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अफ़ग़ानिस्तान में, सत्ता के दो वर्ष बाद भी ‘परिवर्तित’ तालेबान की अवधारणा की निन्दा

अफ़ग़ानिस्तान के बदख़शाँ प्रान्त के एक गाँव में, एक परिवार, संयुक्त राष्ट्र से मिली सहायता की बदौलत भोजन ग्रहण करते हुए.
© WFP/Sadeq Naseri
अफ़ग़ानिस्तान के बदख़शाँ प्रान्त के एक गाँव में, एक परिवार, संयुक्त राष्ट्र से मिली सहायता की बदौलत भोजन ग्रहण करते हुए.

अफ़ग़ानिस्तान में, सत्ता के दो वर्ष बाद भी ‘परिवर्तित’ तालेबान की अवधारणा की निन्दा

मानवाधिकार

अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान के सत्ता नियंत्रण के दो वर्ष पूरे होने पर, संयुक्त राष्ट्र के 30 से अधिक मानवाधिकार विशेषज्ञों ने, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से, अब अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में एक पुनर्जीवित दृढ़ संकल्प और मज़बूत एकजुटता प्रदर्शित करने का आहवान किया है. 

इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने सोमवार को जारी एक वक्तव्य में कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान के वास्तविक सत्ताधारियों के वादों और कार्य प्रणाली के बीच का अन्तर बहुत बढ़ा है, और "परिवर्तित" तालेबान की धारणा ग़लत साबित हुई है.

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यूएन विशेषज्ञों के वक्तव्य में कहा गया है कि अफ़ग़ानिस्तान पर तालेबान का क़ब्ज़ा हुए दो साल हो गए हैं, इस दौरान, अफ़ग़ान लोगों पर लागू की गई नीतियों के कारण विभिन्न मानवाधिकारों का निरन्तर, संगठित और चिन्ताजनक क्षरण हुआ है. इनमें शिक्षा, रोज़गार और अभिव्यक्ति की आज़ादी, सभा करने और संगठन बनाने की स्वतंत्रताओं के अधिकार शामिल हैं. 

‘अलगाव व उत्पीड़न'

संयुक्त राष्ट्र के इन स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कह है कि अफ़ग़ानिस्तान में लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में रखने, उत्पीड़न, दुर्व्यवहार, जबरन गुमशुदगी के मामलों के साथ-साथ, जबरन विस्थापन और आनन-फानन में मृत्युदंड दिए जाने की प्रामाणिक ख़बरों ने चिन्ताएँ बढ़ाई है.

यूएन विशेषज्ञों के अनुसार, सर्वाधिक प्रभावितों में, महिलाएँ और लड़कियाँ, जातीय, धार्मिक और अन्य अल्पसंख्यक, विकलांग जन, विस्थापित जन, एलजीबीटीक्यू+,  मानवाधिकार पैरोकार व नागरिक समाज के कार्यकर्ता, पत्रकार, शिक्षक और पूर्व सरकारी और सुरक्षा अधिकारी हैं.

उन्होंने कहा, “सत्ताधीन तालेबान प्रशासन ने बार-बार ये आश्वासन दिया है कि कोई भी प्रतिबन्ध अस्थाई होंगे, विशेष रूप से शिक्षा तक पहुँच के मामले में. उस आश्वासन के बावजूद धरातल पर नज़र आने वाली वास्तविक स्थिति ने, लोगों को अलग-थलग किए जाने, उन्हें हाशिए पर धकेले जाने और उनका उत्पीड़न का एक त्वरित, व्यवस्थित और व्यापक दायरे वाला चलन दिखाया है.”

महिलाओं व लड़कियों पर थोपी गईं पाबन्दियाँ

संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने ज़ोर देकर कहा कि तालेबान ने, पिछले वर्ष की तुलना में, महिलाओं और लड़कियों को पूरी तरह से अपने अधीन करने के उद्देश्य से, एक भेदभावपूर्ण प्रणाली स्थापित करने के लिए अतिरिक्त क़दम उठाए हैं. “ये संयुक्त कार्रवाइयाँ, लिंग-आधारित उत्पीड़न और मानवता के ख़िलाफ अपराध की श्रेणी में आते हैं.”

दिसम्बर 2022 में, तालेबान प्रशासन ने, महिलाओं के ग़ैर-सरकारी संगठनों में काम करने पर रोक लगा दी थी और अप्रैल 2023 में, यूएन की महिला कर्मचारियों के कामकाज पर पाबन्दी लगा दी गई.

तालेबान प्रशासन ने हाल ही में, अनेक प्रान्तों में कथित तौर पर स्कूलों को निर्देश दिया कि 10 वर्ष से अधिक उम्र की लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करने से प्रतिबन्धित किया जाएगा. ये प्रतिबन्ध कक्षा 6 से शुरू हुआ था.

यूएन विशेषज्ञों ने कहा, “हाल ही में, उन प्रतिष्ठानों को बन्द करने का निर्देश दिया गया जहाँ महिलाएँ परम्परागत रूप से अक्सर जाती रही हैं, मसलन ब्यूटी पार्लर, जिसका प्रबन्धन ज़्यादातर महिलाएँ ही करती हैं.”

इसके अलावा, शासन की अधिक समावेशी शैली के वादे पूरे नहीं हुए हैं. साथ ही, पूर्व सरकार के अधिकारियों और सैन्य अधिकारियों को दी गई आम माफ़ी की कथित तौर पर अवहेलना हुई है और हिरासत केन्द्रों में यातना और दुर्व्यवहार को रोकने के दिशानिर्देशों को अक्सर नज़रअन्दाज कर दिया जा रहा है.

सत्तारूढ़ प्रशासन ने पत्थर मारकर सज़ा देने, कोड़े मारने और दीवार में दफ़नाने जैसे कठोर और अपमानजनक दंड भी लागू किए हैं, जोकि स्थापित अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानदंडों के ख़िलाफ़ हैं. विशेषज्ञों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि "परिवर्तित" तालेबान की धारणा ग़लत साबित हुई है.

उत्पीड़न बन्द हो, आम माफ़ी क़ायम रहे

यूएन स्वतंत्र मानवअधिकार विशेषज्ञों के समूह ने छह बिन्दुओं की याचिका जारी करके, तालेबान से महिलाओं और लड़कियों के प्रति अपने रवैये बदलने और महिलाओं के काम करने पर लगी पाबन्दी को तत्काल हटाने से लेकर, महिलाओं और लड़कियों की आवाजाही की स्वतंत्रता और राजनैतिक व सार्वजनिक जीवन में भागेदारी सहि,त सभी मानवाधिकारों तक पहुँच, और गुणवत्तापूर्ण और व्यापक शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करने की पुकार लगाई.

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने, पूर्व सरकार के अधिकारियों और सुरक्षा अधिकारियों के साथ-साथ, नागरिक समाज के सदस्यों के ख़िलाफ़ बदले की हिंसा समाप्त करने और घोषित आम माफ़ी को पूरी तरह से बरक़रार रखने का भी आग्रह किया गया.

अपील में, मनमानी हिरासत और यातना को समाप्त करने, और ये सुनिश्चित करने का आहवान किया गया कि नागरिक समाज और पत्रकार जन, बिना किसी बाधा के काम कर सकें, व जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ भेदभाव को रोकने के लिए उपाय लागू किए जा सकें.

तालेबान ने, विभिन्न उम्र की लड़कियों की शिक्षा पर भी अनेक तरह की पाबन्दियाँ लगाई हैं.
© UNICEF/Sayed Bidel

मानवीय ज़रूरतों में उछाल

यूएन स्वतंत्र मानवअधिकार विशेषज्ञों ने अफ़ग़ानिस्तान में, लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था के बीच गम्भीर मानवीय स्थिति पर ध्यान दिलाते हुए कहा कि देश में लगभग एक करोड़ 60 लाख बच्चों को या तो भरपेट भोजन नहीं मिल रहा है और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच नहीं है.   

ऐसे में हानिकारक, भेदभावपूर्ण, दमनकारी और हिंसक प्रथाओं को बढ़ावा मिल रहा है, जिसमें कि जबरन बाल विवाह, दुर्व्यवहार और आर्थिक व यौन शोषण, बच्चों और शरीर के अंगों की बिक्री, जबरन और बाल मज़दूरी, तस्करी और असुरक्षित प्रवासन जैसे मामले शामिल हैं.

लगभग तीन करोड़ अफ़गान लोगों को सहायता की आवश्यकता है, जोकि अब तक की सबसे बड़ी संख्या है. हालाँकि, संयुक्त राष्ट्र मानवीय मामलों के समन्वय कार्यालय - OCHA ने हाल ही में रिपोर्ट दी है कि उन्हें समर्थन देने के लिए 3 अरब 20 करोड़ डॉलर की अपील के जवाब में, एक अरब 30 करोड़ डॉलर के "महत्वपूर्ण वित्त पोषण अन्तर" का सामना कर रही है.

अफ़ग़ानिस्तान के लिए पुनः प्रतिबद्धता 

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से आहवान किया कि अगर मौजूदा स्थिति बदलनी है तो "नए जोश और एकजुटता के साथ अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के प्रति प्रतिबद्धता दिखानी होगी."

उन्होंने ऐसी निर्णायक कार्रवाई का आग्रह किया है जिसमें तमाम अफ़गान वार्ताकारों के साथ राजनैतिक सम्पर्क सुनिश्चित किया जाए, जो मानवाधिकारों और लैंगिक एकीकरण नज़रिए पर केन्द्रित हो. इस कार्रवाई में, मानवीय सहायता धन की कमी को दूर करना, सहायता आपूर्ति के ऐसे रास्तों की तलाश करना है जिनके ज़रिए सहायता, सीधे तौर पर अफ़ग़ान लोगों तक पहुँचे.

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ

स्वतंत्र मानवाधिकारों की नियुक्ति, जिनीवा स्थित मानवाधिकार परिषद करती है. इन मानवाधिकार विशेषज्ञों का काम किसी विशेष मानवाधिकार स्थिति या देश की स्थिति की निगरानी करके, उस पर रिपोर्ट सौंपना होता है. ये अपनी निजी और स्वैच्छिक स्थिति में काम करते हैं, वो यूएन स्टाफ़ नहीं होते हैं, और उन्हें इस कामकाज के लिए संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.