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75 वर्ष पहले हुए, 7 लाख फ़लस्तीनियों के विशाल विस्थापन की याद

नंगे पाँव गाड़ियों में अपने सामान को धकेलते हुए, अरब परिवार जाफ़ा के तटीय शहर को छोड़ देते हैं जो इज़राइल राज्य में बड़े तेल अवीव क्षेत्र का हिस्सा बन गया.
UN Photo
नंगे पाँव गाड़ियों में अपने सामान को धकेलते हुए, अरब परिवार जाफ़ा के तटीय शहर को छोड़ देते हैं जो इज़राइल राज्य में बड़े तेल अवीव क्षेत्र का हिस्सा बन गया.

75 वर्ष पहले हुए, 7 लाख फ़लस्तीनियों के विशाल विस्थापन की याद

प्रवासी और शरणार्थी

संयुक्त राष्ट्र ने 75 साल पहले हुई उस घटना को अपने इतिहास में सोमवार को पहली बार याद किया, जिसमें फ़लस्तीनियों को उस भूमि से सामूहिक पलायन करना पड़ा था, जिसे आगे चलकर इसराइल के रूप में जाना गया. इस घटना के कारण, रातों-रात लगभग सात लाख फ़लस्तीनी जन, शरणार्थियों में तब्दील हो गए थे.

 

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संयुक्त राष्ट्र में राजनैतिक और शान्ति निर्माण मामलों की अवर महासचिव रोज़मेरी डीकार्लो ने उस सामूहिक विस्थापन दिवस के अवसर पर न्यूयॉर्क स्थित यूएन मुख्यालय में सोमवार को आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में कहा कि 1948 में हुआ वह सामूहिक विस्थापन, विश्व भर में फ़लस्तीनियों के लिए बहुत महत्व रखता है. उस सामूहिक विस्थापन को आमतौर पर नकबा के नाम से जाना जाता है, अरबी भाषा में जिसका अर्थ "तबाही" होता है.

‘इसराइल का क़ब्ज़ा ख़त्म हो’

रोज़मैरी डीकार्लो ने कहा, “इस घटना की विरासत जीवित रहेगी, और हमें इसराइल-फ़लस्तीनी संघर्ष का शान्तिपूर्ण एवं स्थाई समाधान खोजने हेतु, अथक प्रयास जारी रखने के लिए सदैव प्रेरित करती रहेगी." उन्होंने याद दिलाते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने यह स्मारक दिवस मनाने के लिए, नवम्बर 2022 में एक प्रस्ताव पारित किया था.

इसराइल व फ़लस्तीन के बीच शान्ति एवं परस्पर सहमति वाला दो-राष्ट्र समाधान लागू होने का मार्ग फ़िलहाल, दशकों के संघर्ष, बढ़ते तनाव, हिंसा और समझौते की अपार नाकाम कोशिशों से अटा पड़ा है.

रोज़मेरी डिकार्लो ने, इसराइल के क़ब्ज़े वाले फ़लस्तीनी क्षेत्र में यहूदी बस्तियों के विस्तार, हाल की हिंसा, और इसराइल द्वारा फ़लस्तीनी लोगों के अधिकारों के हनन के मद्देनज़र, दो-राष्ट्र वाले समाधान के रास्ते में आगे बढ़ने वाली शान्ति प्रक्रिया शुरू करने के लिए धूमिल होती सम्भावनाओं पर गहरी चिन्ता व्यक्त की.

 रोज़मैरी डीकार्लो ने ज़ोर देकर कहा, “फ़लस्तीनियों को न्याय व सम्मान का जीवन जीने और आत्म-निर्णय एवं स्वतंत्रता के अधिकार की प्राप्ति का पूरा अधिकार है.

“संयुक्त राष्ट्र की स्थिति एकदम स्पष्ट है: इसराइल का अवैध क़ब्ज़ा ख़त्म हो. अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के अनुरूप दो-राष्ट्र स्थापना का समाधान अपनाया जाए. हम, इसराइल व एक स्वतंत्र फ़लस्तीनी देश को, शान्ति में, साथ-साथ वजूद में देखना चाहते हैं.”

1948 की ‘तबाही’

फ़लस्तीनियों के लिए, 1948 में हुए विशाल स्तर के विस्थापन का मतलब था कि उन्हें अपने घर छोड़कर, जो हाथ आया वही सामान साथ लेकर या ट्रकों में लादकर, नव-गठित देश इसराइल से बाहर जाना पड़ा.

विस्थापित आबादी की सेवार्थ सृजित संयुक्त राष्ट्र एजेंसी – UNRWA के अनुसार, वर्तमान में 59 लाख फ़लस्तीनी लोग, शरणार्थी के रूप में पंजीकृत हैं.

फ़लस्तीनी जन के अधिकारों पर यूएन समिति ने कहा कि यह दुखद वर्षगाँठ, दुनिया के सबसे लम्बे समय से चले आ रहे शरणार्थी संकट पर प्रकाश डालती है. यह अवसर ये प्रखर अनुस्मरण कराता है कि फ़लस्तीनी शरणार्थी जन, अपनी दुर्दशा  के न्यायोचित एवं स्थाई समाधान के इन्तेज़ार में, संघर्ष, हिंसा और क़ब्ज़े की स्थिति में जीने के लिए विवश हैं.

‘यादें बनी रहेंगी’

ट्रकों का एक क़ाफ़िला फ़लस्तीनी शरणार्थियों और उनके सामान को ग़ाज़ा से पश्चिमी तट के हैब्रोन इलाक़े को ले जाते हुए.
© 1949 UN Archives Photographer

सुबह के समय हुए इस कार्यक्रम में, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों और फ़लस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास सहित, अन्य प्रमुख वक्ताओं ने भाग लिया.

फ़लस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने कहा कि नकबा की स्मृति हमारे बीच सदैव जीवित रहेगी; और हमारे लोगों को इसराइल का क़ब्ज़ा समाप्त करने के लिए प्रेरित करती रहेगी.”

उन्होंने कहा, “इसराइली क़ब्ज़ा ज़रूर ख़त्म होगा और फ़लस्तीनियों के अधिकार की, आज नहीं तो कल जीत होगी ही, जिससे न केवल हमारे क्षेत्र में, बल्कि विश्व भर में शान्ति क़ायम होगी.”

‘सबसे लम्बा, अनसुलझा शरणार्थी संकट’

संयुक्त राष्ट्र की फ़लस्तीनी राहत एजेंसी – UNRWA के कमिश्नर-जनरल (महाआयुक्त), फ़िलिपे लैज़ारिनी ने एक वीडियो सन्देश में कहा कि फ़लस्तीनी शरणार्थियों की त्रासदी, विश्व का सबसे लम्बा व अनसुलझा शरणार्थी संकट बना हुआ है.

उन्होंने कहा, “उन्हें आज पहले से कहीं अधिक, हमारी सामूहिक एकजुटता की ज़रूरत है. सर्वजन के लिए एक राजनैतिक समाधान के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है. जब तक ऐसा हल नहीं निकलता, तब तक UNRWA का भी कोई विकल्प नहीं है; जब तक उनकी तकलीफ़ों का कोई न्यायसंगत समाधान नहीं निकलता, तब तक हमें उनकी सहायता जारी रखनी होगा.”

इस अवसर पर, यूएन मुख्यालय में सोमवार शाम को एक विशेष कार्यक्रम व संगीत समारोह आयोजित किया गया जिसमें कई फिल्में प्रदर्शित की गईं और अनेक फ़लस्तीनी कलाकारों का गीत-संगीत पेश किया गया.