अन्याय का सामना करने के लिये उठ खड़े हों, मिशेल बाशेलेट की पुकार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद का नया सत्र जिनीवा में मंगलवार को शुरू हुआ जिसमें सदस्य देशों ने निजी तौर पर इसमें शिरकत की. यूएन मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाशेलेट ने तमाम देशों से आग्रह किया कि वो हर जगह अन्याय का मुक़ाबला करने के लिये हर सम्भव प्रयास व उपाय करने में कोई कमी ना छोड़ें.
मिशेल बाशेलेट ने परिषद के उदघाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए कोविड-19 का मुक़ाबला करने के लिये वैश्विक एकजुटता की अपील भी की.
#HRC45: In her global human rights update@UN_HRC, UN Human Rights Chief @mbachelet calls for urgent action to heighten resilience and protect people's rights https://t.co/bMvHdBgC4Q pic.twitter.com/z8yt2pttQg
UNHumanRights
ये अपील ऐसे समय में की गई है जब विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया भर में कोरोनावायरस के संक्रमण के लगभग पाँच लाख नए मामले दर्ज किये गए हैं, इनमें से केवल शनिवार को ही तीन लाख 7 हज़ार मामले दर्ज किये गए, जोकि किसी एक दिन में दर्ज होने वाली सबसे ज़्यादा संख्या है.
मिशेल बाशेलेट ने कहा, “दुनिया ने शायद ही कभी कोविड-19 जैसा जटिल और एक साथ वैश्विक झटका देखा हो. कोई भी देश अछूता नहीं बचा है. फिर भी महामारी के चिकित्सकीय, सामाजिक व आर्थिक परिणाम हर स्थान पर अलग-अलग प्रभाव छोड़ रहे हैं.”
“मैं इस मामले में पूरी तरह विश्वस्त हूँ कि विभिन्न आमदनी स्तरों वाले देशों में मानवाधिकारों का ख़याल रखने वाली नीतियों के ज़रिये महामारी के तबाही मचाने वाले प्रभावों का सामना किया जा सकता है. इन नीतियों के सहारे बेहतर सुरक्षा व ज़्यादा मज़बूत व सहनशील पुनर्बहाली हो सकती है.”
मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने कहा कि कोविड-19 महामारी का क़हर ऐसे समय में टूटा है जब दुनिया भर में राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक संकट गहराई से जड़ें जमाए हुए हैं.
“ऐसी व्यवस्थागत दरारें जिनके कारण हम सभी इस वायरस के लिये कमज़ोर साबित हुए और ये वायरस अपना नुक़सान पहुँचाने के लिये अपने प्रवेश द्वार बना सका, वो ऐसी राजनैतिक प्रक्रियाओं के कारण वजूद में आती हैं जहाँ लोगों की आवाज़ों को अनसुना किया जाता है और मानवाधिकार सुरक्षा में भी ख़ामियाँ हैं.”
मिशेल बाशेलेट ने ख़ासतौर से अमेरिकी क्षेत्र के देशों का ज़िक्र करते हुए कहा कि उस क्षेत्र में कोविड-19 के भीषण सामाजिक व आर्थिक प्रभाव के कारण वहाँ विकास के मामले में मौजूद बेतहाशा असमानताओं को दूर करने के लिये ठोस कार्रवाई शुरू होनी चाहिये.
यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त ने आगाह करते हुए कहा कि कुछ बहुत ही नाज़ुक लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं की मौजूदगी शायद किसी बड़ी सामाजिक अशान्ति के बारे में पूर्व चेतावनी हो.
ये भी पढ़ें: पत्रकारिता पर जोखिम - पत्रकारों पर बढ़ते हमलों के बारे में ख़तरे की घण्टी
इस स्थिति का मुक़ाबला करने का एक मात्र तरीक़ा एक ऐसी टिकाऊ पुनर्बहाली सुनिश्चित करना है जिसमें असमानताओं, किन्हीं ख़ास लोगों या वर्ग को विकास प्रक्रिया से बाहर रखना और भेदभाव के मूल कारणों को ही ख़त्म किया जाए.
उन्होंने कहा, “पूरे क्षेत्र में बढ़ती हिंसा का मुक़ाबला करने के लिये लोकतन्त्र को मज़बूत करना और मानवाधिकार सुनिश्चित करना भी एक महत्वपूर्ण रास्ता साबित हो सकता है.”
मिशेल बाशेलेट ने वैश्विक स्तर पर लोगों की तकलीफ़ों में इज़ाफ़ा और बढ़ती अशान्ति की निन्दा करते हुए ज़ोर देकर कहा कि मानवाधिकार के सिद्धान्त और कार्रवाई सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक अस्थिरता को रोककर, झटकों, सदमों और तकलीफ़ों के ख़िलाफ़ एक मज़बूती व सहनशीलता का विकल्प सामने रखते हैं.
ये भी पढ़ें: बेलारूस में शान्तिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ बल प्रयोग पर चिन्ता
यूएन मानवाधिकार प्रमुख, आम परम्परा के अनुसार, मानवाधिकार परिषद का सत्र शुरू होने के पहले दिन उन देशों की सूची पेश करते हैं जहाँ मानवाधिकारों के उल्लंघन पर ख़ास ध्यान दिये जाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया जाता है. इस वर्ष इस सूची में लगभग दो दर्जन देशों का नाम शामिल किया गया है.
मिशेल बाशेलेट ने कहा कि ऐसे देशों में बेलारूस भी है जहाँ शान्तिपूर्ण प्रदर्शनकारियों का हिंसक दमन किये जाने की चिन्ताजनक ख़बरें लगातार आ रही हैं, जिनमें ख़ासतौर से महिलाएँ भी हैं.
बेलारूस में सामाजिक शान्ति फिर से स्थापित करने के लिये दूरगामी प्रभाव वाली बातचीत, सुधार और गम्भीर मानवाधिकारों के लिये ज़िम्मेदार हस्तियों व ताक़तों की जवाबदेही निर्धारित किये जाने की ज़रूरत होगी.
मानवाधिकार उच्चायुक्त के वक्तव्य में पोलैण्ड में एलजीबीटीआई मुक्त क्षेत्रों का ज़िक्र चिन्ता के साथ किया गया, वहीं, तंज़ानिया में अगले महीने होने वाले चुनावों के माहौल में लोकतान्त्रिक व नागरिक पटल का दमन भी चिन्ताजनक क़रार दिया गया है.
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने हजारों प्रवासियों व शरणार्थियों की तकलीफ़े दूर करने के लिये योरोपीय संघ के सदस्य देशों का ध्यान भी खींचा है. ग्रीस के लेस्वॉस में पिछले सप्ताह आश्रय स्थलों में आग लगने से हज़ारों प्रवासी व शरणार्थी बेघर हो गए थे.
इस सूची में इराक़ के हालात पर भी चिन्ता व्यक्त की गई है जहाँ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर सशस्त्र गुटों द्वारा हमले हुए हैं और कुछ की हत्याएँ भी हुई हैं और इनके लिये किसी की जवाबदेरी निर्धारित नहीं ही है. सीरिया में स्वास्थ्य सेवाओं पर जानबूझकर गोलाबारी हुई है, जहाँ लगभग 93 लाख लोगों को पास पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं है.
योरोपीय संघ के प्रतिनिधिमण्डल ने बेलारूस पर मानवाधिकार प्रमुख की चिन्ता से सहमति व्यक्त करते हुए वहाँ की स्थिति पर तुरन्त चर्चा कराए जाने की पुकार लगाई है.
मानवाधिकार परिषद के सदस्य इस पुकार के जवाबन में ये चर्चा शुक्रवार को कराने पर राज़ी हो गए हैं. इस पुकार के समर्थन में 25 वोट पड़े, दो मत विरोध में रहे, और 20 सदस्यों ने मतदान में अनुपस्थिति दर्ज कराई.
जिनीवा में संयुक्त राष्ट्र के लिये जर्मनी के राजदूत और योरोपीय प्रतिनिधिमण्डल के अध्यक्ष माइकल वॉन उन्गर्न स्टेनबर्ग ने कहा कि ऐसी चर्चा कराया जाना इसलिये ज़रूरी है क्योंकि पूर्वी योरोपीय देश बेलारूस में मानवाधिकारों स्थिति अगस्त में हुए राष्ट्रपति पद के विवादित चुनाव से पहले और बाद में बहुत ज़्यादा बिगड़ी है.
इससे पहले यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश भी बेलारूस में शान्तिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ हिंसा के इस्तेमाल की निन्दा कर चुके हैं. महासचिव ने शुक्रवार को जारी वक्तव्य में बेलारूस में अपने वैध लोकतान्त्रिक अधिकारों का इस्तेमाल करने के लिये लोगों को बन्दी बनाए जाने पर गहरी चिन्ता जताई थी.
बेलारूस के प्रतिनिधिमण्डल ने इस प्रस्तावित चर्चा को बाहरी दख़लअन्दाज़ी कहते हुए ख़ारिज कर दिया.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की इस तरह की बैठक साल में कम से कम तीन बार होती है. ये मौजूदा सत्र 6 अक्टूबर 2020 तक चलेगा.