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ग़ाज़ा युद्धविराम के लिए सुरक्षा परिषद प्रस्ताव ‘बाध्य और अनिवार्य’

मोज़ाम्बीक़ के राजदूत पैड्रो कॉमीसैरियो अफ़ोंसो, फ़लस्तीन के प्रश्न और मध्य पूर्व स्थिति पर सुरक्षा परिषद को सम्बोधित करते हुए.
UN Photo/Eskinder Debebe
मोज़ाम्बीक़ के राजदूत पैड्रो कॉमीसैरियो अफ़ोंसो, फ़लस्तीन के प्रश्न और मध्य पूर्व स्थिति पर सुरक्षा परिषद को सम्बोधित करते हुए.

ग़ाज़ा युद्धविराम के लिए सुरक्षा परिषद प्रस्ताव ‘बाध्य और अनिवार्य’

शान्ति और सुरक्षा

ग़ाज़ा में अक्टूबर से जारी युद्ध को रोकने के लिए, सुरक्षा परिषद ने पहली बार 25 मार्च को, तत्काल युद्धविराम की मांग करने वाले एक प्रस्ताव पारित किया था. जिसके बाद ये चर्चाएँ गरम हो गईं कि इस प्रस्ताव की क़ानूनी हैसियत क्या है, यानि यह क़ानूनी रूप से बाध्य है या नहीं और इसे लागू करने के लिए क्या कार्रवाई की जा सकती है.

यह प्रस्ताव पारित होने के तुरन्त बाद ही उच्च स्तरीय कूटनैतिक हलचल देखने को मिली. यह प्रस्ताव सुरक्षा परिषद के 10 अस्थाई सदस्यों ने पेश किया था जिसकी अगुवाई मोज़ाम्बीक़ ने की थी.

उस प्रस्ताव के समर्थन में 14 मत पड़े, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया, जिससे यह प्रस्ताव पारित हो गया.

मगर उसके बाद, अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफ़ील्ड ने इस प्रस्ताव को “बाध्यकारी नहीं” क़रार दिया था, और कुछ अन्य अमेरिकी अधिकारियों ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए थे.

मोज़ाम्बीक़ के राजदूत पैड्रो कॉमीसैरियो अफ़ोंसो ने, देशों से, सोमवार को पारित किए गए सुरक्षा परिषद के इस प्रस्ताव का सम्मान किए जाने का आहवान किया है.

मोज़ाम्बीक़ ने ही इस संक्षिप्त प्रस्ताव का मसौदा तैयार किया था, 10 निर्वाचित सदस्यों (E-10) की तरफ़ से, सुरक्षा परिषद में पेश भी किया था.

यूएन चार्टर के पालन का मुद्दा

उन्होंने यूएन न्यूज़ के साथ एक ख़ास बातचीत में रेखांकित किया, “सुरक्षा परिषद द्वारा जारी और पारित किए गए प्रस्ताव, स्वभाविक रूप से बाध्य और अनिवार्य हैं. यही कारण से सुरक्षा परिषद वजूद में है.”

उन्होंने कहा, “अन्यथा, इस पारित प्रस्ताव का कोई औचित्य नहीं होता. हमारी उम्मीद है कि सुरक्षा परिषद के सभी सदस्य देश, और जिन देशों से यह प्रस्ताव मुख़ातिब है – मैं इसराइल, फ़लस्तीनी प्रशासन और तमाम अन्य देशों की बात कर रहा हूँ – इस प्रस्ताव का सम्मान करने और इसे लागू करने की स्थिति में होंगे.”

“(इस प्रस्ताव का लागू नहीं करना, संयुक्त राष्ट्र के चार्टर की अनदेखी है, हमारी मानव अन्तरात्मा के विरुद्ध है, उस सबके ख़िलाफ़ है जिससे हम इनसान बनते हैं.”

मोज़ाम्बीक़ के राजदूत पैड्रो कॉमीसैरियो अफ़ोंसो ने इस प्रस्ताव के पारित होने के सांकेतिक महत्व का ज़िक्र किया और आशा व्यक्त की कि इसमें से शान्ति का रास्ता निकलेगा: 

“मुख्य मुद्दा, ग़ाज़ा में टकराव को रोकना है, हमास द्वारा बन्धक बनाकर रखे गए सभी लोगों को रिहा किया जाना है और मानवीय सहायता की आपूर्ति का दायरा और रफ़्तार इतने बढ़ाने हैं कि सभी फ़लस्तीनी लोगौं को समुचित सहायता मुहैया कराई जा सके, विशेष, रूप में ग़ाज़ा के लोगों को.” 

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने भी कहा है कि सुरक्षा परिषद के इस प्रस्ताव को लागू किया जाना लाज़मी है, इसे लागू करने में विफलता अक्षम्य होगी.

ग़ाज़ा में युद्ध से भीषण तबाही हुई है, बुनियादी ढाँच तहस-नहस हो गया है, और 32 हज़ार से अधिक फ़लस्तीनी मारे गए हैं.
© UNICEF/Eyad El Baba