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'धर्म या आस्था पर आधारित हिंसा के पीड़ितों के लिये एकजुटता की ज़रूरत'

सांझ होने पर, प्रकाश करने की यहूदी परम्परा की एक तस्वीर.
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सांझ होने पर, प्रकाश करने की यहूदी परम्परा की एक तस्वीर.

'धर्म या आस्था पर आधारित हिंसा के पीड़ितों के लिये एकजुटता की ज़रूरत'

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने धर्म या आस्था के आधार पर हिंसक कृत्यों के पीड़ितों के लिये मनाए जाने वाले अन्तरराष्ट्रीय दिवस पर, उन लोगों को अपना समर्थन दोहराया है जिन्होंने तकलीफ़ें उठाई हैं. 

यह दिवस 22 अगस्त को उन पीड़ितों की याद में मनाया जाता है जिन्हें विचार व अन्तःकरण की अभिव्यक्ति, और धर्म या आस्था के कारण या तो मौत का शिकार होना पड़ा है, या भारी तकलीफ़ें उठानी पड़ी हैं.

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यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस दिवस पर जारी एक वक्तव्य में, ऐसे पीड़ितों के समर्थन में पक्की एकजुटता व्यक्त की है.

उन्होंने चेतावनी भरे अन्दाज़ में कहा, “नफ़रत भरी भाषा – चाहे वो ऑनलाइन मंचों पर हो या अन्यत्र, समाज के निर्बल सदस्यों के विरुद्ध हिंसा को ईंधन देना जारी रखे हुए हैं, और इन निर्बल लोगों में नस्लीय व धार्मिक अल्पसंख्यक शामिल हैं.”

‘हमें और ज़्यादा कार्रवाई करनी होगी’

संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष अधिकारी ने कहा कि यूएन महासभा ने ये दिवस 2019 में मनाने का प्रस्ताव पारित किया था, उसके बावजूद दुनिया भर में व्यक्ति व समुदाय, धर्म व आस्था पर आधारित असहिष्णुता व हिंसा का लगातार सामना कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, “हमें पीड़ितों की मदद करने के लिये और ज़्यादा प्रयास व कार्रवाई करने होंगे, साथ ही असहिष्णुता और नफ़रत को भड़काने वाली परिस्थितियों की भी पड़ताल करनी होगी.”

यूएन प्रमुख ने कहा, “मानवाधिकारों के लिये कार्रवाई की मेरी पुकार, और हेट स्पीच पर यूएन रणनीति व कार्रवाई योजना जैसे कार्यक्रम ऐसे उपकरण हैं जिनका इस्तेमाल, जटिल व अतिमहत्वपूर्ण मुद्दों से निपटने के लिये किया जा सकता है.”

ज़िम्मेदारी देशों के कन्धों पर

एंतोनियो गुटेरेश ने याद दिलाते हुए कहा कि धर्म या आस्था के नाम पर जो भेदभाव व हिंसा किये जाते हैं, उनकी रोकथाम करने व उनसे निपटने की ज़िम्मेदारी देशों के कन्धों पर है.

उन्होंने रेखांकित करते हुए कहा कि ये काम ऐसी व्यापक नीतियों के माध्यम से किया जाना चाहिये जो समावेश, विविधता, सहिष्णुता और अन्तर-धार्मिक व अन्तर-सांस्कृतिक सम्वाद को बढ़ावा दें.

यूएन प्रमुख ने इससे भी ज़्यादा आगे बढ़कर आगाह किया कि धर्म या आस्था के नाम पर किये जाने वाले मानवाधिकार हनन की जाँच करके, दोषियों को दण्डित करना होगा, और पीड़ितों को प्रभावशाली ख़मियाज़ा व मरहम मुहैया कराने होंगे, जो अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के अनुरूप हों.

यूएन महासचिव ने बताया, “ये बहुत ज़रूरी है कि देश, आस्था हस्तियाँ और अन्य प्रभावशाली व्यक्ति, धर्म व आस्था के नाम पर भड़काई जाने वाली नफ़रत व हिंसा के तमाम कृत्यों की निन्दा करें.”

“केवल एक सामूहिक, समावेशी, और समाज-व्यापी प्रयास से ही सर्वजन के लिये, सह-अस्तित्व के परिणाम हासिल किये जा सकते हैं और हमारे समाजों की इस बीमारी को मिटाया जा सकता है.”

धर्म की स्वतंत्रता

नफ़रत के ख़िलाफ़ एकजुटता दिखाने के लिये, न्यूयॉर्क के एक यहूदी धर्मस्थल - सिनेगॉग में एक अन्तर धार्मिक सभा का आयोजन. (31 अक्तूबर 2018)
UN Photo/Rick Bajornas
नफ़रत के ख़िलाफ़ एकजुटता दिखाने के लिये, न्यूयॉर्क के एक यहूदी धर्मस्थल - सिनेगॉग में एक अन्तर धार्मिक सभा का आयोजन. (31 अक्तूबर 2018)

धर्म या आस्था, विचार व अभिव्यक्ति के साथ-साथ शान्तिपूर्ण सभाएँ करने और संगठन बनाने की स्वतंत्रता, मानवाधिकारों के सार्वभौमिक घोषणा-पत्र के तीन अनुच्छेदों में वर्णित हैं.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, ये तीनों अन्तर-निर्भर, अन्तर-सम्बन्धित और आपस में एक दूसरे को मज़बूत करते अधिकार, आस्था पर आधारित तमाम तरह की असहिष्णुता और भेदभाव का मुक़ाबला करने में अहम भूमिका निभाते हैं.

उससे भी आगे, मुक्त, रचनात्मक और सम्मानजक वाद-विवाद होने के साथ-साथ, स्थानीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर, अन्तर-आस्था व अन्तर-सांस्कृतिक सम्वाद भी, धार्मिक नफ़रत, भड़कावे और हिंसा का मुक़ाबला करने में सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं.

ये स्वतंत्रताएँ व सम्मान, एक साथ मिलकर लोकतंत्र को मज़बूत करने और धार्मिक असहिष्णुता का मुक़ाबला करने में मददगार भूमिका निभा सकते हैं.