भारत: ‘वित्तीय स्वतंत्रता की राह पर अग्रसर माँ-बेटी की जोड़ियाँ’
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) भारत के विभिन्न प्रदेशों में, वर्ष 2020 से सरकारों और भागीदारों के साथ मिलकर – ‘कोड उन्नति’ और ‘प्रोजेक्ट एक्सेल’ जैसे प्रमुख कार्यक्रमों के तहत, उद्यमशीलता को बढ़ावा देने व महिलाओं एवं युवा नवाचार को प्रोत्साहन देने की दिशा में काम कर रहा है. अब इन प्रयासों के बेहद सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं, जिसकी प्रमाण हैं - माँ-बेटी की ये जोड़ियाँ.
दक्षिण कन्नड़ के सुरम्य गाँव हरेकला पंचायत में, नलिनी का दिन, आंगनवाड़ी में बच्चों के साथ उत्साहभरी बातचीत के साथ शुरू होता है. दक्षिण कर्नाटक आंगनवाड़ी की यह 47 वर्षीय सरकारी स्कूल शिक्षिका, अपने परिवार की देखभाल के लिए इस मामूली वेतन वाले रोज़गारपरक कामकाज से बहुत सन्तुष्ट थीं.
लेकिन, नवम्बर 2021 में उनकी ज़िन्दगी में बड़ा बदलाव आया, जब उनकी सबसे बड़ी बेटी पूजा को, हाल ही में मैंगलोर से बीएससी स्नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद, यूएनडीपी के उद्यमिता विकास प्रशिक्षण के बारे में जानकारी मिली.
यूएनडीपी के इस कार्यक्रम के तहत, परिवर्तनकारी पाँच दिवसीय पाठ्यक्रम के ज़रिए, उद्यमिता के बुनियादी सिद्धान्तों में प्रशिक्षण दिया जाता है.
पूजा अपनी स्नातक स्तर की शिक्षा पूरी करने के बाद से ही कामकाज की खोज में थीं. पूजा को, इस पाठ्यक्रम में सम्भावनाएँ नज़र आईं और उन्होंने अपनी माँ को इसमें शामिल होने के लिए राज़ी कर लिया. उस समय उन्हें इस बात का ज़रा भी अन्दाज़ा नहीं था कि उनके भीतर सुप्त विचार, बस प्रस्फुटित होने का इन्तेजार कर रहे हैं.
असमानता पाटने की कोशिश
बहुत से समाजों में महिलाओं को भेदभाव का सामना करना पड़ता है और वे असमान रूप से संवेदनशील होती हैं. असमान लैंगिक भूमिकाएँ अक्सर उनकी वित्तीय स्वतंत्रता की सम्भावनाओं को सीमित कर देती हैं.
वैश्विक स्तर पर महिलाओं को कम आर्थिक अवसर प्राप्त होते हैं. 75 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में, समस्त योग्य महिलाओं में से आधे से भी कम महिलाएँ, श्रमबल का हिस्सा हैं. महिलाओं को अनौपचारिक रोज़गार और असुरक्षित, कम वेतन वाली या कम मूल्य वाले रोज़गार मिलने की सम्भावना अधिक रहती है.
भारत में यूएनडीपी, वर्ष 2022 से, सरकार और भागीदारों के साथ मिलकर – ‘कोड उन्नति’ और ‘प्रोजेक्ट ऐक्सेल’ जैसे प्रमुख कार्यक्रमों के तहत, उद्यमशीलता को बढ़ावा देने व महिलाओं एवं युवा नवाचार को प्रोत्साहन देने की दिशा में प्रयासरत है.
कर्नाटक सरकार के साथ एक साझेदारी में ‘कोड उन्नति’ के तहत, प्रदेश के तीन ज़िलों - बैंगलूरू के ग्रामीण हिस्सों, दक्षिण कन्नड़ व रायचूर में 20 हज़ार युवजन और 5 हज़ार महिलाओं के लिए उद्यमशीलता के अवसरों एवं रोज़गार तक बेहतर पहुँच प्रदान करने के लिए काम किया जा रहा है.
वहीं ‘प्रोजेक्ट ऐक्सेल’ का लक्ष्य, जामनगर और द्वारका ज़िलों में 10 हज़ार परिवारों के लिए उद्यमिता, रोज़गार के अवसर और सामाजिक सुरक्षा तक बेहतर पहुँच बनाना है.
माँ-बेटी की संयुक्त शक्ति

कई दशक पहले स्कूल छोड़ चुकीं नलिनी ने अपनी बेटी के समर्थन से पूरे उत्साह के साथ, कार्यक्रम में प्रवेश लिया. माँ-बेटी ने एक साथ मिलकर कई व्यावसायिक उपायों पर विचार किया, अपनी ताक़त पहचानी, बाज़ार की समझ हासिल की, ‘ब्रेक-ईवन पॉइंट’ की गणना सीखी, लाभ व हानि का प्रबन्धन व बचत करना सीखा, लागत में कटौती करके, ब्रैंड बनाने का हुनर सीखा, उत्पादों पर लेबल लगाना व प्रभावी ढंग से बाज़ार में उतरकर, ग्राहकों के साथ जुड़ना सीखा.
उन्होंने भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) पंजीकरण के लिए आवश्यक काग़ज़ी कार्रवाई के बारे में भी जानकारी प्राप्त की, जो एक भरोसेमन्द ब्रैंड के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण आधार हैं.
आत्मविश्वास से ओत-प्रोत नलिनी बताती हैं, "पाठ्यक्रम ने मुझमें एक विश्वास पैदा किया जो मैंने पहले कभी अनुभव नहीं किया था. अचानक, मुझे लगा कि मैं बहुत कुछ हासिल कर सकती हूँ."
पूजा से प्रेरित और यूएनडीपी के मार्गदर्शन से समर्थित नलिनी ने 2022 में अचार बनाने का उद्यम शुरू किया. उन्होंने नींबू, आम और मिश्रित सब्ज़ियों सहित विभिन्न स्वादों के साथ, अपने बोतलबन्द उत्पाद को "पूजा अचार" का नाम दिया.
50 रुपए की क़ीमत वाली, 250 ग्राम की छोटी बोतलों में बेचे जाने वाली ये स्वादिष्ट अचार-क़िस्में, आसपास की दुकानों में तेज़ी से लोकप्रिय हो गईं.
नलिनी वर्तमान में हर महीने पाँच किलोग्राम से अधिक अचार बेचती हैं और 3 हज़ार रुपए तक अर्जित कर लेती हैं. अब वह मछली के अचार, मसालेदार चावल के मिश्रण और हाथ से बने पापड़ जैसे स्थानीय व्यंजनों में विविधता लाने की योजना बना रही हैं.
कार्यक्रम का असर
इस बीच, उद्यमिता विकास प्रशिक्षण से मिले नए आत्मविश्वास भरी पूजा ने, मैंगलोर में यूएनडीपी द्वारा आयोजित एक रोज़गार मेले में पंजीकरण कराया. पूजा, अपने रोज़गार सम्बन्धी साक्षात्कारों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए, सात पदों में से तीन के लिए चुन ली गईं.
आज, वह गर्व से एक प्रमुख समूह के लिए ग्राहक सेवा कार्यकारी के रूप में कार्य करती हैं, और 16 हज़ार रुपए मासिक वेतन अर्जित करती हैं.
पूजा गर्व से झूमती हुई कहती हैं, "मैं अपने परिवार की पहली महिला हूँ जो दफ़्तर में काम करती हूँ और घर पर वेतन लाती हूँ. हर किसी को मेरी उपलब्धियों पर गर्व है."
कुछ साल पहले, मिट्टी की दीवारों और फूस की छत से बना, पूजा और नलिनी का साधारण घर, एक विनाशकारी तूफ़ान से तहस-नहस हो गया था. उनके परिवार का भरण-पोषण, मुख्य रूप से पूजा के मैकेनिक पिता की आमदनी पर निर्भर था.
ऐसे में, नया घर बनाने के लिए अतिरिक्त धन की गुंजाइश नहीं थी. तब घर की महिलाओं ने, अपने नए कौशल और अटूट दृढ़ संकल्प से, एक साहसी क़दम उठाया और 11 लाख रुपए का ऋण प्राप्त किया.
वे आज अपने नए घर के निर्माण का जश्न मना रहे हैं, जो उनकी सहनसक्षमता एवं कड़ी मेहनत का प्रमाण है. पूजा गर्व के साथ कहती हैं, "यह हमारा सपना था. इसे साकार करने के लिए मैंने और मेरी माँ ने अथक परिश्रम किया."
हम किसी से कम नहीं

कर्नाटक के इस स्थान से 1,600 किमी दूर गुजरात के जामनगर के ग्रामीण ज़िले में भी एक ऐसी ही प्रेरक कहानी है, 23 साल की मनीषाबा ज्येन्द्रसिंह वधेर की. मनीषाबा अपने गाँव के स्कूली बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थीं. आगे बढ़ने की चाह रखने वाली, मनीषाबा अपने और अपने परिवार के लिए बेहतर अवसरों की तलाश में थीं.
तभी उन्हें उद्यमिता विकास प्रशिक्षण के बारे में जानकारी मिली. मनीषाबा ने तुरन्त अपना और अपनी डेयरी किसान 58 वर्षीय सास वसनबा रामसिंह वाढेर का नामांकन उसमें करवा दिया. इन उद्यमशील महिलाओं ने साथ मिलकरसप्ताह भर तक व्यावसायिक कौशल के प्रशिक्षण हासिल किया. यूएनडीपी के मार्गदर्शन और परामर्श से, मनीषाबा ने समय बर्बाद किए बिना, तुरन्त एक कैंटीन और स्टेशनरी की दुकान शुरू की.
फिर उन्होंने मार्च 2023 में वाडिनार में आयोजित यूएनडीपी के 21वीं सदी के कौशल प्रशिक्षण में दाख़िला लेकर, अपने रोज़गार कौशल को और निखारा.
मनीषाबा के पास आज, आय के विविध स्रोत हैं. वह अपने ट्यूशन और ‘क्लाउड किचन’ के प्रबन्धन के साथ-साथ, सिंगाच गाँव में कार्यक्रमों के लिए नाश्ते और जलपान की आपूर्ति भी करती हैं.
नए ज्ञान से सशक्तवसनबा ने भी इस बीच अपने डेयरी व्यवसाय का विस्तार किया. वह, चार गायों और दो भैंसों की देखभाल करते हुए, अब गर्व से अपने फलते-फूलते दूध व्यवसाय से, प्रतिमाह 30 हज़ार रुपए तक की आय अर्जित कर लेती हैं.
इन सभी महिवाओं की भावनाएँ प्रतिध्वनित करते हुए वसनबा कहती हैं, "मुझे अहसास हुआ है कि जितना अधिक मैं सीखती हूँ, उतना ही अधिक मैं अपने परिवार के लिए आमदनी अर्जित कर पाती हूँ."