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मानवाधिकारों के सार्वभौमिक चिरंतन मूल्‍यों की वर्षगांठ

फ़रवरी 1950 में लेक सक्सैस में संयुक्त राष्ट्र के अंतरिम मुख्यालय में जापानी महिलाओं का एक दल सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा-पत्र का अवलोकन करते हुए.
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फ़रवरी 1950 में लेक सक्सैस में संयुक्त राष्ट्र के अंतरिम मुख्यालय में जापानी महिलाओं का एक दल सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा-पत्र का अवलोकन करते हुए.

मानवाधिकारों के सार्वभौमिक चिरंतन मूल्‍यों की वर्षगांठ

मानवाधिकार

संयुक्‍त राष्‍ट्र परिवार दुनिया भर में यह सुनिश्चित करने की भरसक कोशिश करता रहा कि इस वर्ष मानवाधिकार दिवस, मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में निहित सिद्धांतों के प्रति जागरूकता बढ़ाने में सफल हो सके. वर्ष 2018 में ये दिन सोमवार को था और इस वर्ष मानवाधिकार दिवस की 70वीं वर्षगाँठ है. ये सिद्धांत आज भी उतने ही महत्‍वपूर्ण और प्रासंगिक हैं जितने 1948 में थे. 

मराकेश में सोमवार को पहले ग्‍लोबल माइग्रेशन कम्‍पैक्‍ट पर 164 देशों की सरकारों के प्रतिनिधियों द्वारा हस्‍ताक्षर किए जाने के मौक़े पर संयुक्‍त राष्‍ट्र महासचिव एंतॉनियो गुटेरेश ने कहा कि यह कम्‍पैक्‍ट लाखों लोगों की सुरक्षा और गरिमा की दिशा में एक महत्‍वपूर्ण क़दम है.

"इसमें बहुत व्‍यावहारिक ढंग से बताया गया है कि सदस्‍य देश और अन्‍य संबद्ध पक्ष सभी प्रवासियों के मानवाधिकारों का सम्‍मान, संरक्षण और पूर्ति मानवाधिकारों के सार्वभौमिक घोषणा के सिद्धांतों के अनुरूप किस तरह कर सकते हैं."

संयुक्‍त राष्‍ट्र मानवाधिकार उच्‍चायुक्‍त मिशेल बैकलेट ने महासचिव गुटेरेश के शब्‍दों को दोहराते हुए उपस्थित प्रतिनिधियों को याद दिलाया कि मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा युद्ध के बाद संकट के दौर में वजूद में आई थी. इसे समाजों को संघर्ष, असमानता तथा उथल-पुथल से बचने का मार्गदर्शक माना गया था. 
उन्‍होंने कहा, ''यह जीवंत दस्‍तावेज़ आज भी उतना ही सशक्‍त और वैध है जितना वैश्विक विनाश की राख और मलबे में था.''

 महासभा की अध्‍यक्ष मारिया फर्नेंडा एस्‍पिनोसा ने सम्‍मेलन को संबोधित करते हुए उस संदर्भ को याद किया जब मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा तैयार की गई थी. उन्‍होंने बताया कि कुछ सप्‍ताह पहले ही उन्‍होंने ऑशविट्ज़ में मौत की दीवार पर फूल चढ़ाए थे. 

उनका कहना था कि वे उस पल को कभी नहीं भूल पाएंगी, ''मुझे लगता है कि मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के मूल लेखकों के मन में भी यही भावना रही होगी. संयुक्‍त राष्‍ट्र चार्टर के रचनाकारों की तरह वो भी दूसरे विश्‍व युद्ध के अत्‍याचारों के प्रत्‍यक्षदर्शी थे. वो जानते थे कि मानव जीवन और मानव की गरिमा को हर जगह और हर क़ीमत पर संरक्षण देना ही होगा.'' 

इसके बावजूद मानव अधिकारों के लिए संघर्ष अभी समाप्‍त नहीं हुआ है: महासचिव ने कहा, ''उन्‍हें यह देखकर दुख होता है कि वैश्विक मानवाधिकार एजेंडा पिछड़ता जा रहा है, अधिनायकवाद, जातीय विद्वेष के कारण हिंसा और असहनशीलता बढ़ रही है. उन्‍होंने कहा कि यातना, बिना मुक़दमा चलाए हत्‍या और बिना सुनवाई हिरासत जैसे मानवाधिकारों के घोर उल्‍लंघन आज भी हो रहे हैं.''    

मानवाधिकारों के लिए नए जोखिम 

मानवाधिकारों के प्रति ख़तरों को न्‍यूयॉर्क में संयुक्‍त राष्‍ट्र मुख्‍यालय में भी सोमवार को उजागर किया गया, जहां परोपकारी संस्‍थाओं, ग़ैर-सरकारी संगठनों और प्रबुद्ध समाज के सदस्‍यों ने संयुक्‍त राष्‍ट्र के सहायक मानवाधिकार महासचिव एंड्रयू गिलमोर के साथ मिलकर इस बात पर चर्चा की कि आधुनिक चुनौतियां अधिकारों पर कैसे असर डाल रही हैं जिनकी 70 वर्ष पहले कल्‍पना भी नहीं की गई थी.

इस दौरान डिजिटल टैक्‍नॉलॉजी का भी उल्‍लेख हुआ जिसके अनेक लाभ हैं, लेकिन जो अपने साथ नए जोखिम भी लेकर आई है जो मानव अधिकारों के लिए मौजूदा ख़तरों को दोहरा और बढ़ा भी सकते हैं और जलवायु परिवर्तन का जोखिम पृथ्‍वी के अधिकतर हिस्‍से को रहने लायक नहीं छोड़ेगा.

संघर्षरत क्षेत्रों में मानवाधिकारों की रक्षा 

चुनौती भरी परिस्थितियों में मानव अधिकारों की रक्षा करना संयुक्‍त राष्‍ट्र शांतिरक्षण मिशनों की एक प्रमुख भूमिका है. मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के साथ इसका भी 70वां वर्ष है. संयुक्‍त राष्‍ट्र शांतिरक्षक और इन चुनौती भरी परिस्थितियों में कार्यरत कर्मचारी इस अवसर पर कई तरह से उल्‍लास मना रहे हैं. 

अफग़ानिस्‍तान में संयुक्‍त राष्‍ट्र सहायता मिशन यूएनएमए ने देश में मानव अधिकारों और बुनियादी स्‍वतंत्रताओं के सम्‍मान का फिर आह्वान किया.

उन्‍होंने अफग़ानिस्‍तान के स्‍वतंत्र मानवाधिकार आयोग के काम, मीडिया को सशक्‍त करने संबंधी नए क़ानूनों, बुनियादी स्‍वतंत्रताओं को प्रोत्‍साहन देने के लिए देश के संकल्‍प, नई दंड संहिता और प्रशासनिक सेवा तथा निजी क्षेत्र में महिलाओं की प्रमुख पदों पर उपस्थिति जैसी उपलब्धियों का स्‍वागत किया. 

उधर दक्षिणी सूडान की राजधानी जुबा में दैनिक यात्रियों ने सोमवार को सैनिकों को एथलीट के नए अवतार में देखा.

सैंकड़ों सैनिकों, पुलिस और जेल अधिकारियों, दमकल कर्मियों और वन्‍य जीव सेवा के सदस्‍यों ने राजधानी की सड़कों पर 10 किलोमीटर दौड़ में हिस्‍सा लिया. दक्षिण सूडान में चल रहे संयुक्‍त राष्‍ट्र मिशन ने यह आयोजन मानवाधिकारों और संघर्ष प्रभावित देश में शांति की आवश्‍यकता के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए किया. 

महासचिव के विशेष प्रतिनिधि और दक्षिणी सूडान में संयुक्‍त राष्‍ट्र मिशन के प्रमुख डेविड शियरर ने सोमवार को कहा, ''दक्षिणी सूडान के उबरने का एक ही तरीका है - शांति और मानवाधिकारों का सम्‍मान. यदि मानवाधिकारों का सम्‍मान होगा तो शांति होगी, यदि शांति होगी तो मानवाधिकारों, लोगों की नस्लीय पहचान और राजनीतिक विचारधारा का सम्‍मान होगा. ये दोनों चीज़ें साथ-साथ चलती हैं.'' 

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