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इसराइल द्वारा 'ग़ैरक़ानूनी बस्तियाँ' बसाने का मुद्दा - जवाबदेही तय किये जाने की पुकार

पश्चिमी तट में इसराइली बस्तियों का निर्माण.
Annie Slemrod/IRIN
पश्चिमी तट में इसराइली बस्तियों का निर्माण.

इसराइल द्वारा 'ग़ैरक़ानूनी बस्तियाँ' बसाने का मुद्दा - जवाबदेही तय किये जाने की पुकार

शान्ति और सुरक्षा

संयुक्त राष्ट्र के एक स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने शुक्रवार को कहा है कि अन्तरराष्ट्रीय क़ानून की अवहेलना के गम्भीर मामले की महज़ आलोचना करने के बजाय अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को आगे बढ़कर जवाब देना होगा. यूएन विशेषज्ञ का यह बयान इसराइल सरकार की उस घोषणा के बाद आया है जिसमें क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़ों में लगभग पाँच हज़ार नए घर बसाने की योजना को मंज़ूरी दी गई है. 

इसराइल द्वारा वर्ष 1967 से क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़ों में मानवाधिकारों की स्थिति पर यूएन के विशेष रैपोर्टेयर माइकल लिन्क ने अपने बयान में आगाह किया कि इसराइली बस्तियाँ वो ज़मीनें हड़प रही हैं जो एक स्वतन्त्र फ़लस्तीनी देश के लिये हैं.

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उन्होंने क्षोभ ज़ाहिर करते हुए कहा कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय इन गतिविधियों को देखता है, कभी-कभार आपत्ति दर्ज कराता है, लेकिन इस पर कार्रवाई नहीं करता. 

ग़ौरतलब है कि अक्टूबर 2020 के शुरू में इसराइल के रक्षा मन्त्रालय की एक योजना समिति ने चार हज़ार 948 नए मकानों को मंज़ूरी दी है. 

इसकी पृष्ठभूमि में यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा है कि “यह जवाबदेही तय किये जाने का समय है.”  

विशेष रैपोर्टेयर के मुताबिक ताज़ा घोषणा के बाद इसराइली सरकार इस वर्ष अब तक 12 हज़ार से ज़्यादा मकानों को मंज़ूरी दे चुकी है.  

ग़ैरसरकारी संगठन ‘Peace Now’ ने वर्ष 2012 में इस सम्बन्ध में वार्षिक मंज़ूरी के आँकड़ों पर नज़र रखने की शुरुआत की थी और यह अब तक की सबसे बड़ी संख्या है. 

मानवाधिकार परिषद ने माइकल लिन्क को वर्ष 2016 में विशेष रैपोर्टेयर नियुक्त किया था. 

उन्होंने कहा कि इसराइल ने भले ही अगस्त 2020 में बस्तियों को हड़प लेने की योजना को स्थगित कर दिया हो, उसके द्वारा इस तरह बस्तियों के बेरोकटोक विस्तार से फ़लस्तीनी इलाक़ों को क़ब्ज़े में लेना जारी है. 

“ये दोनों ही गतिविधियाँ संयुक्त राष्ट्र के चार्टर और अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय में 1998 रोम संविदा का स्पष्ट उल्लंघन है.”

मानवाधिकारों पर असर

स्वतन्त्र विशेषज्ञ ने सचेत किया है कि बस्तियों के विस्तार में तेज़ी से ज़मीनी स्तर पर मानवाधिकारों की पहले से ही नाज़ुक स्थिति और ज़्यादा ख़राब होती जाएगी.

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय के मुताबिक वर्ष 1979 से सुरक्षा परिषद ने कम से कम छह मर्तबा स्पष्ट किया है कि इसराइली बस्तियाँ अन्तरराष्ट्रीय क़ानून का खुला उल्लंघन है और उन्हें वैधानिक स्वीकृति हासिल नहीं है. 

वर्ष 2016 में प्रस्ताव 2334 के ज़रिये 15 सदस्य देशों वाली सुरक्षा परिषद ने इसराइल से तत्काल, पूर्ण रूप से बस्तियाँ सम्बन्धी गतिविधियों पर रोक लगाने की माँग की थी. 

वर्ष 2017 से मध्य पूर्व शान्ति प्रक्रिया के लिये यूएन के विशेष समन्वयक ने सुरक्षा परिषद को 14 बार अवगत कराया है कि इस मुद्दे पर इसराइल ने अनुपालन कार्रवाई आगे नहीं बढ़ाई है. 

अमेरिका ने इसराइल के साथ अपने मौजूदा समझौतों में तीन दिन पहले संशोधन किया है जिसके बाद ग़ैरक़ानूनी इसराइली बस्तियों में परियोजनाओं के लिये साझा धनराशि के इस्तेमाल की अनुमति होगी. 

यूएन विशेषज्ञ ने इस समझौते पर गहरी चिन्ता जताई है. 

अन्तरराष्ट्रीय क़ानून की अवहेलना

इससे पहले यह अनुमति उन्हीं परियोजनाओं के लिये थी जो इसराइल के अन्तरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त और वर्ष 1967 के पहले की सीमाओं के तहत हैं. 

माइकल लिन्क ने ज़ोर देकर कहा कि अमेरिका और इसराइल में द्विपक्षीय समझौते के द्वारा प्रस्ताव 2334 को पूरी तरह नज़रअन्दाज़ किया गया है. 

इस प्रस्ताव में सभी सदस्य देशों से बस्तियों को ग़ैरक़ानूनी मानते हुए मान्यता ना देने और इसराइली राज्यसत्ता के क्षेत्र और वर्ष 1967 से क़ाबिज इलाक़ों में भेद करने की पुकार लगाई गई है. 

विशेष रैपोर्टेयर के मुताबिक जंगल के क़ानून की उपेक्षा करने के लिये यह ज़रूरी है कि अन्तरराष्ट्रीय क़ानूनों का पालन किया जाए. 

उन्होंने कड़े शब्दों में कहा कि इस सम्बन्ध में जवाबदेही निर्धारित करते हुए सुरक्षा परिषद के निर्देशों की अवहेलना के नतीजे तय किये जाने होंगे. 

यूएन विशेषज्ञ ने स्पष्ट किया है कि इसराइल द्वारा फ़लस्तीनी घरों व सम्पत्तियों को ढहाए जाने और नई बस्तियों को मंज़ूरी देने की प्रक्रिया तेज़ हो रही है.

विशेष रैपोर्टेयर ने कहा है कि इसराइल के साथ मौजूदा व प्रस्तावित समझौतों की समीक्षा की जानी चाहिये और यूएन डेटाबेस व अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय में जाँच को समर्थन प्रदान किया जाना होगा. 

स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतन्त्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतन्त्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिये संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतन्त्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.