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इसराइली हवाई हमले और ज़मीनी सैन्य अभियान, युद्ध अपराधों के समान: यूएन विशेषज्ञ

इसराइली हवाई हमले के कारण ग़ाज़ा में अपने घर के खंडहरों पर बैठा एक फ़लस्तीनी बच्चा.
© Ziad Taleb
इसराइली हवाई हमले के कारण ग़ाज़ा में अपने घर के खंडहरों पर बैठा एक फ़लस्तीनी बच्चा.

इसराइली हवाई हमले और ज़मीनी सैन्य अभियान, युद्ध अपराधों के समान: यूएन विशेषज्ञ

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने बुधवार को चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि इसराइल के क़ब्ज़े वाले फ़लस्तीनी क्षेत्र पश्चिमी तट के जेनिन शरणार्थी शिविर में, इसराइली सुरक्षा बलों के सैन्य अभियानों में कम से कम 12 फ़लस्तीनियों की मौतों को, प्रथम दृष्टि में युद्धापराध कहा जा सकता है.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने जिनीवा में पत्रकारों को बताया कि क़ाबिज़ पश्चिमी तट में इसराइली सुरक्षा बलों की सैन्य कार्रवाई, क़ाबिज़ आबादी की हत्याएँ और उन्हें घायल करना, उनके घरों और बुनियादी ढाँचे को ध्वस्त करना, व हज़ारों लोगों को मनमाने ढंग से विस्थापित करना, अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून और बल प्रयोग के मानकों का घोर उल्लंघन कहे जा सकते हैं और ये गतिविधियाँ युद्धापराध की श्रेणी में भी रखी जा सकती हैं.   

विनाशकारी सैन्य अभियान

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि इसराइल के क़ब्ज़े वाले फ़लस्तीनी क्षेत्र - पश्चिमी तट में, इसराइली बलों ने 3 व 4 जुलाई को, एक भीषण सैन्य अभियान चलाया जिसमें कम से कम 12 फ़लस्तीनियों को मार दिया गया और 100 से ज़्यादा फ़लस्तीनियों को घायल कर दिया. 

ये अभियान पश्चिमी तट में, लगभग दो दशक में सबसे भीषण था. इसराइली हमलों ने हज़ारों फ़लस्तीनी लोगों को अपने स्थान छोड़कर सुरक्षा की ख़ातिर अन्यत्र चले जाने के लिए विवश करने के साथ-साथ बुनियादी ढाँचे, घरों और अनेक इमारतों को भी ध्वस्त किया.

यूएन विशेषज्ञों के अनुसार, वर्ष 2002 में जेनिन शरणार्थी शिविर में हुई तबाही के बाद पश्चिमी तट में ये अब तक के सबसे भीषण हमले थे.

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने अनेक ख़बरों का सन्दर्भ देते हुए बताया कि घायलों को बचाने के लिए एम्बुलेंस गाड़ियों को जेनिन शरणार्थी शिविर तक पहुँचने से रोका जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप घायलों को, चिकित्सा सहायता तक पहुँचने में बाधा उत्पन्न हो रही है. 

सोमवार और मंगलवार को हुए घातक हवाई हमलों के बाद, लगभग चार हज़ार फ़लस्तीनी लोग, उस शरणार्थी शिविर से रातोंरात भाग निकलने को मजबूर हुए हैं.

रातोंरात विस्थापन

इसराइल द्वारा क़ाबिज़ फ़लस्तीनी क्षेत्र पश्चिमी तट में, इसराइली सैन्य अभियानों के कारण, लोगों को अपने घर छोड़कर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
© UNOCHA

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा, “मूल रूप में, वर्ष 1947 और 1949 के बीच विस्थापित हुए हज़ारों फ़लस्तीनी शरणार्थियों को, अत्यधिक डर के कारण आधी रात में शरणार्थी शिविर से भागने के लिए मजबूर होते देखना बेहद हृदय विदारक है.”

उन्होंने, इसराइली बलों के कथित "आतंकवाद-विरोधी" सैन्य अभियानों की निन्दा करते हुए कहा कि इन हमलों का अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत कोई औचित्य नहीं है.

उन्होंने कहा कि ये हमले फ़लस्तीनी आबादी के लिए एक सामूहिक सज़ा का के समान हैं, जिन्हें इसराइली अधिकारियों की नज़र में "सामूहिक सुरक्षा जोखिम" क़रार दे दिया गया है.

यूएन विशेषज्ञों ने इसराइली सैन्य अभियानों के दौरान जेनिन शरणार्थी शिविर में रहने वाली आबादी के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किए गए सैन्य हथियार तरीक़ों व चालों पर गहरी चिन्ता व्यक्त की है. 

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा, “इसराइल के क़ब्ज़े वाले फ़लस्तीनी क्षेत्र में रहने वाले फ़लस्तीनी लोग, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत संरक्षित आबादी हैं, जिन्हें मासूम समझे जाने सहित तमाम मानवाधिकारों की गारंटी प्राप्त है.“

"सत्ताधारी शक्ति द्वारा उन्हें सामूहिक सुरक्षा ख़तरा नहीं माना जा सकता है, ख़ासतौर पर जबकि, सत्ताधारी शक्ति (इसराइल), क़ाबिज़ फ़लस्तीनी ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने और यहाँ के फ़लस्तीनियों को बेदख़ल करने के प्रयास कर रही है.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि फ़लस्तीनी क्षेत्र - जेनिन शरणार्थी शिविर में इसराइली सुरक्षा बलों के सैन्य अभियान उस ढाँचागत हिंसा की वृद्धि दर्शाते हैं, जो क़ाबिज़ फ़लस्तीनी क्षेत्र में दशकों से होती रही है. 

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने, ग़ैर-क़ानूनी क़ब्ज़े और उसे मज़बूत करने के लिए हिंसक गतिविधियों के लिए इसराइल को, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत जवाबदेह ठहराए जाने की पुकार लगाई है.

उन्होंने कहा, “कठोर हिंसा को समाप्त करने के लिए, इसराइल का अवैध क़ब्ज़ा समाप्त होना होगा. इसे इधर-उधर से ठीक नहीं किया जा सकता या सुधारा जा सकता क्योंकि ये क़ब्ज़ा बुनियादी रूप में ही ग़लत है.”

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, जिनीवा स्थित यूएन मानवाधिकार परिषद द्वारा, दुनिया के किसी हिस्से में मानवाधिकार विशेष स्थिति या विषय पर जाँच-पड़ताल करके रिपोर्ट सौंपने के लिए नियुक्त किए जाते हैं. ये मानवाधिकार विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं. उन्हें उनके कामकाज के लिए, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं दिया जाता है.