कम्बोडिया: घृणा और उत्पीड़न के ख़तरों के बारे में यूएन प्रमुख की चेतावनी

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि कम्बोडिया में ख़मेर रूज के शासन के दौरान अपनी जान गँवाने वाले और बेतहाशा तकलीफ़ों से गुज़रने वाले लोगों की यादों को सहेजने से, ये सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि इस तरह के अत्याचार दोहराए नहीं जाएँ.
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने रविवार को देश की राजधानी नॉम पेन्ह में तुओल स्लेंग जनसंहार संग्रहालय का दौरा करते समय कही.
At Tuol Sleng today, I paid tribute to the victims & survivors of the atrocity crimes committed during the Khmer Rouge period in Cambodia.
With hate speech & discrimination on the rise in every corner of the world, remembering those who suffered is more important than ever. https://t.co/N1iqxFx6Jj
antonioguterres
यह संग्रहालय 1975 से 1979 के बीच ख़मेर रूज के रक्तरंजित शासन काल में बनाए गए कुख्यात एस-21 जाँच व बन्दी केन्द्र की भयावहता की याद बरक़रार रखने के लिये बनाया गया है.
ऐसा अनुमान है कि पूरे कम्बोडिया से, लगभग 18 हज़ार लोग इस बन्दीग्रह में लाए गए, जोकि राजधानी के केन्द्रीय इलाक़े में स्थित एक पूर्व सैकंडरी स्कूल में बनाया गया था. उनमें से केवल कुछ ही लोग जीवित बचे थे.
एंतोनियो गुटेरेश ने कहा, “तुओल स्लेंगर एक आवश्यक स्मारक है. इसकी रक्तरंजित ईंटें और टाइलें, हम सभी के लिये एक चेतावनी हैं: जब नफ़रत क़ाबू से बाहर हो जाती है तो ऐसा कुछ होता है; जब इनसानों पर अत्याचार किये जाते हैं और लोगों के मानवाधिकारों का हनन किया जाता है तो ऐसा कुछ होता है.”
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने, पूरे कम्बोडिया में ख़मेर रूज की क्रूरता के तमाम पीड़ितों और जीवित बचे लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिये संग्रहालय का दौरा किया.
ख़मेर रूज का शासन एक ऐसी विचारधारा पर आधारित था जिसकी जड़ें विभिन्न साम्यवादी विश्वासों और राजनीति में टिकी थीं. धर्म, परम्पराएँ, और गहरी जड़ों वाले पारिवारिक सम्बन्ध निषिद्ध थे.
लोगों को ज़बरदस्ती प्रमुख शहरों से निकालकर, देश के दूरदराज़ वाले इलाक़ों में खेतीबाड़ी में काम करने के लिये भेजा गया.
स्कूल, पगोड़ा, उद्योग और फ़ैक्टरियाँ तबाह किये गए, और बुद्धिजीवियों, पेशेवर लोगों व बौद्ध सन्तों की हत्याएँ की गईं.
समझा जाता है कि उस जबरन मज़दूरी, भुखमरी, उत्पीड़न और फाँसी दिये जाने के चलन के दौरान, लगभग 20 लाख लोगों ने अपनी जानें गँवाईं, जोकि देश की कुल आबादी का लगभग एक चौथाई यानि 25 प्रतिशत हिस्सा था.
तुओल स्लेंग केन्द्र में लाए गए लोगों की तस्वीरें खींचीं गई और अनेक लोगों को प्रताड़ित किया गया; उदाहरण स्वरूप, ये झूठी स्वीकारोक्तियाँ हासिल करने के लिये कि वो संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार के गुप्त एजेंट थे.
बड़ी संख्या में बन्दियों को हिरासत में लिया गया, उनसे पूछताछ की गई और फिर उन्हें मार दिया गया, या फिर राजधानी के बाहरी इलाक़े में स्थित चोएयुंग इक नामक एक अन्य स्थल पर ले जाया गया.
ये उन अनेक स्थानों में से एक था जहाँ बड़े पैमाने पर लोगों को सामूहिक स्तर पर फाँसी दी गई.
तुओल स्लेंग स्थल पर बहुत से कमरों को बिल्कुल उसी स्थिति में रखा गया है, जैसे कि वो ख़मेर रूज शासन के दौरान थे, जब वियतनामी सैनिकों ने उन्हें सत्ता से बेदख़ल किया था.
यूएन महासचिव ने रविवार को कहा, “इन दीवारों के भीतर जो उत्पीड़न हुआ, वो भयावह और भीषण था. जीवत बचने और सहनक्षमता की मिसालें, भावुक करने वाली और प्रेरणा देने वाली हैं.”
एंतोनियो गुटेरेश ने ख़मेर रूज शासन के दौरान किये गए व्यापक अत्याचारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में संग्रहालय को धन्यवाद दिया, जोकि यह सुनिश्चित करने के प्रयासों का हिस्सा है कि ऐसा कभी दोबारा ना हो.
उन्होंने याद करते हुए कहा कि कम्बोडिया के न्यायालय में असाधारण चैम्बरों ने, ख़मेर रूज शासन के नेताओं को, इन अपराधों के लिये जवाबदेह ठहराया है और पीड़ितों व जीवित बचे लोगों को एक आवाज़ मुहैया कराई.
उन्होंने कहा, “ये आवाज़ें, अतीत से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं, एक ऐसे समय में जबकि दुनिया में हर जगह नफ़रत, दुर्व्यवहार, भेदभाव और प्रताड़ना उभार पर हैं.”
यूएन प्रमुख ने ज़ोर देकर कहा कि तुओल स्लेंग में जिन लोगों ने तकलीफ़े उठाएँ और अपनी जान गँवाई, उनकी यादों को सहेजने से, अत्याचारों को दोहराने से रोकने में मदद मिलेगी.
एंतोनियो गुटेरेश ने कहा, “एक जीवित बचे व्यक्ति ने अपनी जो दास्ताँ मुझे सुनाई, वो मैं अपनी तीसरी पीढ़ी को सुनाने का वादा करता हूँ, और मैं उनसे ये दास्ताँ, अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी सुनाने के लिये कहूंगा. ये बहुत ज़रूरी है कि जो कुछ भी हुआ, उसकी स्मृति कभी भी ख़त्म ना हो.”
“जनसंहार और अन्य तरह के अत्याचार अपराधों की बहुत आरम्भिक चेतावनियों को पहचान कर, और समावेश व गरिमा के मूल्यों का सम्मान करके, हम एक ऐसे भविष्य की बुनियाद रख सकते हैं जिसमें इस तरह के अत्याचार कभी फिर हों ही नहीं.”
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