ECOSOC: जनसंहार, अत्याचार-अपराधों की रोकथाम के लिए, क्या कुछ और किया जा सकता है

देशों के राजदूत, यूएन अधिकारी और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के विशेषज्ञ, जनसंहार, जातीय सफ़ाए, युद्धापराध और मानवता के विरुद्ध अपराधों को रोकने के तरीक़ों के बारे में अपने विचार, संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC) की, न्यूयॉर्क में हुई एक विशेष बैठक में साझा कर रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र को संघर्षों, खाद्य पदार्थों और ऊर्जा की बढ़ती क़ीमतों, गहराती विषमताओं व तनावों जैसे मौजूदा वैश्विक संकटों को देखते हुए, इन अत्याचारों के होने की प्रबल आशंका है. इन समस्याओं में, कोविड-19 महामारी और जलवायु परिवर्तन ने और इज़ाफ़ा किया है.
As the saying goes, we will be judged in years to come by how we respond to genocide on our watch.
Let us answer again with a first – that we took a step, together, to end it.
Remarks @UNECOSOC meeting on prevention of genocide and other crimes🔗: https://t.co/9IVs8ZlzZr https://t.co/WE1vW6uKeZ
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आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC) की अध्यक्षा लैशेज़ारा स्तोएवा ने अपनी टिप्पणी में ध्यान दिलाया कि 2030 का टिकाऊ विकास एजेंडा किस तरह, संरक्षा की ज़िम्मेदारी पर वैश्विक संकल्प (R2P) के साथ मिलकर, इस पृथ्वी पर मौजूद हर एक व्यक्ति की आहमियत और गरिमा को क़ायम रखने की ज़रूरत को रेखांकित करता है.
लैशेज़ारा स्तोएवा ने कहा कि सामाजिक-आर्थिक अधिकारों सहित, बुनियादी स्वतंत्रताओं और मानवाधिकारों की संरक्षा से, 2030 के एजेंडा की बुनियाद मज़बूत होती है, और संघर्षों के मूल कारणों से निपटने व समुदायों को और ज़्यादा समावेशी व सहनशील बनाने के लिए अहम है.
हालाँकि उन्होंने आगाह भी किया कि मौजूदा वैश्विक चुनौतियों को देखते हुए, केवल वादे करना पर्याप्त नहीं है, जिनसे टिकाऊ विकास प्राप्ति की दिशा में प्रगति कमज़ोर पड़ रही है और अभी तक हुई प्रगति भी पलट रही है.
लैशेज़ारा स्तोएवा ने कहा, “इन चुनौतियों का सामना करने के लिए नए उत्साह से भरपूर बहुपक्षवाद और एक ज़्यादा मज़बूत संयुक्त राष्ट्र की आवश्यकता है. हमें सामाजिक प्रगति को प्रोत्साहन देने, बेहतर जीवन-यापन के बेहतर मानकों और सभी के लिए बेहतर मानवाधिकार सुनिश्चित करने के लिए, तमाम हितधारकों के साथ सम्पर्क बढ़ाने की ज़रूरत है, जिनमें युवजन और महिलाएँ भी शामिल हैं.”
यूएन महासभा के अध्यक्ष कसाबा कोरोसी ने कहा कि जनसंहार में ऐसे कृत्य शामिल होते हैं जिनका उद्देश्य किसी राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को मिटाना होता है, और दुखद अनुभवों ने दिखाया है कि यह, धीरे-धीरे चलने वाली एक प्रक्रिया है.
उन्होंने कहा कि हेट स्पीच, जन समूहों को “अन्य” बताकर उन्हें अमानवीय स्थापित करना, और उनके मानवाधिकारों का बारम्बार उल्लंघन करना, जन अत्याचार यानि व्यापक पैमाने पर अत्याचारों के शुरुआती संकेत हैं.
कसाबा कोरोसी ने कहा, “किसी खर-पतवार (Weed) की तरह, जनसंहार की जड़ें भेदभाव और कृत्रिम तरीक़े से भड़काए हुए जातीय, धार्मिक या सामाजिक मतभेदों से पनपती हैं. जनसंहार की कोंपलें तब फूटती हैं जब विधि का शासन कमज़ोर पड़ता है या टूटता है.”
उन्होंने कहा कि जनसंहार की रोकथाम के लिए, इसकी जड़ों को उखाड़ने के साथ-साथ, जोखिमों का सामना करने वाले समुदायों की संरक्षा सुनिश्चित करना ज़रूरी है, जिनमें अल्पसंख्यक और विशेष रूप से महिलाएँ व लड़कियाँ शामिल हैं.
महासभा अध्यक्ष ने शिक्षा की परिवर्तनकारी भूमिका की तरफ़ ध्यान दिलाते हुए कहा कि “शिक्षा, सह-अस्तित्व, परस्पर सम्मान, सहनशीलता और सहयोग के वातावरण को प्रोत्साहन देकर, हिंसक अतिवाद के ख़तरे के विरुद्ध समाजों को मज़बूत कर सकती है.”
संयुक्त राष्ट्र ने रवांडा और बालकन्स देशों में, 1990 के दशक में जनसंहार व अत्याचारों को रोकने में अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की नाकामी के बाद, जनसंहार की रोकथाम के लिए विशेष सलाहकार का शासनादेश स्थापित किया था. इस पद पर इस समय ऐलिस वायरीमू न्देरीतू काम कर रही हैं.
ऐलिस वायरीमू न्देरीतू ने इस विशेष बैठक में शिरकत करने वालों से कहा कि संरक्षा की ज़िम्मेदारी, मानवाधिकार सुनिश्चित करने के दायित्वों को पूरा करने की, देशीय और अन्तरराष्ट्रीय नीतियों का एक मामला है.
उन्होंने कहा, “इसलिए हमें, जनसंहार, युद्धापराध, नस्लीय सफ़ाए और मानवता के विरुद्ध अपराधों की रोकथाम के सामाजिक व आर्थिक उपायों को, बुनियादी अधिकारों के दायरे में देखना होगा. पर्याप्त भोजन, पर्याप्त आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा, रोज़गार परक कामकाज, जल और स्वच्छता का अभाव, अत्याचार-अपराधों के लिए अनुकूल हालात बनाता है.”
ऐलिस वायरीमू न्देरीतू ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि कोविड-19 महामारी ने आर्थिक व सामाजिक अधिकारों को व्यापक तरीक़े से प्रभावित किया है, और हेट स्पीच व भेदभाव के कारण, अत्याचार-अपराधों का जोखिम बढ़ाया है.
ऐलिस वायरीमू न्देरीतू ने कहा कि देशों की सरकारों ने वैश्विक संकटों का सामना करने के लिए, अपनी आबादियों को समर्थन देने की ख़ातिर, अनेक उपाय अपनाए जिनमें नक़दी हस्तान्तरण, स्कूलों में भोजन ख़ुराक का प्रबन्ध, बेरोज़गारी से सुरक्षा और सामाजिक संरक्षा के तहत मिलने वाले योगदान – भुगतान में अस्थाई बदलाव शामिल हैं.
कुछ देशों ने हेट स्पीच और भेदभाव का मुक़ाबला करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र व सोशल मीडिया कम्पनियों के साथ भी हाथ मिलाया.
ऐलिस वायरीमू न्देरीतू ने कहा कि इन उपायों ने सन्देह महामारी के प्रतिकूल प्रभावों का असर कम करने और उनकी रोकथाम में योगदान किया, मगर अभी और ज़्यादा कार्रवाई की आवश्यकता है.
उन्होंने अत्याचार-अपराधों और सामाजिक-आर्थिक निर्बलताओं के बीच सम्बन्ध पर, शोध व नीति को आगे बढ़ाने के लिए, ECOSOC के साथ सहभागिता बढ़ाने का प्रस्ताव रखा.