म्याँमार: मानवाधिकार हनन और ‘स्तब्धकारी हिंसा’ से धूमिल हो रही आशा
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त (OHCHR) ने मानवाधिकार परिषद को बताया है कि म्याँमार में सैन्य बलों द्वारा अपने ही देश के लोगों के विरुद्ध, मनमाने ढंग से घातक हिंसा का इस्तेमाल जारी है, और यह बढ़ते मानवीय संकट व बद से बदतर होती आर्थिक स्थिति के बीच हो रहा है.
मानवाधिकार कार्यालय प्रमुख वोल्कर टर्क ने कहा कि म्याँमार के लिए आशा अब दुर्लभ है, और इन हालात में स्थानीय नागरिकों को मज़बूत समर्थन दिए जाने की आवश्यकता है.
यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने कुछ ही दिन पहले, म्याँमार की स्थिति पर अपनी एक नई रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जोकि फ़रवरी 2022 से जनवरी 2023 की अवधि पर आधारित है.
#Myanmar: UN Human Rights Chief @volker_turk deplores 3rd yr of spiraling human rights, humanitarian & economic crisis caused by military rule. Calls on military to end violence against its people, incl discrimination against Rohingya, & vital intl support:https://t.co/9jBfkBrbjb https://t.co/zjnseAzTaa
UNHumanRights
रिपोर्ट के अनुसार म्याँमार में सैन्य तख़्तापलट के बाद के दो वर्षों में, सैन्य नेतृत्व की दमनकारी नीतियों के कारण, हज़ारों आम नागरिकों की मौत हुई है, लड़ाई के कारण 80 फ़ीसदी रिहायशी इलाक़ों पर असर हुआ है, और अनेक मोर्चों पर जूझ रहे सुरक्षा बलों ने हवाई कार्रवाई का भी सहारा लिया है.
सैन्य तख़्तापलट के दूसरे वर्ष में, सुरक्षा बलों द्वारा अपने ही नागरिकों के विरुद्ध हवाई हमलों में 141 प्रतिशत और घरों व रिहायशी इलाक़ों में आगज़नी की घटनाओं में 380 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है.
“जो लोग जान बचाकर भागने में असमर्थ हैं, उनके लिए ज़िन्दा जला दिए जाने का जोखिम है. जो भाग सकते हैं, उन्हें बेहद विकट हालात का सामना करना पड़ता है. तख़्तापलट के बाद से अब तक 13 लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं.”
सैन्य हिरासत में मौत, यातना
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने विश्वसनीय सूत्रों के हवाले से बताया कि वर्ष 2021 से अब तक सैन्य बलों और उसके सहयोगी गुटों के हाथों, दो हज़ार 947 लोग मारे गए गए हैं, जिनमें 244 बच्चे हैं.
इनमें से एक-तिहाई लोगों की मौत सैन्य हिरासत में हुई, जबकि मृतकों की वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक होने की आशंका है. “यह अनिवार्य है कि सेना, सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का सम्मान करे और हिंसा पर विराम लगाने के लिए क़दम बढ़ाए.”
वोल्कर टर्क ने ज़ोर देकर कहा कि सभी सशस्त्र पक्षों को अन्तरराष्ट्रीय मानव कल्याण क़ानून के बुनियादी सिद्धान्तों का अनुपालन करने के लिए मज़बूत प्रयास करने होंगे.
उनके अनुसार, सैन्य नेतृत्व ने फ़रवरी में देश में आपातकाल की अवधि को बढ़ा दिया है, हिरासत में रखे गए बन्दियों की कथित रूप से पिटाई की गई है, बिना भोजन, पानी के उन्हें छतों से लटकाया गया है, बिजली के झटके दिए गए हैं और यौन हिंसा भी हुई है.
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, 1 फ़रवरी 2021 के बाद से अब तक, साढ़े 17 हज़ार लोगों को गिरफ़्तार किया गया है, जिनमें 381 बच्चे हैं. इनमें से 13 हज़ार 763 लोग अब भी हिरासत में हैं.
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने क्षोभ प्रकट करते हुए कहा कि अधिकर हनन से मीडिया आज़ादी और नागरिक समाज के लिए जगह भी संकुचित होती जा रही है.
“केवल एक फ़ेसबुक पोस्ट को लाइक करने से आतंकवाद के आरोप निर्धारित किए जा सकते हैं, और जेल में 10 वर्ष या उससे अधिक की सज़ा हो सकती है, ऐसे अपारदर्शी क़ानूनी प्रक्रिया के ज़रिए, जो निष्पक्ष मुक़दमे की कार्रवाई पर बिलकुल भी खरी नहीं उतरती.”

गम्भीर मानवीय आवश्यकताएँ
देश भर में, एक करोड़ 76 लाख लोगों को मानवीय सहायता की आवश्यकता है, और डेढ़ करोड़ से अधिक लोग पिछले कुछ समय से खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि रोहिंज्या समुदाय ने दशकों से अत्याचार व उत्पीड़न सहा है, उनका वर्तमान धुंधला है और भविष्य और भी ख़राब है.
10 लाख से अधिक रोहिंज्या जबरन निर्वासन में हैं, बड़ी संख्या में लोगों ने बांग्लादेश में शरण ली है और लाखों अन्य म्याँमार की सीमाओं के भीतर विस्थापित हुए हैं.
वोल्कर टर्क के अनुसार बिना किसी जवाबदेही के भविष्य के स्थाई समाधान की तलाश नहीं की जा सकती है. इस क्रम में उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय समर्थन बढ़ाने और शरणार्थियों के लिए शिक्षा व आजीविका अवसरों के प्रावधान पर बल दिया है.
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने मानवाधिकार परिषद के सदस्यों से म्याँमार की जनता के लिए सीधे तौर पर समर्थन सुनिश्चित करने का आग्रह किया है.
उन्होंने कहा कि सभी यूएन सदस्य देशों को सम्वाद व सतत समाधानों को बढ़ावा देना होगा, जो म्याँमार की जनता की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करें, ताकि इस क्रूर संकट का अन्त किया जा सके.