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सूडान युद्ध के कारण, 40 लाख लोग विस्थापित

चाड में पहुँचे सूडानी शरणार्थियों को, संयुक्त राष्ट्र द्वारा खाद्य सहायता का वितरण.
WFP/Marie-Helena Laurent
चाड में पहुँचे सूडानी शरणार्थियों को, संयुक्त राष्ट्र द्वारा खाद्य सहायता का वितरण.

सूडान युद्ध के कारण, 40 लाख लोग विस्थापित

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) ने चेतावनी भरे शब्दों में कहा है कि सूडान में युद्ध ने, पिछले लगभग 100 दिनों के दौरान, क़रीब 40 लाख लोगों को अपने घर छोड़कर अन्यत्र स्थानों पर जाने के लिए मजबूर कर दिया है.

अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन के नवीनतम आँकड़ों से संकेत मिलता है कि सूडानी सेना और अर्द्धसैनिक बलों के बीच युद्ध ने, विशाल संख्या में लोगों को उनके मूल स्थानों से बेदख़ल कर दिया है, जिनमें से लगभग 9 लाख 26 हज़ार लोगों ने, विदेशों में शरण ली है और क़रीब 30 लाख लोग, देश के भीतर ही विस्थापित हुए हैं.

संगठन द्वारा मानवीय स्थिति की नवीनतम जानकारी के अनुसार, सूडान के सभी 18 प्रान्तों में लोग अपने मूल स्थान छोड़ने को विवश हुए हैं. 

संगठन की मैदानी टीमों ने ख़बर दी है कि देश के भीतर विस्थापित हुए लोगों में सर्वाधिक संख्या ख़ारतूम प्रदेश की है, जहाँ से 71 प्रतिशत लोग विस्थापित हुए हैं.

यूएन प्रवासन एजेंसी ने ज़ोर देकर कहा है कि सूडान में पिछले 108 दिनों में हुए विस्थापन के मौजूदा अनुमान, उससे पिछले चार वर्षों के दौरान हुए विस्थापन से भी ज़्यादा हो गए हैं.

मगर संगठन ने ये भी ध्यान दिलाया है कि अनेक स्थानों तक, युद्ध के कारण पहुँच पाना असम्भव हो रहा है, जिसका मतलब है कि विस्थापितों की संख्या के बारे में मौजूदा आकलन, आरम्भिक ख़बरों या अनुमानों पर आधारित हैं.

सीमाओं के पार आश्रय

प्रवासन संगठन (IOM) के अनुसार, कुल 9 लाख 26 हज़ार, 841 लोगों ने, पड़ोसी देशों में शरण ली है, जिनमें मिस्र, लीबिया, चाड मध्य अफ़्रीकी गणराज्य (CAR), दक्षिण सूडान और इथियोपिया प्रमुख हैं.

यूएन शरणार्थी उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रैंडी ने, गत 24 जुलाई युद्ध को, 100 दिन पूरे होने के अवसर पर कहा था कि युद्धरत पक्षों को ये युद्ध तत्काल रोक देना चाहिए, क्योंकि सूडान से बाहर निकलने वाले शरणार्थियों के लिए चिन्ताएँ बढ़ रही हैं.

संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी – UNHCR के अनुसार, सूडान से निकलकर पड़ोसी देशों में पनाह लेने वालों के लिए हालात बहुत कठिन हैं, जहाँ विस्थापितों के लिए बनाए गए शिविरों में अत्यधिक भीड़ है. 

साथ ही, बारिश के आगामी मौसम निकट होने के कारण, शरणार्थियों का स्थानान्तरण और उन तक सहायता सामग्री पहुँचाना और भी कठिन साबित हो रहा है.

अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन ने भी इन चिन्ताओं को दोहराते हुए, बुधवार को आगाह किया कि बारिश ने बाढ़ का ख़तरा उत्पन्न कर दिया है और उसके कारण, पहले से ही मौजूद नाज़ुक हालात, और भी बदतर हो सकते हैं.

युद्ध की भयावहता

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने गत सप्ताह, उस विस्थापित आबादी में संक्रामक व अन्य बीमारियाँ फैलने की ख़बर दी थी, जिसने दुर्लभ स्थानों पर आश्रय लिया था, जहाँ स्वास्थ्य सेवाएँ सीमित हैं.

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने ये भी बताया था कि युद्ध के दौरान 50 से अधिक स्वास्थ्य सेवाओं पर हमले किए गए हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन, अलबत्ता सूडान में और पड़ोसी देशों में स्वास्थ्य सेवाओं को समर्थन दे रहा है, मगर संगठन ने साथ ही आगाह भी किया है कि स्वास्थ्य संकट ने समूचे क्षेत्र को प्रभावित किया है.

वहीं, इस युद्ध को समाप्त करने के प्रयासों के बीच, मानवीय सहायताकर्मियों ने भय व्यक्त किया है कि पहले से ही निर्बल हालात में जी रही आबादी के लिए, युद्ध की चपेट में आने से, हालात और भी बदतर हो सकते हैं.