जलवायु संकट: ग़लत दिशा में आगे बढ़ रही है दुनिया, नई रिपोर्ट में चेतावनी
संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और साझीदार संगठनों की एक नई रिपोर्ट में स्पष्ट शब्दों में एक गम्भीर चेतावनी जारी करते हुए कहा गया है कि जलवायु विज्ञान स्पष्टता से दर्शाता है कि मानवता ग़लत दिशा में आगे बढ़ रही है. रिपोर्ट के अनुसार आकाँक्षाओं और वास्तविकताओं के बीच की विशाल खाई है और महत्वाकाँक्षी कार्रवाई के अभाव में जलवायु परिवर्तन के विनाशनकारी सामाजिक-आर्थिक प्रभाव होंगे.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के समन्वय में तैयार रिपोर्ट, 'United in Science', दर्शाती है कि वातावरण में ग्रीनहाउस गैस की सघनता का, रिकॉर्ड स्तर को छूना जारी है.
#UnitedinScience:Greenhouse gases at record highCO2 emissions above pre-COVID level#ClimateAction pledges insufficientWe just had warmest 7 years on recordRisk of tipping points increasingCities are vulnerable#EarlyWarningEarlyAction will save liveshttps://t.co/EqS88lX5a9 pic.twitter.com/OvJdlwfVpl
WMO
वैश्विक महामारी के दौरान तालाबन्दियों के कारण गिरावट के बाद, जीवाश्म ईंधन से होने वाले उत्सर्जन की दर अब फिर से महामारी के पूर्व के स्तर से ऊपर पहुँच गई है.
यूएन प्रमुख ने रिपोर्ट के सिलसिले में अपने वीडियो सन्देश में कहा, “इस वर्ष की United in Science रिपोर्ट दर्शाती है कि जलवायु प्रभाव, तबाही की ओर अनजान से क्षेत्र में प्रवेश कर रही है.”
“इसके बावजूद, जीवाश्म ईंधन के प्रति इश लत को हम और बढ़ावा दे रहे हैं, जबकि लक्षण तेज़ी से बद से बदतर होते जा रहे हैं.”
रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2030 के लिये उत्सर्जन में कमी लाने की महत्वाकाँक्षा में सात गुना वृद्धि करनी होगी, ताकि जलवायु संकल्पों को पैरिस जलवायु समझौते में तय 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य के अनुरूप बनाया जा सके.
बताया गया है कि पिछले सात वर्ष, रिकॉर्ड पर अब तक के सबसे गर्म साल साबित हुए हैं.
इस बात की 48 प्रतिशत सम्भावना है कि अगले पाँच वर्षों में से किसी एक साल में, वार्षिक औसत तापमान, 1850-1900 के औसत तापमान से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक हो.
विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में वृद्धि होगी, जलवायु प्रणाली में बड़े बदलाव आने के पड़ाव तक पहुँचने की सम्भावना को भी नकारा नहीं जा सकता.
गहराता जलवायु संकट
अध्ययन में इस वर्ष विश्व के विभिन्न हिस्सों में चरम मौसम घटनाओं के अनेक उदाहरणों को भी साझा किया गया है.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने चिन्ता जताई कि बाढ़, सूखा, ताप लहरें, चरम तूफ़ान और जंगलों में आग लगने की घटनाएँ बद से बदतर हो रही हैं और उनकी आवृत्ति से रिकॉर्ड ध्वस्त हो रहे हैं.
“योरोप में ताप लहरें. पाकिस्तान में विशाल बाढ़. चीन, हॉर्न ऑफ़ अफ़्रीका और अमेरिका में लम्बी अवधि का गम्भीर सूखा.”
“इन आपदाओं के नए पैमानों के सम्बन्ध में कुछ भी स्वाभाविक नहीं है. वे मानवता की जीवाश्म ईंधन के लिये लत की क़ीमत है.”
विश्व भर के शहरों में करोड़ों लोग रहते हैं. शहरों को मानव-जनित कुल उत्सर्जन के 70 प्रतिशत के लिये ज़िम्मेदार माना जाता है, जहाँ बदलती जलवायु के कारण सामाजिक-आर्थिक प्रभाव बढ़ने की आशंका है.
रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि सर्वाधिक सम्वेदनशील हालात में रहने के लिये मजबूर लोगों को सबसे अधिक पीड़ा से गुज़रना होगा.
मानव गतिविधियाँ ज़िम्मेदार
यूएन मौसम विज्ञान संगठन के प्रमुख पेटेरी टालस ने कहा कि जलवायु विज्ञान यह दर्शाने में सक्षम है कि चरम मौसम की जिन घटनाओं का हम अनुभव कर रहे हैं, मानव-जनित जलवायु परिवर्तन की वजह से उनकी गहनता और आवृत्ति बढ़ने की सम्भावना है.
“हमने यह इस वर्ष बार-बार देखा है, त्रासदीपूर्ण प्रभाव के साथ. यह पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि हम समय पूर्व चेतावनी प्रणालियों पर कार्रवाई के स्तर को बढ़ाएं, ताकि निर्बल समुदायों के लिये मौजूदा व भावी जलवायु जोखिमों के प्रति सहनक्षमता विकसित की जा सके.”
जलवायु चुनौती के मद्देनज़र, समय पूर्व चेतावनी प्रणालियों को एक ऐसा कारगर व व्यावहारिक उपाय बताया गया है कि जिससे लोगों की ज़िन्दगियों की रक्षा की जा सकती है और निवेश का लाभ उठाया जा सकता है.
कुछ अहम तथ्य
- वातावारण में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH4) और नाइट्रस ऑक्साइड का स्तर बढ़ना जारी है. वर्ष 2020 में महामारी के दौरान CO2 उत्सर्जन में अस्थाई गिरावट दर्ज की गई थी, मगर उसका वातावरण में सघनता में वृद्धि पर कोई ज़्यादा असर नहीं हुआ है.
- वैश्विक जीवाश्म ईंधन CO2 उत्सर्जन, 2021 में महामारी से पहले के अपने स्तर पर लौट आया, जबकि 2020 में इसमें 5.4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी.
- शुरुआती आँकड़े दर्शाते हैं कि वर्ष 2022 में, जनवरी से मई की अवधि के दौरान, वैश्विक CO2 उत्सर्जन, 2019 में इसी अवधि में दर्ज किये गए स्तर से 1.2 प्रतिशत अधिक हैं. इसकी वजह अमेरिका, भारत और अन्य योरोपीय देशों में बढ़ोत्तरी को बताया गया है.
- 2015 से 2021 तक, पिछले सात वर्ष रिकॉर्ड पर सर्वाधिक गर्म साल साबित हुए हैं. 1850-1900 की तुलना में 2018-2022 के दौरान वैश्विक औसत तापमान को 1.17 डिग्री सेल्सियस ऊपर आंका गया है.
- पृथ्वी प्रणाली पर कुल ताप का क़रीब 90 फ़ीसदी महासागर में एकत्र है, और 2018 से 2022 के दौरान, महासागर ताप की मात्रा को अन्य किसी पाँच वर्षों की अवधि में ज़्यादा मापा गया है. पिछले दो दशकों में महासागरों के तापमान में भी तेज़ बढ़ोत्तरी हुई है.
- वर्ष 2030 के लिये राष्ट्रीय स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में कटौती के नए संकल्पों में ग्रीनहाउस गैसों में कमी लाने की दिशा में कुछ प्रगति दर्ज की गई है, मगर ये अपर्याप्त है. वैश्विक तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिये इन संकल्पों को चार गुना और 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिये सात गुना बनाना होगा.