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अफ़ग़ानिस्तान: 'मानवाधिकारों में सुधार के बिना, भविष्य स्याह'

अफ़ग़ानिस्तान के कन्दाहार में एक स्वास्थ्य क्लीनिक में प्रतीक्षा करती कुछ महिलाएँ
© UNICEF/Alessio Romenzi
अफ़ग़ानिस्तान के कन्दाहार में एक स्वास्थ्य क्लीनिक में प्रतीक्षा करती कुछ महिलाएँ

अफ़ग़ानिस्तान: 'मानवाधिकारों में सुधार के बिना, भविष्य स्याह'

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता पर क़ाबिज़ अधिकारियों (तालेबान) को बुनियादी मानवाधिकार सिद्धान्तों का पालन करने का आग्रह करने के लिये अपने प्रयास बहुत तेज़ी से बढ़ाने की दरकार है.

मानवाधिकार विशेषज्ञों के इस समूह ने शुक्रवार को एक वक्तव्य जारी करके कहा है कि अगर अन्तरराष्ट्रीय समुदाय ने तालेबान को अपने तरीक़ों में बदलाव सुनिश्चित करने और उसकी मानवाधिकार ज़िम्मेदारियों का पालन करने के लिये और ज़्यादा कार्रवाई नहीं की तो अफ़ग़ान लोगों के लिये भविष्य बहुत स्याह नज़र आ रहा है.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने याद दिलाया कि उन्होंने अगस्त 2021 में तालेबान द्वारा सत्ता पर नियंत्रण जमाने के बाद अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से, अफ़ग़ान लोगों को मानवाधिकार हनन से बचाने के लिये कड़ी कार्रवाई करने की अपील की है.

इन हनन मामलों में बन्दीकरण, आनन-फानन में मृत्युदण्ड दिया जाना, आन्तरिक विस्थापन, और लोगों के मानवाधिकारों पर अवैध पाबन्दियाँ लगाया जाना शामिल है.

वादा पूरा करने में नाकामी

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा, “एक साल बाद हम वो पुकार फिर दोहराते हैं. मानवाधिकारों का सम्मान करने की अनेक पुकारों के बावजूद तालेबान, अपना वादा निभाने में नाकाम रहे हैं. उन्होंने अनेक देशों के दौरान हासिल गई ज़्यादातर प्रगति में को पलट दिया है.”

उससे भी ज़्यादा अफ़ग़ानिस्तान में मानवीय और आर्थिक संकटों ने लाखों लोगों के लिये असीम पीड़ाएँ व नुक़सान उत्पन्न किये हैं, और उमें बेहतरी के कोई संकेत नज़र नहीं आते हैं. दरअसल, अन्तरारष्ट्रीय सहायता में कुछ बाधाओं और विदेशों में अफ़ग़ान सम्पत्तियों पर लगी पाबन्दियों के कारण, इन हालात के और ज़्यादा बदतर होने का अनुमान है.

अफ़ग़ानिस्तान के हेरात में एक खाद्य वितरण केन्द्र पर, कुछ महिलाएँ खाद्य सामग्री प्राप्त करते हुए.
© UNICEF/Sayed Bidel
अफ़ग़ानिस्तान के हेरात में एक खाद्य वितरण केन्द्र पर, कुछ महिलाएँ खाद्य सामग्री प्राप्त करते हुए.

महिलाओं व लड़कियों पर हमला

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि तालेबान ने मानवाधिकारों का उल्लंघन बड़े पैमाने पर किया है, और महिलाओं व लड़कियों को पूरी तरह से समाज से ग़ायब कर दिया है. विशेष रूप में, महिलाओं व लड़कियों का व्यवस्थागत तरीक़े से दमन हुआ है.

उन्होंने कहा, “महिलाओं और लड़कियों के मानवाधिकारों पर इतने बड़े पैमाने पर, व्यवस्थागत तरीक़े से हमले, किसी अन्य स्थान पर नहीं देखे गए हैं – उनके जीवन का हर पहलू, धर्म का सहारा लेकर नैतिकता की दलील देकर प्रतिबन्धित किया जा रहा है. भेदभाव और हिंसा को किसी आधार पर न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता है.”

उन्होंने कहा कि यह बड़े अफ़सोस की बात है कि मानवाधिकार स्थिति में बदलाव के कोई संकेत नहीं नज़र आ रहे हैं.

शान्ति की सम्भावनाएँ धूमिल

अफ़ग़ानिस्तान के हेरात प्रान्त में एक परिवार, अपने घर में चाय पीते हुए.
© UNICEF/Sayed Bidel
अफ़ग़ानिस्तान के हेरात प्रान्त में एक परिवार, अपने घर में चाय पीते हुए.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने प्रैस स्वतंत्रता को सीमित किये जाने, धार्मिक व जातीय अल्पसंख्यकों पर हमलों में बढ़ोत्तरी जैसे अन्य उल्लंघनों की तरफ़ भी ध्यान दिलाया. जिनमें से कुछ हमलों की ज़िम्मेदारी आतंकवादी गुट – ISIL-KP ने भी स्वीकार की है.

उन्होंने ये भी रेखांकित किया कि किस तरह पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों और कलाकारों को देश छोड़ना पड़ा है, अपना कामकाज छोड़ना पड़ा है, या उन्हें छुपना पड़ा है.

उससे भी ज़्यादा, एक समावेशी व प्रतिनिधिक सरकार के अभाव में, दीर्घकालिक शान्ति, सुलह-सफ़ाई और सस्थिरता की सम्भावनाएँ न्यूनतम नज़र आती हैं.