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महामारी का एक और असर, बाल टीकाकरण में गिरावट

एक बच्ची, सीरिया के पूर्वोत्तर इलाक़े में संघर्ष से सुरक्षित बच निकलने के बाद, इराक़ में पोलियो और खसरा से बचाने वाले टीके लगवाते हुए.
© UNICEF/Anmar Rfaat
एक बच्ची, सीरिया के पूर्वोत्तर इलाक़े में संघर्ष से सुरक्षित बच निकलने के बाद, इराक़ में पोलियो और खसरा से बचाने वाले टीके लगवाते हुए.

महामारी का एक और असर, बाल टीकाकरण में गिरावट

स्वास्थ्य

संयुक्त राष्ट्र की दो एजेंसियों ने कहा है कि कोविड-19 महामारी ने बच्चों को विभिन्न बीमारियों से बचाने के लिये बचपने में किये जाने वाले टीकाकरण को दरकिनार कर दिया है और वर्ष 2020 के दौरान दुनिया भर में लगभग 2 करोड़ 30 लाख बच्चे नियमित टीकाकरण से वंचित रह गए.

संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी – WHO और बाल एजेंसी – यूनीसेफ़ ने बुधवार को कहा कि टीकाकरण से वंचित रहने वाले बच्चों की ये संख्या वर्ष 2009 के बाद सबसे ज़्यादा है.

इन एजेंसियों के आँकड़े दिखाते हैं कि ये संख्या कोरोनावायरस महामारी शुरू होने के पहले वर्ष में टीकाकरण से वंचित हुए बच्चों की संख्या से लगभग 40 लाख ज़्यादा है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉक्टर टैड्रॉस ऐडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा, “एक तरफ़ तो तमाम देश, कोविड-19 की वैक्सीन ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को लगाने के लिये जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बच्चों के नियमित टीकाकरण का रुख़ पीछे की तरफ़ मुड़ गया है. इसके कारण बच्चों के लिये घातक, मगर रोकी जा सकने वाली बीमारियों का जोखिम बढ़ गया है. इनमें खसरा, पोलियो या मैनिन्जाइटिस (मस्तिष्कावरण) जैसी बीमारियाँ शामिल हैं.”

बद से बदतर

कोविड-19 महामारी ने दुनिया भर में टीकाकरण सेवाओं में व्यापक व्यवधान उत्पन्न कर दिया है और दक्षिण पूर्व एशिया व पूर्वी भूमध्यसागरीय देश, सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं.

संसाधन और व्यक्ति कोविड-19 का मुक़ाबला करने के काम में लगा दिया गए, क्लीनिक या तो बन्द हो गए या उनकी सेवाएँ देने के घण्टे कम कर दिये गए.

वायरस के संक्रमण फैलाव को रोकने के लिये लागू की गई तालाबन्दी और परिवहन पाबन्दियों के कारण, बहुत से लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँचने में बहुत मुश्किलें हुईं.

इसके परिणामस्वरूप, विश्व स्वास्थ्य संगठन के तमाम क्षेत्रों में ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ गई है जिन्हें आवश्यक वैक्सीनों की पहली ख़ुराक भी नहीं मिली है.
यूनिसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हेनरीएटा फ़ोर ने चेतावनी भरे शब्दों में कहा है कि इस स्थिति के कारण बहुत सी ज़िन्दगियाँ दाँव पर लग गई हैं. 

उन्होंने कहा, “महामारी का फैलाव शुरू होने से पहले भी, ऐसे चिन्ताजनक संकेत मिल रहे थे कि बच्चों की रोकी जा सकने वाली बीमारियों के ख़िलाफ़ टीकाकरण किये जाने के अभियानों में पर्याप्त कामयाबी नहीं मिल रही थी. इसमें दो वर्ष पहले बड़े पैमाने पर खसरा का फैलना भी शामिल था.”

“महामारी ने ख़राब स्थिति को और भी बदतर बना दिया है. इस समय हर किसी के दिमाग़ में, कोविड-19 की वैक्सीन की समान उपलब्धता और वितरण की बात ही छाई हुई है, मगर हमें ये भी याद रखना होगा कि वैक्सीन वितरण हमेशा ही विषमता का शिकार रहा है, लेकिन ज़रूरी नहीं है कि ऐसा होता ही रहे.”

पुनर्बहाली और निवेश

वर्ष 2019 की तुलना में देखा जाए तो, दुनिया भर में 30 लाख और ज़्यादा बच्चों को खसरा से बचाने वाले टीके की पहली ख़ुराकें नहीं मिलीं. लगभग 35 लाख अतिरिक्त बच्चों को डिप्थीरिया, टिटनस और काली ख़ाँसी (डीपीटी-1) से बचाने वाली वैक्सीन की पहली ख़ुराक से वंचित रहना पड़ा है.

यूएन एजेंसियों का कहना है कि किसी ना किसी वैक्सीन के टीकों से वंचित रहने वाले बच्चों की संख्या, मध्य आय वाले देशों में ज़्यादा देखी गई है. 

उदाहरण के लिये, भारत में डीपीटी-1 की कवरेज 91 प्रतिशत से कम होकर 85 प्रतिशत रह गई है.

अमेरिका क्षेत्र में भी एक परेशान करने वाली तस्वीर उभरी है और इसके लिये ज़िम्मेदार कारकों में धन की कमी होना, वैक्सीनों के बारे में ग़लत जानकारियाँ फैलना और अस्थिरता शामिल हैं. 

अमेरिकी क्षेत्र के देशों में केवल 82 प्रतिशत बच्चों का टीकाकरण हो पाया है जोकि वर्ष 2016 की 91 प्रतिशत संख्या से कम है.

ऐसे हालात में, जबकि दुनिया महामारी से उबरने के प्रयासों में लगी है, यूएन एजेंसियाँ व उनके साझीदार संगठन और गावी, सभी ने मिलकर, नियमित टीकाकरण को तत्काल पुनर्बहाल किये जाने और संसाधन निवेश की पुकार लगाई है.

ये एजेंसियाँ और साझीदार संगठन टीकाकरण सेवाएँ और अभियान बहाल करने के उपायों में देशों की मदद कर रहे हैं. 

इन प्रयासों में ये सुनिश्चित करने की भी कोशिश की जा रही है कि कोविड-19 की वैक्सीन का टीकाकरण, बचपन में होने वाले अन्य वैक्सीनों के टीकाकरण के साथ-साथ चले, ना कि उसे दरकिनार करके.