अफ़ग़ानिस्तान के साथ सम्पर्क व बातचीत ज़रूरी, अन्यथा बिखराव का जोखिम

अफ़ग़ानिस्तान के लिये, संयुक्त राष्ट्र महासचिव के विशेष उप प्रतिनिधि मार्कस पॉटज़ेल ने सुरक्षा परिषद को देश में हालात से अवगत कराते हुए बताया कि यदि तालेबान, सभी अफ़ग़ान नागरिकों के अधिकारों का सम्मान करने और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के साथ रचनात्मक ढंग से सम्पर्क व बातचीत में विफल रहा, तो देश का भविष्य अनिश्चित है.
यूएन दूत ने कहा कि हाल के महीनों में प्रगति दर्ज की गई है मगर उसकी रफ़्तार बेहद धीमी है और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का संयम ख़त्म होता रहा है.
उन्होंने लड़कियों की माध्यमिक शिक्षा पर जारी प्रतिबन्ध और महिला अधिकारों के लिये बढ़ती पाबन्दियों की ओर ध्यान आकृष्ट किया.
If Taliban continue failing to uphold the rights of all Afghans & to engage constructively with int’l community, #Afghanistan’s future is uncertain: fragmentation, isolation, poverty & internal conflict are likely scenarios, UNAMA envoy @PotzelMarkus tells Security Council today. pic.twitter.com/jbl2RSmlYS
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यूएन दूत ने कहा कि ये एक संकेत है कि तालेबान, देश की 50 फ़ीसदी से अधिक आबादी के लिये उदासीन है और इसके लिये अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ने का जोखिम मोल लेने के लिये तैयार है.
मार्कस पॉटज़ेल के अनुसार, महिलाओं व लड़कियों को केवल घर तक सीमित कर दिया जाना, ना उन्हें उनके अधिकारों से वंचित करता है, बल्कि अफ़ग़ानिस्तान के लिये उनके योगदान को भी नकार दिया जाता है.
अफ़ग़ानिस्तान में यूएन सहायता मिशन ने सशस्त्र झड़पों व घातक आतंकी हमलों तक, देश में आतंकवादी समूहों व अन्य गुटों की बढ़ती गतिविधियों की निगरानी की है.
उप विशेष प्रतिनिधि ने प्रतिनिधियों को बताया कि, “तालेबान ने इस्लामिक स्टेट खोरोसान प्रान्त (ISKP) की क्षमताओं के बारे में हमारी पूर्व चेतावनियों को ख़ारिज कर दिया था.”
मगर, यूएन दूत के अनुसार इस गुट ने पिछले कुछ महीनों में दर्शाया है कि ये तालेबान के नज़दीकी लोगों की हत्याओं को अंजाम दे सकता है, विदेशी दूतावासों पर हमले किये जा सकते हैं और अफ़ग़ानिस्तान की सीमा पर पड़ोसी देशों पर रॉकेट भी दागे जा सकते हैं.
इसके अलावा, ISKP गुट के लिये, शिया मुसलमानों व अन्य जातीय अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाने की मुहिम को भी जारी रखना सम्भव है.
यूएन दूत ने बताया कि तालेबान के सुरक्षा बलों और सशस्त्र विरोधी गुटों के बीच पंजशीर, बागलान, कपीसा, टकहर और बदकशाँ प्रान्तों में झड़पें जारी हैं.
इन झड़पों के सिलसिले में प्राप्त ख़बरों, वीडियों व फ़ोटों के आधार पर उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि पंजशीर में मानवाधिकारों का उल्लंघन किये जाने की आशंका है.
मार्कस पॉटज़ेल ने न्यायेतर हत्याओं के आरोपों की जाँच कराए जाने की मांग की है. उन्होंने कहा कि यूएन मिशन, मानवाधिकार हनन के सभी मामलों की निगरानी का कार्य जारी रखेगा.
उप विशेष प्रतिनिधि का कहना है कि देश में प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2007 के स्तर तक पहुँच गई है, और 15 वर्षों की आर्थिक प्रगति पर इसने पानी फेर दिया है, जिसकी एक वजह, अन्तरराष्ट्रीय बैंकिंग व्यवस्था से अफ़ग़ानिस्तान का अलग होना है.
उन्होंने बताया कि देश में नक़दी की उपलब्धता (liquidity), बहुत हद तक संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानवीय राहत अभियानों के लिये लाये जाने वाली वित्तीय सहायता पर निर्भर है.
यूएन के वरिष्ठ अधिकारी ने ज़ोर देकर कहा कि यह नक़दी अफ़ग़ानिस्तान के लोगों की ज़रूरतों को पूरा करती है और तालेबान प्रशासन तक नहीं पहुँचती है.
मगर, सहायता धनराशि का प्रबन्ध हो पाना भी अभी अनिश्चित है, चूँकि 2022 मानवीय राहत योजना में 4.4 अरब डॉलर की अपील की गई थी, जिसमें से केवल 1.9 अरब डॉलर का ही इन्तेज़ाम हो पाया है.
उप विशेष प्रतिनिधि ने कहा कि अफ़ग़ान जनता की दीर्घकालीन आवश्यकताओं को, मानवीय सहायता और आर्थिक उपायों के ज़रिये पूरा कर पाना सम्भव नहीं है.
मसलन, आपात राहत, अति-आवश्यक सेवाओं की वितरण प्रणाली, स्वास्थ्य व जल का स्थान नहीं ले सकती है और ना ही आर्थिक बदहाली को टाला जा सकता है.
उन्होंने कहा कि निर्णय-निर्धारण में राजनैतिक समावेशिता व पारदर्शिता के अभाव में, अधिकांश अफ़ग़ान नागरिकों को सरकार में प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है.
मार्कस पॉटज़ेल ने कहा कि तालेबान के स्वयंभू अमीरात को अभी किसी अन्य देश ने मान्यता नहीं दी है, मगर अन्तरराष्ट्रीय समुदाय देश को ध्वस्त होते भी नहीं देखना चाहेगा.
“अगर, तालेबान अफ़ग़ान समाज के सभी घटकों की आवश्यकताओं का ख़याल नहीं रखता और सम्भावित अवसर की इस संक्षिप्त घड़ी में सृजनात्मक ढंग से सम्पर्क व बातचीत नहीं करता है, तो यह स्पष्ट नहीं है कि फिर क्या होगा.”
यूएन दूत ने दरारें चौड़ी होने, देश के अलग-थलग पड़ने, निर्धनता गहराने और अन्दरूनी टकराव के और अधिक गम्भीर होने की आशंका जताई है.
इससे विशाल स्तर पर लोगों के विस्थापित होने और देश में आतंकवादी संगठनों के लिये एक अनुकूल माहौल तैयार होने का जोखिम पैदा होगा व अफ़ग़ान समुदायों की पीड़ा बढ़ेगी.
इसलिये ये ज़रूरी है कि अफ़ग़ानिस्तान के साथ सम्पर्क व बातचीत के रास्ते स्थापित किये जाएँ.