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वातानुकूलित उपकरणों को ऊर्जा दक्ष बनाने से ग्रीनहाउस गैसों में भारी कटौती सम्भव

न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय.
UN Photo/Manuel Elias
न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय.

वातानुकूलित उपकरणों को ऊर्जा दक्ष बनाने से ग्रीनहाउस गैसों में भारी कटौती सम्भव

जलवायु और पर्यावरण

गर्मी से राहत दिलाने वाले और घरों व कार्यालयों को ठण्डा करने वाले उपकरणों को जलवायु अनुकूल और ऊर्जा दक्ष बनाकर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में अगले चार दशकों में 460 अरब टन की कटौती की जा सकती है - यह मात्रा वर्ष 2018 में उत्सर्जन के स्तर के आधार पर  लगभग आठ वर्षों के कुल वैश्विक उत्सर्जन के बराबर है. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और अन्तरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की एक साझा रिपोर्ट में पर्यावरण के लिये हानिकारक उत्सर्जनों से निपटने में जलवायु अनुकूल समाधानों की अहमियत को रेखांकित किया गया है.  

वातानुकूल वातावरण स्वस्थ्य समुदायों, खाद्य पदार्थों की ताज़गी और अर्थव्यवस्थाओं की उत्पादकता बढ़ाने के लिये ज़रूरी है. मौजूदा महामारी के दौरान यह और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है, ख़ासतौर पर गरम मौसम में तालाबन्दी के दौरान घर के भीतर सीमित रह जाने को सहनीय बनाने के लिये. 

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विश्व में वातावरण को शीतल बनाने वाले लगभग साढ़े तीन अरब से ज़्यादा उपकरणों (Cooling appliances) का इस्तेमाल हो रहा है.

लेकिन एयरकण्डीशनर से कार्बन डाइऑक्साइड, ब्लैक कार्बन और हाइड्रोफ़्लोरोकार्बन का भी उत्सर्जन होता है – हाड्रोफ़्लोरोकार्बन शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस हैं जिसमें वातावरण को गरम करने में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में कई हज़ार गुना ज़्यादा क्षमता होती है.

वातानुकूल उपकरणों की माँग में बढ़ोत्तरी से भी जलवायु परिवर्तन का ख़तरा बढ़ रहा है.  

रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु को गरम करने वाली रेफ़्रिजरेण्ट गैसों, यानि हाइड्रोफ़्लोरोकार्बन्स के उत्पादन और इस्तेमाल में कमी करके वर्ष 2100 तक वैश्विक तापमान वृद्धि में 0.4 डिग्री सेल्सियस तक की कमी लाई जा सकती है. 

दक्ष समाधान

यूएन पर्यावरण एजेंसी (UNEP) और अन्तरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की नई रिपोर्ट “Cooling Emissions and Policy Synthesis” बताती है कि एयरकण्डीशनर की ऊर्जा दक्षता को दोगुना बढ़ाए जाने से अगले चार दशकों में ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में 460 अरब टन की कटौती की जा सकती है. 

ग्रीनहाउस गैसों की इतनी मात्रा आम तौर पर आठ वर्ष में उत्सर्जित होती है.  

इस कार्रवाई के ज़रिये वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य को सम्भव बनाने में भी अहम योगदान दिया जा सकता है. जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी दुष्प्रभावों से बचाव के लिये यह अति महत्वपूर्ण है. 

यूएन पर्यावरण कार्यक्रम की कार्यकारी निदेशक इन्गर एण्डरसन ने कहा है कि देशो को इस दिशा में प्रयास करने के लिये गम्भीरतापूर्वक विचार करना चाहिये. 

“उनके पास अपने संसाधनों का समझदारी के साथ उपयोग का अवसर है ताकि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम किया जा सके, और प्रकृति की रक्षा करने व अन्य महामारियों का जोखिम घटाया जा सके.”

उन्होंने कहा कि दक्ष और जलवायु-अनुकूल शीतलन (Cooling) से इन सभी लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिल सकती है. रिपोर्ट के मुताबिक देशों के पास ऐसे अनेक विकल्प हैं जिनके ज़रिये इसे सम्भव बनाया जा सकता है.

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ओज़ोन परत को हानि पहुँचाने वाले पदार्थों पर ऐतिहासिक ‘मॉन्ट्रीयल प्रोटोकॉल’ में ‘किगाली संशोधन’ (Kigali amendment) के हस्ताक्षरकर्ता देश हाइड्रोफ़्लोरोकार्बन के इस्तेमाल में कमी लाने पर सहमत हो गए हैं. 

साथ ही ‘राष्ट्रीय शीतलन कार्रवाई योजना’ (National Cooling Action Plans) की मदद से तापमान को ठण्डा करने वाले जलवायु अनुकूल उपकरणों की दिशा में आगे बढ़ने की गति तेज़ की जा सकती है. 

साथ ही ऐसे अवसर भी पहचाने जा सकते हैं जिनसे वर्ष 2015 के पेरिस समझौते में संकल्पों को दक्ष शीतलन के ज़रिये पूरा किया जा सके. 

अन्य विकल्पों में ऊर्जा इस्तेमाल के न्यूनतम मानक लागू किया जाना, घरों व कार्यालयों को ठण्डा करने की ज़रूरत घटाने के उद्देश्य से इमारतों के लिये नियम स्थापित करना, और तापमान-नियन्त्रित खाद्य आपूर्ति श्रृंखला को ज़्यादा दक्ष व टिकाऊ बनाना है.  

ये अध्ययन रिपोर्ट विविध अनुभवों वाले विशेषज्ञों ने एक 15 सदस्यीय समिति के दिशानिर्देशों में तैयार की है जिसकी सहअध्यक्षता मैक्सिको के रसायनशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक मारियो जे मोलीना व अमेरिका के पर्यावरण क़ानून विशेषज्ञ दुरवुड ज़ायल्के ने की.