वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां
अफ़ग़ानिस्तान के बाल्ख़ प्रान्त में, एक बाज़ार में, महिलाएँ अपना सामान बेचते हुए.

आपबीती: ‘अफ़ग़ान औरतें अब भी संघर्षरत हैं. और मैंने उनमें शामिल रहने का रास्ता चुना है.

© WFP/Julian Frank
अफ़ग़ानिस्तान के बाल्ख़ प्रान्त में, एक बाज़ार में, महिलाएँ अपना सामान बेचते हुए.

आपबीती: ‘अफ़ग़ान औरतें अब भी संघर्षरत हैं. और मैंने उनमें शामिल रहने का रास्ता चुना है.

महिलाएँ

36 वर्षीय नसीमा* अफ़ग़ानिस्तान में एक शान्ति निर्मात्री और महिला अधिकार कार्यकर्ता हैं. अगस्त 2021 में तालेबान द्वारा देश की सत्ता पर क़ब्ज़ा किये जाने के बाद से, नसीमा देश में ही रहकर काम कर रही हैं, जबकि देश के हालात दुनिया की सर्वाधिक जटिल मानवीय आपदाओं में शामिल होते जा रहे हैं. नसीमा की आपबीती...

“15 अगस्त 2021 को मैं अपने दफ़्तर में मौजूद थी. सुबह 8 बजे एक सहयोगी ने भीतर आकर, कार्यालय बन्द करने और सभी महिलाओं को घर वापिस भेजने को कहा. तालेबान राजधानी के दरवाज़े पर दस्तक दे चुके थे. मैं शिक्षारत थी, अपनी मास्टर डिग्री के अन्तिम वर्ष की शिक्षा पूरी कर रही थी; मैं एक सिविल सोसायटी संगठन की अगुवाई कर रही थी; और मैं दो कारोबारी संगठन भी चला रही थी.

उससे पहले, 10 महीने से, मैं अफ़ग़ानिस्तान में एक विशालतम नैटवर्क को तैयार करने के लिये काम कर रही थी जिसने महिलाओं को शान्ति प्रक्रिया के ज़्यादा निकट पहुँचा दिया. हर दिन मेरा काम, अफ़ग़ान महिलाओं की आवाज़ ऐसे मंचों पर बुलन्द करना था जहाँ उनके भविष्य से सम्बन्धित निर्णय लिये जाते थे. मैं लगातार धरातल पर रहती थी, एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त की यात्रा करते हुए, हज़ारों अफ़ग़ान महिलाओं के साथ बातचीत करते हुए.

उस दिन सुबह 11 बजे, मैंने अपना दफ़्तर बन्द किया और अपने घर चली गई. अपने घर की तरफ़ टहलते हुए मैंने देखा कि सड़कें ऐसे लोगों से अटी पड़ रही थीं जो अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकलने के लिये बेताब थे. शाम को साढ़े छह बजे मैंने देखा कि तालेबान पहली बार मेरे घर के पास से गुज़र रहे थे.

‘15 अगस्त को मेरे भीतर कोई चीज़ मर गई’

मुझे याद है कि पिछली बार जब वो सरकार में थे, बस कल की ही बात लगती है – मेरी माँ को बुरक़ा पहनना पड़ता था, मेरे पड़ोसी परिवार की बेटी की शादी 11 वर्ष की उम्र में कर दी गई थी, और जब भी हम अपने घर से बाहर निकलते थे, तो मेरी माँ मेरे ऊपर भी एक बड़ी चादर ढकती थीं. मेरी उम्र 8 वर्ष थी.

15 अगस्त 2021 को मेरे भीतर किसी चीज़ की मौत हो गई, या कम से कम मुझे तो ऐसा ही महसूस होता है: मेरी उम्मीदें चकनाचूर हो गईं, मेरी शिक्षा अप्रासंगिक हो गई, अफ़ग़ानिस्तान में मेरा किया गया निवेश बेकार हो गया.

उसके बाद तो बहुत सी रातें बहुत ज़्यादा स्याह गुज़रीं. महिलाओं से सम्बन्ध रखने वाली मेरी परियोजनाएँ बन्द करनी पड़ीं; मेरी महिला स्टाफ़ में से ज़्यादातर ने इस्तीफ़े दे दिये. मगर मैं जानती थी कि मुझे कुछ ना कुछ तो करना ही होगा. मैंने समझा कि अब जिस अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर तालेबान क़ब्ज़ा कर रहे हैं वो 1990 के अफ़ग़ानिस्तान से भिन्न है.

इस बार वो लोकतंत्र के दो दशकों के बाद आए थे, महिला अधिकारों के दो दशक, जहाँ महिलाओं के नेतृत्व वाले संगठन गठित हुए थे, और महिलाएँ ही अपने ख़ुद के अधिकारों की पैरोकार बन गई थीं. मैंने देखा कि इन सभी महिलाओं ने देश नहीं छोड़ा था; ना ही सभी शिक्षित पुरुषों को खदेड़ा गया था. मैंने देखा कि देश के भीतर ही बहुत सारी महिलाएँ संघर्षरत थीं. और मैंने उनमें से एक बनने का फ़ैसला किया.

1 सितम्बर को, मैं अपने काम पर वापिस लौटने के लिये तैयार थी. मैंने अपने स्टाफ़ को फ़ोन किया – महिलाएँ और पुरुष सभी को – और दफ़्तर आने के लिये कहा. मैंने अपने संगठन का ‘फ़ोकस’ बदल दिया, मगर मैंने केवल महिलाओं के लिये काम करना जारी रखा.

अफ़ग़ानिस्तान के ज़िन्दाजान ज़िले के एक गाँव में एक महिला, एक गलियारे से गुज़रते हुए.
© UNICEF/Shehzad Noorani
अफ़ग़ानिस्तान के ज़िन्दाजान ज़िले के एक गाँव में एक महिला, एक गलियारे से गुज़रते हुए.

‘मैंने कभी हिम्मत नहीं हारी’

मैंने ज़मीन पर मौजूद हमारे महिला स्टाफ़ की सुरक्षा के लिये, तालेबान के साथ पैरोकारी की. फिर भी मुझे बहुत से मुद्दों का सामना करना पड़ा: हमारे खाद्य वितरण केन्द्रों के दरवाज़े बन्द कर दिये गए, मेरे स्टाफ़ को पीटा भी गया, मेरा लैपटॉप छीन लिया गया, मेरे फ़ोन की तलाशी ली गई, मुझे ख़ामोश रहने के लिये कहा गया.

मगर मैंने कभी हिम्मत नहीं हारी. हमारे खाद्य वितरण केन्द्रों पर महिलाएँ, तड़के दो बजे से क़तार में आकर खड़ी हो जाती थीं. एक दिन मैंने एक ऐसी महिला को उस क़तार में खड़े हुए देखा जिसे मैं जानती थी. उसके पास मास्टर की डिग्री थी और वो संस्कृति मंत्रालय में काम किया करती थी.

देश भर में हज़ारों महिलाएँ विभिन्न मंत्रालयों के लिये काम किया करती थीं. अब उनमें से कुछ को, अपने बच्चों का पेट भरने के लिये, आटे की एक बोरी हासिल करने की ख़ातिर, इस तरह क़तार में खड़ा होना पड़ता है.

अगर मैं पिछले एक साल पर नज़र डालूँ, तो कोई भी सकारात्मक चीज़ याद नहीं आती. महिलाएँ कामकाज नहीं कर सकतीं; उनके कोई अधिकार नहीं बचे हैं; यहाँ तक कि वो स्कूल भी नहीं जा सकतीं. घरों में हिंसा अब एक सामान्य बात बन गई है और कुछ महिलाएँ तो ख़ुदकुशी कर रही हैं – उनके हालात असहनीय हो जाने के बाद ज़िन्दगी का आख़िरी क़दम.

मगर मैं जानती हूँ कि हम अकेले नहीं हैं, मैं जानती हूँ कि हमारी दास्ता भिन्न नहीं है – युद्ध के दौर में, शान्ति के दौर में, महिलाओं को ही सबसे ज़्यादा तकलीफ़ें उठानी पड़ती हैं.

अफ़ग़ानिस्तान को भी उसी की ज़रूरत है जिसकी ज़रूरत, दुनिया के किसी भी अन्य देश को है: महिलाओं को कामकाज करने का मौक़ा मिले, नेतृत्व करने का अवसर मिले, चुनौतियों को अवसरों में तब्दील करने का भी मौक़ा मिले.

*इस लेख में, व्यक्तियों, स्थानों और घटनाक्रमों के नाम, अफ़ग़ान महिला मानवाधिकार पैरोकार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये बदल दिये गए हैं.

अफ़ग़ानिस्तान में UNWOMEN

  • संयुक्त राष्ट्र महिला संस्था, यूएनवीमेन, अफ़ग़ानिस्तान में ज़मीन पर काम कर रही है, और हर दिन अफ़ग़ान महिलाओं और लड़कियों की मदद करने के लिये प्रयासरत है.
  • देश में एजेंसी की रणनीति, महिलाओं में निवेश के इर्द-गिर्द घूमती है — जिन प्रान्तों में उन्होंने पहले कभी काम नहीं किया, वहाँ हिंसा पीड़ित महिलाओं के लिये समर्थन बढ़ाने से लेकर, आवश्यक सेवाओं के वितरण में महिला मानवीय कार्यकर्ताओं की मदद करने और महिलाओं के नेतृत्व वाले व्यवसायों के लिये प्रारम्भिक पूंजी प्रदान करने तक.
  • अफ़ग़ान महिला आन्दोलन बहाल करने का लक्ष्य, एजेंसी के काम का केन्द्र बिन्दु रहा है.

अफ़ग़ानिस्तान में  UN Women की कार्रवाई और तालेबान के अधिग्रहण के एक साल बाद, देश में महिलाओं की स्थिति के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिये यहाँ क्लिक करें.