वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी के बीच दुनिया जलवायु ‘रसातल’ के कगार पर

संयुक्त राष्ट्र की मौसम विज्ञान एजेंसी (WMO) द्वारा सोमवार को जारी नई रिपोर्ट दर्शाती है कि पृथ्वी के तापमान में बढ़ोत्तरी बेरोकटोक जारी है, और साल 2020, अब तक के तीन सबसे गर्म वर्षों में दर्ज किया गया है. "State of the Global Climate" रिपोर्ट के मुताबिक़ वर्ष 2020 में वैश्विक औसत तापमान, औद्योगिक काल से पूर्व के स्तर की तुलना में 1.2 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा, जोकि चिन्ताजनक है.
यूएन मौसम विज्ञान एजेंसी के अनुसार यह आँकड़ा, ख़तरनाक ढंग से उस 1.5 डिग्री सेल्सियस के बेहद नज़दीक है, जिसे वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन के बदतर दुष्प्रभावों को दूर रखने के लिये अहम बताया है.
वर्ष 2015 के बाद के छह साल, अब तक के सबसे गर्म साबित हुए हैं. साथ ही यह दशक भी अब तक का सबसे गर्म दशक साबित हो रहा है.
The six years since 2015 have been the hottest on record.Last year, carbon dioxide concentrations rose to a new high.Climate disruption is here.This is truly a pivotal year for humanity’s future. We have no time to waste. https://t.co/xCjg65uyWX pic.twitter.com/5DEYmBXtxB
antonioguterres
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने रिपोर्ट जारी करते हुए एक प्रैस वार्ता को सम्बोधित किया. उन्होंने कहा कि "हम रसासल के कगार पर पहुँच गए हैं."
विश्व मौसम की यह कड़ी चेतावनी इस सप्ताह जलवायु मुद्दे पर, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा आयोजित की जा रही वर्चुअल शिखर वार्ता से ठीक पहले जारी की गई है.
इस बैठक का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों में कटौती करने के लिये प्रयासों को स्फूर्ति प्रदान करना और वर्ष 2015 के ऐतिहासिक पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्यों को साकार करना है.
यूएन प्रमुख ने ज़ोर देकर कहा कि 2021 को कार्रवाई का साल बनाना होगा. उन्होंने ग्लासगो में, नवम्बर 2021 में होने संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक जलवायु सम्मेलन – कॉप26 – में देशों के जुटने से पहले अनेक ठोस क़दम उठाए जाने की पुकार लगाई है.
"देशों को महत्वाकांक्षी, नई राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान पेश करने की ज़रूरत है, जिन्हें पेरिस समझौते के ज़रिये तैयार किया गया था."
"अगले 10 वर्षों के लिये जलवायु योजनाओं को पहले से कहीं ज़्यादा दक्ष बनाया जाना होगा.
उन्होंने कहा कि जलवायु संकल्प और योजनाएँ तात्कालिक कार्रवाई के ज़रिये सम्भव बनाने होंगे.
यूएन के शीर्षतम अधिकारी ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि धनी देशों द्वारा कोविड-19 से पुनर्बहाली के लिये किया जा रहा धन निवेश, जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते व टिकाऊ विकास लक्ष्यों के अनुरूप करना होगा.
इस क्रम में उन्होंने, जीवाश्म ईंधन को दी जाने वाली सब्सिडी को नवीकरणीय ऊर्जा को दिये जाने पर बल दिया है.
"कोयले का प्रयोग चरणबद्ध ढंग से हटाने में, विकसित देशों को अगुवाई करनी होगी – वर्ष 2030 तक OECD देशों द्वारा, और अन्य स्थानों पर 2040 तक."
"किसी भी नए कोयला चालित बिजली संयन्त्र का निर्माण नहीं किया जाना चाहिये."
यूएन मौसम विज्ञान एजेंसी की रिपोर्ट बताती है कि जलवायु परिवर्तन से टिकाऊ विकास प्रयासों पर किस तरह असर पड़ता है.
रिपोर्ट के अनुसार, एक-दूसरे से जुड़ी घटनाओं की श्रृंखलाओं के कारण, पहले से मौजूद विषमताएँ गहरी और जलवायु परिवर्तन में तेज़ी आ सकती है.
यूएन एजेंसी के महासचिव पेटेरी टालस ने आगाह किया कि कार्बन उत्सर्जन में कटौती के प्रयासों के बावजूद जलवायु में नकारात्मक रुझान, आने वाले दशकों में भी जारी रह सकता है.
इस पृष्ठभूमि में उन्होंने अनुकूलन प्रयासों में पहले से अधिक निवेश किये जाने की पुकार लगाई है.
"रिपोर्ट दर्शाती है कि हमारे पास खोने के लिये समय नहीं है. जलवायु बदल रही है और आम जन व पृथ्वी के लिये इसके असर बेहद ख़र्चीले हैं."
उन्होंने सभी देशों से वर्ष 2050 तक नैट कार्बन उत्सर्जन शून्य करने का लक्ष्य हासिल करने का आहवान करते हुए कहा, "यह कार्रवाई करने का वर्ष है."
"अनुकूलन के लिये तैयारी के सबसे शक्तिशाली रास्तों में से एक - समय-पूर्ण चेतावनी सेवाओं और मौसम पर्यवेक्षण नैटवर्कों में निवेश करना है."
"अनेक कम विकसित देशों की पर्यवेक्षण प्रणालियों में बड़ी कमियाँ हैं, और उनके पास आधुनिक व सुसज्जित मौसम, जलवायु और जल सेवाओं का अभाव है."
विश्व मौसम विज्ञान एजेंसी की नई रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2019 और 2020 में, वातावरण में मुख्य ग्रीनहाउस गैसों की सघनता में बढ़ोत्तरी जारी है.
कार्बन डाय ऑक्साइड की सघनता के लिये वैश्विक औसत पहले ही 410 पार्ट्स प्रति मिलियन (ppm) से अधिक हो चुका है.
रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि अगर सघनता का यह रुझान, पिछले वर्षों की तरह आगे भी यूँ ही जारी रहा तो यह इस वर्ष 414 ppm तक पहुँच सकता है, या उसे पार कर सकता है.
यूएन एजेंसी ने सचेत किया है कि महासागरों का अम्लीकरण बढ़ रहा है और ऑक्सीजन की मात्रा कम हो रही है, जिससे समुद्री जीवन और पारिस्थितिकी तन्त्रों के लिये ख़तरा बढ़ रहा है.
वर्ष 2019 में महासागर की सतह का तापमान स्तर सबसे अधिक साबित हुआ, और यह रुझान वर्ष 2020 में भी जारी रहने की सम्भावना है.
बताया गया है कि दुनिया भर में अनेक स्थानों पर चरम मौसम की घटनाएँ दर्ज की गईं, जिनमें भारी बारिश, बाढ़, गम्भीर दीर्घकालीन सूखा, विनाशकारी तूफ़ान, और व्यापक स्तर पर आग लगने की घटनाएँ हैं.