श्रीलंका: आर्थिक संकट के कारण, स्वास्थ्य व्यवस्था बिखराव के निकट
श्रीलंका इस समय अपने इतिहास के बदतरीन सामाजिक-आर्थिक संकटों से गुज़र रहा है, और किसी समय विश्वसनीय रही स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था ढह जाने के निकट है, मरीज़ों को बिजली कटौती के जोखिम का सामना करना पड़ रहा है, दवाइयों का अभाव है, और उपकरणों की भी क़िल्लत है.
जब रुचिका को अक्टूबर 2021 में मालूम हुआ कि वो अपने दूसरे बच्चे के साथ गर्भवती हैं, तो उन्होंने कभी ये कल्पना भी नहीं की थी कि वो अपने बच्चे को जन्म देने से कुछ ही घण्टे पहले का समय, किसी भीड़ भरी क़तार में गुज़ारना पड़ेगा जहाँ, उन्हें अस्पताल पहुँचने के लिये ज़रूरी ईंधन प्राप्त करने के लिये मिन्नतें करनी पड़ेंगी.
रुचिका याद करती हैं, “भीड़ में ज़्यादातर लोगों का रवैया सहानुभूतिपूर्ण था. अधिकारियों ने मेरे हालात की पुष्टि करने के लिये मेरे चिकित्सा दस्तावेज़ों की जाँच-पड़ताल करने के बाद, मुझे ईंधन ख़रीदने की अनुमति दे दी जिसकी मुझे बहुत सख़्त ज़रूरत थी, मगर फिर भी कुछ लोग ऐसे थे जो हम पर चिल्ला रहे थे.”
श्रीलंका में गर्भवती महिलाएँ ख़ुद को एक ऐसी दुनिया में पाती हैं जिसकी कुछ ही महीने पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. देश में मौजूदा संकट यौन व प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं को बड़े पैमाने पर कमज़ोर कर रहा है. इनमें जच्चा-बच्चा स्वास्थ्य और गर्भ निरोधकों तक पहुँच का अभाव, व लिंग आधारित हिंसा की रोकथाम और उसकी स्थिति में ठोस कार्रवाई करने वाली सेवाएँ भी कमज़ोर हुई हैं.
मरीज़ों को ही चिकित्सा उपकरण लाने को कहा गया
रुचिका, ईंधन के लिये दर्दनाक प्रतीक्षा वाले दिन से अगले दिन, अस्पताल पहुँचने में सफल हो गईं, अपने बच्चे को जन्म देने के लिये बिल्कुल उपयुक्त समय पर. मगर ईंधन ही उनकी केवल एक मात्र चिन्ता नहीं थी.
रुचिका के बच्चे के अपेक्षित जन्म समय से दो महीने पहले उन्हें बताया गया था कि महिलाओं को अपने बच्चों को सुरक्षित जन्म दिलाने के लिये सरकारी अस्पताल आते समय, दस्ताने, ब्लेड, और अन्य बुनियादी सामान लाना होगा.
रुचिका याद करती हैं कि अस्तपाल के पास ये ज़रूरी सामान ख़त्म हो गया था और इस सामान की आपूर्ति होने की भी कोई सम्भावना या गारण्टी नहीं थी.
रुचिका बहुत घबरा गई थीं. “मैंने तुरन्त अपने डॉक्टर को फ़ोन किया और चिकित्सा सामान की उपलब्धता के बारे में जानना चाहा, और ये भी कि उन्हें ख़ुद क्या-क्या तैयारियाँ करनी थीं.”
रुचिका बताती हैं, “डॉक्टर ने मुझे बताया कि उनके पास चिकित्सा सामान फ़िलहाल तो उपलब्ध है.”
“मगर मेरे डॉक्टर मुझे ये आश्वासन नहीं दे सके कि दो महीने बाद क्या स्थिति होगी, जब मेरे बच्चे का जन्म अपेक्षित था. मैं हालात के और ज़्यादा बदतर होने के बारे में सोचकर बहुत चिन्तित थी, इसलिये मैंने अपने डॉक्टर से दो बार पूँछा कि क्या मेरे बच्चे का जन्म सुरक्षित हो सकेगा, जबकि उसमें अभी दो महीने का समय बाक़ी था.”
डॉक्टर ने बच्चे के स्वास्थ्य के लिये जोखिम को देखते हुए, कुछ भी कहने से इनकार कर दिया. “डॉक्टर ने मुझे भरोसा दिलाया कि अगर मैं समय पर अस्पताल पहुँच गई तो मैं और मेरा बच्चा दोनों ही स्वस्थ रहेंगे – मगर फिर भी वो सबकुछ एक ख़ासा संघर्ष था.”
इतना ही नहीं, रुचिका ख़ुद के लिये ईंधन की उपलब्धता के बारे में ही नहीं, अस्तपाल स्टाफ़ के लिये भी ईंधन की उपलब्धता के बारे में चिन्तित होने लगीं.
“मेरे बच्चे के सम्भावित जन्म समय से एक सप्ताह पहले, मेरे पति ने मेरे डॉक्टर की ईंधन उपलब्धता स्थिति के बारे में जानना चाहा, क्योंकि हमने इस तरह की अनेक ख़बरें सुनी थीं कि डॉक्टर और नर्सें, ईंधन संकट के कारण, अपने कामकाज स्थलों तक नहीं पहुँच पा रहे हैं.”
धन के लिये अपील
रुचिका के परिवार की जद्दोजेहद ख़त्म नहीं हुई. जब उनकी साढ़े चार वर्षीय बेटी बीमार पड़ी, तो उसके लिये नेबुलाइज़र ख़रीदने के लिये उन्हें छह दवाख़ानों के चक्कर लगाने पड़े. और रुचिका के बच्चे का जन्म होने के बाद उसके पेट के ऑपरेशन के टाँके कटने की तारीख़ भी कब की गुज़र चुकी है. वो अपने डॉक्टर से मिलने वाली जानकारी की प्रतीक्षा कर रही हैं कि वो अपने टाँके कटवाने के लिये कब आएँ.
इस समय तो डॉक्टर भी अपना ईंधन बचाने में लगे हैं और वो तभी अस्पताल जाना चाहते हैं जब कोई अन्य मरीज़ अपने बच्चे को जन्म देने की अन्तिम स्थिति में हों.
दूरगामी परिणाम
संयुक्त राष्ट्र की यौन व प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी – UNFPA की कार्यकारी निदेशिका डॉक्टर नतालिया कनेम का कहना है, “मौजूदा आर्थिक संकट के, महिलाओं व लड़कियों के स्वास्थ्य, उनके अधिकारों और गरिमा के लिये, दूरगामी परिणाम हैं.”
“इस समय तो हमारी प्राथमिकता महिलाओं और लड़कियों की विशिष्ट ज़रूरतों को पूरा करना, और उनके लिये जीवनरक्षक स्वास्थ्य सेवाओं और समर्थन तक पहुँच सुनिश्चित करना है.”
श्रीलंका के स्वास्थ्य मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, देश में इस समय लगभग 2 लाख 15 हज़ार महिलाएँ गर्भवती हैं, जिनमें 11 हज़ार किशोर आयु की लड़कियाँ भी हैं, और क़रीब एक लाख 45 हज़ार गर्भवती महिलाएँ, अगले छह महीनों के दौरान अपने बच्चों को जन्म देंगी.
UNFPA ने श्रीलंका में तत्काल महिलाओं व लड़कियों की यौन व प्रजनन स्वास्थ्य ज़रूरतें और उनकी संरक्षा ज़रूरतें पूरी करने की ख़ातिर, लगभग एक करोड़ 7 लाख डॉलर की राशि जुटाने की अपील की है.
ये धनराशि जीवन रक्षक मशीनों, उपकरणों और ज़रूरी सामान की ख़रीद पर ख़र्च की जाएगी जिसमें बलात्कार मामलों के क्लीनिकल प्रबन्धन और घरेलू हिंसा के पीड़ितों के लिये सेवाओं पर धन ख़र्च भी शामिल है.
साथ ही, महिलाओं के लिये अन्य आवश्यक सेवाओं पर भी धन ख़र्च किया जाएगा.
इन सबके बावजूद, बुनियादी ढाँचागत और परिवहन चुनौतियों के मद्देनज़र, उन महिलाओं के लिये अपने बच्चों को जन्म देना अब भी जीवन जोखिम में डालने वाली स्थिति है, जिन्हें कुशल चिकित्सा देखभाल तक पहुँच हासिल नहीं है.