श्रीलंका: बच्चों के लिये विनाशकारी संकट, दक्षिण एशिया के लिये एक चेतावनी

दक्षिण एशिया के लिये यूनीसेफ़ के क्षेत्रीय निदेशक जियॉर्ज लैरयी-ऐडजेई ने शुक्रवार को ध्यान दिलाते हुए कहा है कि श्रीलंका में मुख्य भोजन आहार, लोगों की ख़रीद शक्ति से बाहर हो गए हैं, जबकि संकट ग्रस्त देश श्रीलंका में, पहले ही गम्भीर कुपोषण की दर क्षेत्र में सबसे ऊँची थी.
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – UNICEF की ये चेतावनी ऐसे समय आई है जब श्रीलंका, 1948 में मिली स्वतंत्रता के बाद से, सबसे भीषण आर्थिक संकट का सामना कर रहा है.
“As the economic crisis continues to rattle Sri Lanka, it is the poorest, most vulnerable girls and boys who are paying the steepest price."@g_laryeaadjei calls for urgent funds, as we scale up our response.https://t.co/9HQJqtEwGa
UNICEF
जियॉर्ज लैरयी-ऐडजेई ने बताया है कि, “लोगों को अपनी नियमित भोजन ख़ुराकें छोड़नी पड़ रही हैं क्योंकि उनके मुख्य आहार वाली खाद्य सामग्रियाँ उनकी क्रय शक्ति से बाहर हो गई हैं. बच्चों को भूखे पेट सोना पड़ रहा है, और उन्हें ये भी मालूम नहीं है कि उनकी अगली भोजन ख़ुराक कहाँ से आएगी.”
उन्होंने कहा कि व्यापक पैमाने पर खाद्य असुरक्षा से कुपोषण, निर्धनता, बीमारियों और क्षेत्र में मौतों को और ज़्यादा बढ़ावा ही मिलेगा.
बढ़ती खाद्य असुरक्षा ने, देश को अपनी चपेट में रहे सामाजिक मुद्दों को और ज़्यादा जटिल बना दिया है.
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि श्रीलंका के बच्चों की लगभग आधी संख्या को, पहले ही किसी ना किसी रूप में आपात सहायता की आवश्यकता है.
शिक्षा भी आर्थिक संकट से प्रभावित क्षेत्रों में से एक है जिसने शैक्षणिक संस्थाओं में बच्चों का पंजीकरण कम कर दिया है और संसाधन भी बहुत कम कर दिये हैं.
जियॉर्ज लैरयी-ऐडजेई ने बताया कि ऐसी भी ख़बरें मिल रही हैं कि बढ़ते आर्थिक दबावों के कारण, बच्चों के साथ दुर्व्यवहार, उनके शोषण और उनके विरुद्ध हिंसा में भी बढ़ोत्तरी देखी जा रही है.
श्रीलंका में, पहले ही 10 हज़ार से ज़्यादा बच्चे संस्थागत देखभाल में रखे गए हैं, जोकि मुख्य रूप से निर्धनता का परिणाम है. ये संस्थान, ऐसा महत्वपूर्ण पारिवारिक समर्थन व माहौल मुहैया नहीं कराते हैं जोकि बच्चों के स्वस्थ विकास के लिये अति आवश्यक है.
ये दुर्भाग्य की बात है कि मौजूदा संकट, और भी ज़्यादा परिवारों को अपने बच्चों को संस्थागत देखभाल में भेजने के लिये विवश कर रहा है क्योंकि वो अपने बच्चों की देखभाल करने में असमर्थ हैं.
जियॉर्ज लैरयी-ऐडजेई का कहना है कि श्रीलंका में अगर मौजूदा चलन जारी रहा तो बच्चों के लिये हासिल की गई प्रगति के पलट जाने का जोखिम है, और कुछ मामलों में तो सदैव के लिये.
यूनीसेफ़ श्रीलंका में लगभग 50 वर्षों से सहायता उपलब्ध कराने में सक्रिय रहा है. यूएन बाल एजेंसी ने अपने वैश्विक साझीदारों के साथ मिलकर शैक्षणिक सामग्रियों की आपूर्ति की है, स्कूल जाने से पहले की उम्र के बच्चों को भोजन मुहैया कराया है, और गर्भवती व स्तनपान कारने वाली महिलाओं को अति आवश्यक नक़दी मुहैया कराई है.
उन्होंने हालाँकि ये भी कहा कि मौजूदा आर्थिक संकट ने श्रीलंका के सामाजिक ढाँचे की जड़ में बैठी कमज़ोरी को उजागर कर दिया है.
जियॉर्ज लैरयी-ऐडजेई ने श्रीलंका में आर्थिक संकट से प्रभावित बच्चों की मदद करने के लिये और ज़्यादा प्रयासों की तरफ़ ध्यान दिलाते हुए कहा कि देश में संकट से उबरने के प्रयासों में, बच्चों को महत्वपूर्ण स्थान देना होगा.
उन्होंने कहा कि तमाम उम्र की लड़कियों और लड़कों की शिक्षा की निरन्तरता सुनिश्चित करनी होगी, ताकि वो अपने भविष्य की तैयारी कर सकें और बाल मज़दूरी, शोषण व लिंग आधारित हिंसा के ख़तरों से ख़ुद को सुरक्षित बना सकें.
“और महिलाओं व बच्चों को, जीवन को जोखिम में डालने वाली बीमालियों व कुपोषण से बचाने के लिये, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिकता देनी होगी.”
अगर बच्चों को वैश्विक आर्थिक मन्दी के बदतर प्रभावों से बचाने के लिये तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो, निर्बल परिस्थितियों वाले बच्चों के और भी ज़्यादा गम्भीर निर्धनता में धँस जाने का जोखिम है, और उनका स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा व सुरक्षा कमज़ोर होंगे.
जियॉर्ज लैरयी-ऐडजेई ने कहा है कि इसलिये, संकट का मज़बूती से मुक़ाबला करने के लिये, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को, स्थानीय समुदायों की सहनक्षमता बढ़ाने में संसाधन निवेश को प्राथमिकता देनी होगी.
यूनीसेफ़ का कहना है कि श्रीलंका की आपात स्थिति, दक्षिण एशिया के अन्य देशों के लिये, आर्थिक कठिनाइयों का सामना करने की ख़ातिर, पहले से ही तैयारी करने में कोताही के जोखिमों के बारे में एक चेतावनी है.
जियॉर्ज लैरयी-ऐडजेई ने निष्कर्षतः कहा कि “हम बच्चों के एक ऐसे संकट की क़ीमत अदा करने के लिये नहीं छोड़ सकते, जिसमें उनका कोई हाथ नहीं है. हमें उनका भविष्य सुरक्षित बनाने के लिये, आज ठोस कार्रवाई करनी होगी.”