भारत: सपने साकार करती कुदुम्बश्री योजना
भारत के दक्षिणी प्रदेश केरल में एक पुरानी परियोजना कुदुम्बश्री को नया मक़सद पूरा करने के लिए उपयोग किया जा रहा है. इसके तहत, महिला उद्यमियों को वित्तीय सहायता व प्रशिक्षण देकर, उन्हें आत्मनिर्भर बनने में मदद की जाती है. इनकी प्रेरक कहानी को जगह मिली, संयुक्त राष्ट्र महिला संस्था, यूएनवीमेन के एक प्रकाशन में.
30 वर्षीय नव-उद्यमी, रेम्या, केक बनाने के अपने कौशल का विस्तार करके, अपनी ख़ुद की बेकरी व केक की दुकान खोलना चाहती हैं.
लगभग 35 वर्ष की शिनिला को, रद्दी काग़ज़ों से सुन्दर थैले बनाने की कला आती है.
26 वर्षीय एबिली की योजना थोड़ी भिन्न है. वो अपने ट्रैवल एजेंट पति, अदिवा के साथ मिलकर, जल्द ही अपने पड़ोस की कामकाजी महिलाओं के बच्चों के लिए एक प्लेस्कूल शुरू कर रही हैं.
रेम्या नाम की ही एक अन्य मध्यम आयु वर्ग की महिला भी हैं, जो आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़ी अनुसूचित जनजाति उराली से आती हैं. वो अपने घर से एक छोटा सा कैफ़े चलाती हैं, जिसे वो अब आगे बढ़ाने की योजना बना रही हैं. उनकी दोस्त, सुशीला का कैटरिंग व्यवसाय है, जिसे आगे बढ़ाने में भी वो मदद करना चाहती हैं.
फिर महिला संगीत बैंड चलाने वाली संगीतकार सूर्या हैं, जो हारमोनियम से लेकर बाँसुरी व गिटार तक, बाँस से बने कई वाद्ययंत्र बजाती हैं. इलाक़े में उनका समूह मालामुझक्की बैंड के नाम से मशहूर हैं.
यह बैंड अब वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाना चाहता है - और इसके लिए उसे वित्तीय सहायता एवं प्रशिक्षण की आवश्यकता है.
उद्यमिता प्रशिक्षण
यह सारी कहानियाँ, भारत के दक्षिणी प्रदेश केरल के एकमात्र आकांक्षी ज़िले, वायनाड की हैं, जिन्होंने ज़िला मुख्यालय, कलपेट्टा में कुदुम्बश्री सामुदायिक विकास सोसायटी (CDS) द्वारा आयोजित, दो दिवसीय उद्यमिता विकास कार्यक्रम (CDS) में शिरकत की
केरल की निर्धनता उन्मूलन पहल कुदुम्बश्री के नव उद्यम ग्राम उद्यमिता कार्यक्रम की सूक्ष्म उद्यम सलाहकार, रेखा के. के. कहती हैं, "इस प्रशिक्षण में भाग लेने वाली हर एक महिला के पास, योजनाएँ व सपने हैं, जिन्हें वे साकार करना चाहती हैं." रेखा इन महिलाओं को प्रशिक्षित करती हैं और उनकी व्यावसायिक योजनाएँ विकसित करने में मदद करती हैं.
प्रदेश सरकार द्वारा समर्थित कुदुम्बश्री समूह, अगले वर्ष, इन सदस्यों को उनके सपनों को साकार करने और अपना व्यवसायिक सफ़र शुरू करने में मदद करेगा.
कुदुम्बश्री योजना में, दसियों सूक्ष्म-लघु-मध्यम और बड़े उद्यमों को चलाने से लेकर, सेवाएँ प्रदान करने, अग्रणी सामाजिक कार्यों व महिला सशक्तिकरण, महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा व लैंगिक भेदभाव से निपटने तक, जीवन के लगभग हर पहलू पर ध्यान दिया गया है.
सहायक ज़िला मिशन अधिकारी, वासु प्रदीप बताते हैं: "कुदुम्बश्री समूह, ग्रामीण घरों के निर्माण कार्य में भी सक्रिय हैं, और इसे लेकर कुछ शुरुआती प्रयोग उत्साहजनक रहे हैं."
मलयालम में कुदुम्बश्री का अर्थ है 'परिवार की समृद्धि'; यह थीम, इस मिशन और सामुदायिक नैटवर्क का पर्याय है. राज्य सरकार द्वारा नियुक्त टास्क फोर्स की सिफ़ारिशों के बाद, 1997 में इसकी स्थापना की गई. परियोजना का उद्देश्य है, महिलाओं में सामाजिक और आर्थिक रूप से निवेश करना.
आदिवासी क्षेत्र के जिला परियोजना प्रबन्धक, जयेश वेलेरी गर्व से बताते हैं, ''ऋण वापिस नहीं चुका पाने के बहुत कम मामले देखने को मिलेंगे.''
यह समूह, आमदनी के नए साधनों के अलावा, महिलाओं को मज़बूत सामाजिक समर्थन प्रदान करता है.
पूरे भारत में, कुदुम्बश्री, इसी तरह के अन्य आन्दोलनों - महाराष्ट्र के उमेद, कर्नाटक के संजीवनी, और ओडिशा में मिशन शक्ति के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन चुका है.
कलपेट्टा में सामुदायिक विकास सोसायटी की अध्यक्ष, इंदिरा सुकुमारन, 570 पड़ोस समूहों का नेतृत्व करती हैं.
वह कहती हैं कि उनकी योजना इन सभी समूहों को उत्पादक एवं आय-उन्मुख बनाना है ताकि प्रत्येक सदस्य को वित्तीय स्थिरता प्राप्त हो सके. ''महिलाओं पर ख़र्च किया हर एक रुपया, दोगुनी आमदनी लेकर आता है.''