क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े में इसराइली आवास नीतियाँ, नस्लीय अलगाव के समान

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने पूर्वी येरूशलम में इसराइल की आवास नीतियों को, फ़लस्तीनी लोगों के साथ भेदभाव और नस्लीय अलगाव (segregation) क़रार दिया है. उन्होंने बुधवार को जारी अपने एक वक्तव्य में कहा है कि ये नीतियाँ, फ़लस्तीनियों के मानवाधिकारों का हनन हैं.
प्राप्त जानकारी के अनुसार, मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि इलाक़े को जिस तरह से बांटा गया है और वहाँ नियोजन व्यवस्था लागू की गई है, उससे आवास, सुरक्षित पेजयल, साफ़-सफ़ाई, स्वास्थ्य देखभाल व अन्य अति-आवश्यक सेवाओं की सुलभता प्रभावित होती है.
#Israel’s housing policies in occupied East Jerusalem amount to racial segregation & discrimination against the #Palestinian people – UN Human Rights experts.The discriminatory zoning & planning regime is a violation of their human rights.Read more: https://t.co/g8S3I0oy0A pic.twitter.com/fWxKds4UrO
UN_SPExperts
विशेषज्ञों ने क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा है कि पूर्वी येरूशलम के लिये आवास योजनाओं में इसराइली बाशिन्दों के लिये इलाक़ों को प्राथमिकता दी गई है, जबकि फ़लस्तीनियों के लिये सीमित विकल्प हैं.
“...यह स्पष्ट रूप से नस्ल, रंग, वंश या राष्ट्रीय या जातीय आधार पर पृथक्करण के समान है.”
“नस्लीय आधार पर अलग बस्तियों से फ़लस्तीनी लोगों के लिये रहन-सहन मानकों पर लम्बे और ठोस नतीजे हुए हैं.”
विशेष रैपोर्टेयर ने बताया कि पूर्वी येरूशलम समेत पश्चिम तट में फ़लस्तीनी और बेडॉइन समुदाय पर ऐसे क़दमों से हुए नकारात्मक असर की ओर ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में मार्च महीने में एक रिपोर्ट में कहा गया था कि फ़लस्तीनी इलाक़े में इसराइल का 55 वर्ष से जारी क़ब्ज़ा, नस्लीय भेदभाव व अलगाव (apartheid) है.
यूएन विशेषत्रों ने उस रिपोर्ट के निष्कर्षों से सहमति जताते हुए इसराइली सरकार से अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकारों और मानवीय क़ानूनों का पालन करने का आग्रह किया है.
इस क्रम में, नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर केंद्रित अन्तरराष्ट्रीय सन्धि भी अहम है.
विशेषज्ञों ने Evyatar चौकी स्थापित किये जाने और सार्वजनिक स्थलों के वितरण पर पूरी तरह से इसराइल नियंत्रण होने के विरोध में फ़लस्तीनियों द्वारा किये गए प्रदर्शनों के हिंसक व व्यवस्थागत ढँग से दमन की ख़बरों पर चिन्ता जताई है.
“हमें रिपोर्टें मिली हैं कि प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध और अत्यधिक बल प्रयोग, मनमाने ढँग से हिरासत, यातना व सामूहिक दण्ड को अंजाम दिया गया है.”
“बस्तियों की स्थापना के विरोध में प्रदर्शनों के दौरान, इसराइली सुरक्षा बलों या इसराइली बाशिन्दों द्वारा गोलियाँ चलाये जाने से कम से कम छह फ़लस्तीनी मारे गए हैं.”
यूएन विशेषज्ञों ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से सैन्य बलों व क़ानून एजेंसियों के आचरण की स्वतंत्र रूप से जाँच कराये जाने का आग्रह किया है, ताकि फ़लस्तीनियों के विरुद्ध अत्यधिक बल प्रयोग के लिये मौजूदा दण्डमुक्ति की भावना पर विराम लगाया जा सके.
“शान्तिपूर्ण सभाओं को केवल असाधारण मामलों में ही तितर-बितर किया जाना चाहिये, और उसके लिये वैधानिकता, आवश्यकता व आनुपातिकता सख़्ती से ज़रूरी है.”
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने पश्चिमी तट में इसराइल द्वारा बुनियादी ढाँचों को ढहाए जाने पर भी चिन्ता जताई गई है, जिसकी मानवाधिकार समिति द्वारा समीक्षा की गई है.
समिति ने क्षेत्र में नियोजन व इलाक़ों को बाँटे जाने की व्यवस्था की समीक्षा व सुधार पर बल दिया है.
विशेष रैपोर्टेयर के मुताबिक़, इसराइल, फ़लस्तीनी इलाक़े पर क़ाबिज़ शक्ति है, जिसके अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के तहत कई दायित्व हैं, जिसका उसने बार-बार हनन किया है.
उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया है कि जवाबदेही के लिये उपायों का पुलिन्दा तैयार किया जाना होगा, ताकि क़ब्ज़े का जल्द से जल्द अन्त हो और फ़लस्तीनियों के लिये स्व-निर्धारण कर पाना सम्भव हो सके.
संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ इन आरोपों के सिलसिले में इसराइली सरकार के साथ सम्पर्क में हैं ताकि अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के अन्तर्गत उसके दायित्वों को स्पष्ट किया जा सके.
इस वक्तव्य को जारी करने वाले मानवाधिकार विशेषज्ञों की सूची यहाँ देखी जा सकती है.
सभी स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, जिनीवा में यूएन मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त किये जाते हैं, और वो अपनी निजी हैसियत में, स्वैच्छिक आधार पर काम करते हैं.
ये मानवाधिकार विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और ना ही उन्हें उनके काम के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.