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ग़ाज़ा: बिखरते सपनों के बीच युवाओं का हौसला क़ायम रखने की जद्दोजहद

ग़ाज़ा स्थित दीर अल-बलाह स्कूल.
UN News
ग़ाज़ा स्थित दीर अल-बलाह स्कूल.

ग़ाज़ा: बिखरते सपनों के बीच युवाओं का हौसला क़ायम रखने की जद्दोजहद

शान्ति और सुरक्षा

फ़लस्तीनी क्षेत्र ग़ाज़ा में स्कूली सत्र निलम्बित किए जाने, कक्षाएँ बन्द होने या स्कूलों के आश्रय स्थलों में तब्दील कर दिए जाने के कारण, बच्चों की शिक्षा का पूरा एक साल बर्बाद होने की सम्भावना है. यूएन न्यूज़ के संवाददाता, ज़ायद तालिब ने, मध्य ग़ाज़ा के दीर ​​अल-बलाह स्थित स्कूल में, शिक्षकों और बच्चों के साथ बातचीत की. यह स्कूल, सुरक्षित स्थान की तलाश में अपने घरों से भागकर आए विस्थापितों से खचाखच भरा हुआ है.

“फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र सहायता एजेंसी - UNRWA द्वारा संचालित 700 से अधिक स्कूलों में से एक, दीर ​​अल-बलाह प्राथमिक स्कूल के अहाते या कक्षाओं में शायद ही कोई जगह ख़ाली बची है. जिस मैदान में बच्चे खेलकूद, मौज-मस्ती करते थे, अब वो तम्बुओं से अटा हुआ है.”

अयमन इब्राहिम जौदा, पाँचवीं कक्षा के छात्रों को गणित पढ़ाते थे. वह बताते हैं कि यह स्थान पहले 'विज्ञान और शिक्षा का गढ़' था. पढ़ाई-लिखाई ठप्प होने के कारण, अयमन जौदा अब विस्थापित लोगों की मदद करने में अपना समय बिताते हैं, और ग़ाज़ा पट्टी के अन्य हिस्सों से भागकर यहाँ शरण लेने वाले लोगों को जानकारी मुहैया कराते हैं.

दीर अल-बलाह आश्रय में काम करने वाले एक अन्य शिक्षक, अब्दुल रहमान अल-शमी, 7 अक्टूबर 2023 को युद्ध शुरू होने के बाद, ग़ाज़ा शहर से विस्थापित हो गए थे. 

उनका कहना है कि UNRWA, गुणवत्तापूर्ण शैक्षिक सेवाएँ प्रदान कर रही थी. वह कहते हैं, 'यहाँ जीवन कठिन और कड़वा है. हम उम्मीद करते हैं कि जल्दी अपने पिछले, बेहतर जीवन में वापस लौटेंगे."

मैंने शिक्षा से वंचित कुछ बच्चों से भी बात की. एक बच्ची ने मुझसे कहा कि वह बड़ी होकर पत्रकार बनना चाहती हैं.

वर्तमान में वो ठंड और बारिश के हालात में तम्बू में रह रही हैं, जहाँ स्वच्छ पानी की बहुत कमी है. एक अन्य किशोर ने बताया कि अपने माता-पिता के साथ भागकर दीर अल-बलाह आने से पहले ही उसका स्कूल पूरी तरह नष्ट हो गया था.

ग़ाज़ा में बच्चों के मनोरंजन के लिए आयोजित कार्यक्रम.
UN News/Ziad Taleb

'बच्चों को खेलने का अधिकार है'

दक्षिणी शहर रफ़ाह के तेल अल-सुल्तान क्लीनिक में, मुझे बच्चों के हँसने-खिलखिलाने के कुछ दुर्लभ क्षण भी देखने को मिले: पेंटिंग करते, नाचते-कूदते, खेलते बच्चे.

यह बच्चे, फ़ार्मासिस्ट सुलाफ़ा अबू हिलाल द्वारा आयोजित एक मनोरंजक कार्यक्रम में भाग ले रहे थे, जो 100 से अधिक दिनों से युद्ध झेल रहे बच्चों के लिए, मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करने का एक तरीक़ा था.

अबू हिलाल ने कहा, 'उन्हें बच्चों की तरह जीने, खेलने का अधिकार है. इस कार्यक्रम का लक्ष्य, एक सुरक्षित माहौल बनाना था, जिसमें वो ख़ुशी महसूस कर सकें.'

बच्चों और उनके माता-पिता के लाभ के लिए, इस क्लीनिक और रफ़ाह में दो अन्य स्थानों पर, इसी तरह के आयोजन करने की योजना बनाई जा रही है. 

अबू हिलाल कहते हैं, जिससे 'डर और निराशा के बीच, उन्हें अन्धेरे में उम्मीद की एक किरण दिखाई दे सके.'