अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं व लड़कियों के लिये यूएन एजेंसियों की प्रतिबद्धता

संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों ने सोमवार को कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान के एक साल के शासन के दौरान महिलाओं और लड़कियों की ज़िन्दगियों के हालात बहुत ख़राब हुए हैं, जिससे मानवाधिकारों के तमाम क्षेत्र प्रभावित हुए हैं. यूएन एजेंसियों ने तालेबान शासन के एक साल बाद, देश की महिलाओं और लड़कियों को अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है.
🚨What is happening in #Afghanistan is an alarm bell for us all. 🚨 It shows how decades of progress on gender equality and women’s rights can be wiped out in months.The fight for women’s rights in Afghanistan is a global fight, and a battle for women’s rights everywhere. pic.twitter.com/CMV8puevUq
UN_Women
महिला कल्याण के लिये सक्रिय संयुक्त राष्ट्र की संस्था – UN Women की कार्यकारी निदेशिका सीमा बहाउस ने कहा है कि ये वर्ष आज़ाद व समान जीवन जीने के महिलाओं के अधिकार के लिये बढ़ते असम्मान से भरा हुआ रहा है, इस दौरान उन्हें आजीविकाओं, स्वास्थ्य देखभाल व शिक्षा तक पहुँच से वंचित रखा जान और हिंसा से बचने के लिये भागते रहने वाला रहा है.
सीमा बहाउस ने बताया कि किस तरह तालेबान ने बड़ी चतुराई और बारीक़ी से असमानता की नीतियाँ बनाई हैं जिन्होंने अफ़ग़ानिस्तान को बाक़ी अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से अलग-थलग कर दिया है, लैंगिक समानता और महिला अधिकारों में दशकों के दौरान हासिल की गई प्रगति को, कुछ ही महीनों में मिटा दिया है.
दुनिया भर में केवल अफ़ग़ानिस्तान की एक मात्र ऐसा देश है जहाँ लड़कियों पर हाई स्कूल की शिक्षा हासिल करने पर पाबन्दी है, और वास्तव में उनकी राजनैतिक भागेदारी पर भी रोक है, क्योंकि तालेबान कैबिनेट में केवल पुरुष हैं, और महिला मामलों का कोई मंत्रालय ही नहीं है.
अफ़ग़ान महिलाओं पर अब अपने घरों से बाहर कामकाज पर ज़्यादातर पाबन्दी है, उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर अपने चेहरों पर नक़ाब ढकना अनिवार्या है, और उन्हें यात्रा करने के दौरान अपने साथ किसी पुरुष संरक्षक को रखना ज़रूरी है. उससे भी ज़्यादा उन्हें लिंग आधारित हिंसा के अनेक रूपों का लगातार सामना करना पड़ता है.
सीमा बहाउस का कहना है, “अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध भेदभाव के जानबूझकर किये गए ये उपाय, एक ऐसे देश के लिये आत्मघाती हृदय विदारक कृत्य हैं जो पहले से ही विशाल चुनौतियों का सामना कर रहा है."
"इनमें जलवायु सम्बन्धी और प्राकृतिक आपदां से लेकर वैश्विक आर्थिक कठिनाइयाँ तक शामिल हैं जिनके कारण लगभग ढाई करोड़ अफ़ग़ान आबादी, निर्धनता की चपेट में हैं, और कुछ तो भुखमरी के गर्त में भी हैं.”
उधर संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष – UNFPA की मुखिया डॉक्टर नतालिया कनेम ने ध्यान दिलाया है कि अफ़ग़ानिस्तान गहन आर्थिक व मानवीय संकट में घिरा हुआ है.
खाद्य वस्तुओं और ईंधन की क़ीमतें आसमान छू रही हैं, और यूक्रेन में युद्ध के कारण ये हालात और भी ज़्यादा ख़राब हुए हैं, जिसका मतलब है कि देश की लगभग 95 प्रतिशत आबादी, और महिलाओं के नेतृत्व वाले लगभग सभी घर-परिवारों को, भरपेट भोजन नसीब नहीं हो रहा है.
डॉक्टर नतालिया कनेम का कहना है कि लड़कियों को सैकण्डरी स्कूल की शिक्षा से बाहर रखना, ना केवल उनके शिक्षाधिकार का उल्लंघन है और उनकी पूर्ण सम्भावनाओं को पूरा करने से रोकता है, बल्कि इससे वो कम उम्र में विवाह और गर्भवती हो जाने, हिंसा और दुर्व्यवहार के जोखिम में भी पड़ जाती हैं.
उन्होंने कहा कि देश की स्वास्थ्य व्यवस्था में व्यवधान आने के कारण, महिलाओं और लड़कियों के लिये प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच भी बाधित हुई है. इसके कारण देश के दूरदराज़ के इलाक़ों में रहने वाली लगभग 90 लाख आबादी विशेष रूप से प्रभावित हुई है.
यूएन बाल कोष – UNICEF का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान, अगस्त 2021 में तालेबान का नियंत्रण स्थापित होने के पहले भी शिक्षा क्षेत्र में जद्दोजेहद कर रहा था क्योंकि 40 लाख से भी ज़्यादा बच्चे स्कूलों से बाहर थे, जिनमें 60 प्रतिशत संख्या लड़कियों की थी.
यूनीसेफ़ के एक नए विश्लेषण में पाया गया है कि लड़कियों को सैकण्डरी स्कूली शिक्षा से वंचित रखने के वित्तीय नुक़सान भी हैं. इस निर्णय के कारण, देश को अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के लगभग ढाई प्रतिशत हिस्से से हाथ धोना पड़ता है.
यूनीसेफ़ का कहना है कि अगर मौजूदा लगभग 30 लाख लड़कियों को सैकण्डरी स्कूली शिक्षा पूरी करके, कार्यबल में शामिल होने का मौक़ा दिया जाता है तो अफ़ग़ान अर्थव्यवस्था को लगभग 5 अरब 40 करोड़ डॉलर के बराबर धन का फ़ायदा होगा.