट्सएप ग्रुप्स पर प्रदर्शित करती हूँ, डिजिटल रूप से भुगतान स्वीकार करती हूँ, अपने कारोबारी आपूर्तिकर्ताओं को ऑनलाइन धनराशि भेजती हूँ... और भी बहुत कुछ!”"इतना ही नहीं अपने गाँव की महिलाओं को बैंक खाते खोलने, केवाईसी प्रक्रिया पूरा करने, और उनके खातों को आधार कार्ड से जोड़ने में भी मदद करती हूँ.” 

बदलाव की बयार

डिजिटल मंच से गाँव में आ रहे बदलाव के लिए ऋतिका कहती हैं, “पहले जब गाँव में महिलाओं को चिकित्सा या अन्य आपात स्थिति में धन की आवश्यकता होती थी, तो वे पड़ोसियों से उधार रक़म लेने के लिए दर-दर भटकती थीं; या फिर गाँव के साहूकार से अत्यधिक ब्याज़ दरों पर उधार लेने को मजबूर हो जाती थीं. लीलावती (डीएफ़आई) प्रशिक्षण पाकर, मैंने उन्हें एटीएम चलाना सिखाया, जिससे अब वो कभी भी, कहीं भी पैसे निकालने में सक्षम हो गई हैं.”

ऋतिका ने दसवीं कक्षा तक शिक्षा हासिल की थी, लेकिन उनके पति ने, लीलावती (डीएफ़आई) प्रशिक्षण के बाद कुशलता से स्मार्टफोन का उपयोग करते देखकर, उन्हें अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए प्रोत्साहित किया. आज वह स्नातक हैं."

वो गर्व से कहती हैं, "संक्षेप में कहूँ तो आज ऐसा कोई काम नहीं है जो मैं नहीं कर सकती हूँ."

शिक्षा में मदद

वहीं असम की जूनमोनीबेन बताती हैं, “डीएफ़आई प्रशिक्षण से पहले मेरे पास स्मार्टफोन नहीं था और न ही मुझे डिजिटल मंचों का कोई ज्ञान था. प्रशिक्षण के बाद मैंने अपने लिए एक स्मार्टफ़ोन ख़रीदा और टीवी रीचार्ज, मोबाइल रीचार्ज, बिलों का भुगतान, बैंक लेनदेन के लिए 'Google Pay' जैसे मोबाइल ऐप का इस्तेमाल करना सीखा - और न केवल अपने व्यक्तिगत जीवन में बल्कि आसपास के समुदायों की मदद के लिए भी इसे उपयोग में लाना शुरू कर दिया.

“पहले मैं व्हाट्सएप का उपयोग तक करना नहीं जानती थी, लेकिन अब इसके ज़रिए मैं अपने बच्चों की शिक्षा में मदद करने के लिए, नोट्स, सामग्री आदि की जानकारी लेती हूँ और समूहों में शामिल लोग, मेरे बच्चों की मदद कर सकते हैं.”

सूक्ष्म उद्योग में कारगर

राजस्थान के डूंगरपुर की भाविकाबेन सुथार कहती हैं, “डिजिटल शिक्षा के माध्यम से, मैंने कपड़ा सिलाई के अपने मौजूदा व्यवसाय में आमदनी बढ़ाने के तरीक़े सीखे. इस व्यापार में मुख्य अन्तर डिज़ाइन का रहता है. पहले मैं नवीनतम शैलियों व रुझानों का पता लगाने के लिए बाज़ार से पोस्टर ख़रीदती थी, लेकिन अब YouTube और सोशल मीडिया जैसे डिजिटल मंचों की मदद से, मैं आसानी से इन्हें देख सकती हूँ और बनाना भी सीखती हूँ. इस प्रकार नए उत्पाद बनाकर नए बाज़ारों में पैठ बनाने और अधिक आय अर्जित करने में मुझे बहुत मदद मिली है.”

संयुक्त राष्ट्र के 'बैटर दैन कैश एलायंस' की एशिया-प्रशान्त प्रमुख प्रेरणा सक्सैना कहती हैं, “निरन्तर विकसित हो रही डिजिटल दुनिया में, ज़िम्मेदार डिजिटल भुगतान, आर्थिक रूप से वंचित महिलाओं की डिजिटल वित्तीय यात्रा को शुरू करने में मदद करता है. भारत में डिजिटल भुगतान, लाखों लोगों के जीवन में सुधार ला रहा है, आर्थिक अवसर प्रदान कर रहा है, नवाचार को प्रोत्साहित कर रहा है और समावेशी विकास को बढ़ावा दे रहा है."

"हम डिजिटल लैंगिक विभाजन को पाटने व महिलाओं के लिए वित्तीय समानता हासिल करने की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ने के लिए भारत में अपने भागीदारों के साथ सहयोग कर रहे हैं.''

बैटर दैन कैश अलायंस के बारे में जानकारी -

संयुक्त राष्ट्र-आधारित 'बैटर दैन कैश एलायंस' सतत विकास लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार डिजिटल भुगतान के लिए प्रतिबद्ध सरकारों, कम्पनियों और अन्तरराष्ट्रीय संगठनों की एक वैश्विक साझेदारी है. भारत सरकार, संयुक्त राष्ट्र महिला संस्था - UNWomen, भारत की स्व-रोज़गार महिला संघ (SEWA), और फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI) इस वैश्विक साझेदारी के सदस्य हैं.