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काबुल

अफ़ग़ानिस्तान के बल्ख़ प्रान्त में, मज़ार-ए-शरीफ़ के एक स्कूल में तालीम हासिल करती कुछ लड़कियाँ.
© UNICEF/Mark Naftalin

एक नए अभियान से, तालीम के लिए अफ़ग़ान लड़कियों की पुकार बुलन्द

दीर्घकालिक संकटों व आपदाओं के दौरान भी बच्चों की शिक्षा जारी रखने के लिए कार्यरत संयुक्त राष्ट्र के एक कोष – Education Can Not Wait (ECW) ने, तालीम की ख़ातिर अफ़ग़ान लड़कियों की आवाज़ बुलन्द करने के लिए, मंगलवार को एक अभियान शुरू किया है. 

अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल का एक दृश्य. यह तस्वीर जून 2020 की है.
ADB/Jawad Jalali

अफ़ग़ानिस्तान: तालेबान द्वारा ‘क्रूर’ दंडों के प्रयोग पर गहरी चिन्ता

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों एक समूह ने गुरूवार को कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में दंड के “क्रूर व गरिमाहीन” तरीक़े और मृत्युदंड का प्रयोग व निष्पक्ष मुक़दमों की गारंटियों का अभाव, सब मिलकर, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन करते हैं और उन्हें तत्काल रोका जाना होगा.

अफ़ग़ानिस्तान के जलालाबाद में, एक सड़क पर कुछ महिलाएँ (फ़ाइल फ़ोटो)
UN Photo/Fardin Waezi

अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान से ‘दैहिक दंड’ को ख़त्म करने की पुकार

अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UNAMA) ने सोमवार को कहा है कि देश में सत्तारूढ़ तालेबान अधिकारियों द्वारा दिया जा रहा दैहिक दंड, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के ख़िलाफ़ है और उस पर तत्काल रोक लगाई जानी होगी. इस दंड के दायरे में शारीरिक उत्पीड़न किए जाने के साथ-साथ मृत्युदंड भी शामिल हो सकता है.

अफ़ग़ानिस्तान के कन्दाहार में, यूनीसेफ़ समर्थित एक सचल स्वास्थ्य केन्द्र में, महिलाएँ और बच्चे अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हुए.
© UNICEF/Salam Al-Janabi

अफ़ग़ान महिलाओं के शब्द: ‘हम जीवित तो हैं, मगर ज़िन्दगी से महरूम हैं’

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने शुक्रवार को कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान द्वारा, देश की महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों के व्यवस्थागत दमन के परिणामस्वरूप ऐसे मौतें होने के हालात तैयार हो सकते हैं जिन्हें रोका जा सकता है, और अगर पाबन्दियाँ नहीं हटाई गईं तो इन मौतों को जानबूझकर महिलाओं की हत्या माना जा सकता है.

स्कूली पढ़ाई रुक जाने के बाद एक अफ़ग़ान लड़की अपने पिता की मदद से घर पर पढ़ाई करते हुए.
© UNICEF/Munir Tanwee/Daf recor

अफ़ग़ानिस्तान: महिला यूएन स्टाफ़ के काम पर पाबन्दी वाले आदेश की कड़ी निन्दा

संयुक्त राष्ट्र के शीर्षतम अधिकारियों ने अफ़ग़ानिस्तान में यूएन मिशन और एजेंसियों के लिए, महिलाओं के काम करने पर पाबन्दी लगाने वाले तालेबान आदेश की कड़ी निन्दा की है.

अफ़ग़ानिस्तान में निर्बल हालात वाले परिवारों को मिलने वाले सहायता रसद में, धन की क़िल्लत के कारण, कटौती करनी पड़ रही है.
© UNICEF/Munir Tanweer

अफ़ग़ानिस्तान: धन की क़िल्लत के कारण सहायता रसद में कटौती

अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र की खाद्य सहायता एजेंसी (WFP) ने शुक्रवार को घोषणा की है कि धन की क़िल्लत के कारण, देश में कम से कम 40 लाख लोगों के लिए, जीवन रक्षक-सहायता में भारी कटौती करने के लिए विवश होना पड़ा है.

कुछ महिलाएँ अन्तरराष्ट्रीय प्रवासी संगठन (IOM) के एक मनोसामाजिक काउंसलर द्वारा आयोजित एक सत्र में, एक दूसरे के हाथों में हाथ थामे हुए - लम्बी साँस खींंचते हुए.
Photo: IOM/Léo Torréton

आपबीती: अफ़ग़ान महिलाओं को सदमों से उबरने में मदद का सिलसिला

*नजीबा, एक माँ हैं, एक काउंसलर हैं, विश्वविद्यालय में लैक्चरर रह चुकी हैं, वो अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं को सदमों से उबरने में मदद करती हैं...

अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में पुल-ए-ख़ेश्ती मस्जिद.
UNAMA/Freshta Dunia

अफ़ग़ानिस्तान: काबुल मस्जिद में घातक हमले की निन्दा, अनेक हताहत

अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UNAMA) ने राजधानी काबुल में गुरूवार को हुए एक घातक हमले की निन्दा की है.

अफ़ग़ानिस्तान के बाल्ख़ प्रान्त में, एक बाज़ार में, महिलाएँ अपना सामान बेचते हुए.
© WFP/Julian Frank

आपबीती: ‘अफ़ग़ान औरतें अब भी संघर्षरत हैं. और मैंने उनमें शामिल रहने का रास्ता चुना है.

36 वर्षीय नसीमा* अफ़ग़ानिस्तान में एक शान्ति निर्मात्री और महिला अधिकार कार्यकर्ता हैं. अगस्त 2021 में तालेबान द्वारा देश की सत्ता पर क़ब्ज़ा किये जाने के बाद से, नसीमा देश में ही रहकर काम कर रही हैं, जबकि देश के हालात दुनिया की सर्वाधिक जटिल मानवीय आपदाओं में शामिल होते जा रहे हैं. नसीमा की आपबीती...

अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल के नवाबाद ज़िले में, एक अफ़ग़ान लड़की
© UNICEF/Mohammad Haya Burhan

अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं व लड़कियों के लिये यूएन एजेंसियों की प्रतिबद्धता

संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों ने सोमवार को कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान के एक साल के शासन के दौरान महिलाओं और लड़कियों की ज़िन्दगियों के हालात बहुत ख़राब हुए हैं, जिससे मानवाधिकारों के तमाम क्षेत्र प्रभावित हुए हैं. यूएन एजेंसियों ने तालेबान शासन के एक साल बाद, देश की महिलाओं और लड़कियों को अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है.