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इस्लामोफ़ोबिया और मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत पर, यूएन हस्तियों का कड़ा रुख़

न्यूज़ीलैण्ड के क्राइस्टचर्च में अल नूर मस्जिद जाने के बाद, मीडिया से बात करते यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश.
UN Photo/Mark Garten
न्यूज़ीलैण्ड के क्राइस्टचर्च में अल नूर मस्जिद जाने के बाद, मीडिया से बात करते यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश.

इस्लामोफ़ोबिया और मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत पर, यूएन हस्तियों का कड़ा रुख़

संस्कृति और शिक्षा

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि विविधता, दरअसल समृद्धि है, नाकि कोई जोखिम. महासचिव ने, बुधवार को इस्लामोफ़ोबिया का मुक़ाबला करने के लिये अन्तरराष्ट्रीय दिवस के मौक़े पर, सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने और पूर्वाग्रहों से निपटने में ज़्यादा संसाधन निवेश किये जाने का आहवान किया है.

यूएन प्रमुख ने इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) द्वारा आयोजित एक स्मारक समारोह के लिये वीडियो सन्देश में कहा, “हमें अपनी ऐसी नीतियाँ आगे बढ़ाते रहने होगा जिनमें मानवाधिकारों और विशिष्ट धार्मिक, सांस्कृतिक व मानव पहचान का सम्मान किया जाए.”

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“जैसाकि पवित्र क़ुरआन हमें याद दिलाता है: राष्ट्र और क़बीले इसलिये बनाए गए ताकि हम एक दूसरे को जान-पहचान सकें.”

नफ़रत की महामारी

लगभग 60 देश, इस्लामिक सहयोग संगठन के सदस्य हैं जिसने 15 मार्च को, इस्लामोफ़ोबिया का मुक़ाबला करने के लिये अन्तरराष्ट्रीय दिवस घोषित किया है.

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरश ने यूएन मानवाधिकार परिषद की हाल ही में जारी एक रिपोर्ट का ज़िक्र किया जिसमें कहा गया है कि मुसलमानों पर शक करना, उनके साथ भेदभाव करना और उनके लिये खुले रूप में नफ़रत रखने के मामले, ”महामारी के अनुपात” तक बढ़ गए हैं.”

रिपोर्ट में दिये गए उदाहरणों कुछ ऐसे मामले शामिल थे – मुसलमानों द्वारा अपनी आस्थाओं पर अमल करने के ख़िलाफ़ अत्यधिक प्रतिबन्ध लगाना, उनकी नागरिकता पर सीमाएँ तय करना, और मुस्लिम समुदायों के बारे में कलंकित छवि फैलाना, वग़ैरा.

अध्ययन में ये भी दिखाया गया है कि मुस्लिम महिलाओं को, किस तरह भेदभाव के तीन स्तरों का सामना करना पड़ता है – महिला होने के नाते, अपनी नस्लीय पहचान के लिये और अपनी आस्था के लिये. जबकि मीडिया ने और सत्ता में बैठे कुछ व्यक्तियों ने, कलंकित करने की मानसिकता को और ज़्यादा जटिल बना दिया है.

वैश्विक पीड़ादायक चलन

यूएन महासचिव ने कहा, “मुस्लिम विरोधी पूर्वाग्रह भी अन्य तरह के पीड़ादायक चलन की ही तरह हैं, जिनमें  ” नस्लीय राष्ट्रवाद, नव-नाज़ीवाद, किसी समुदाय को शर्मसार करने या उनके ख़िलाफ़ नफ़रत भरी भाषा का इस्तेमाल बढ़ते देखा गया है.

इस तरह के पूर्वाग्रहों और भेदभावपूर्ण चलन का निशाना मुसलमानों, यहूदियों, कुछ अल्पसंख्यक ईसाई समुदायों के साथ-साथ अन्य समुदायों को भी बनाया गया है.

यूएन प्रमुख ने ज़ोर देकर कहा कि भेदभाव, हम सभी का नुक़सान करता है, और अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित किये जाने का आहवान किया, जिनमें से बहुत से अल्पसंख्यक समुदायों पर जोखिम मंडरा रहा है. 

उन्होंने कहा, “अब जबकि हम, पहले से कहीं ज़्यादा बहु-नस्लीय व बहु-धार्मिक समुदायों की तरफ़, बढ़ रहे हैं तो हमें सामाजिक समरसता को मज़बूत करने और पूर्वाग्रहों से निपटने में, राजनैतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संसाधन निवेश करने की ज़रूरत है.”

महासचिव ने ज़ोर देकर कहा कि भेदभाव, नस्लवाद और तमाम तरह के पूर्वाग्रहों का मुक़ाबला करना, संयुक्त राष्ट्र की एक प्राथमिकता है. 

धर्मों के बीच सम्मान को बढ़ावा

संयुक्त राष्ट्र ने, 11 सितम्बर 2001 को, अमेरिका में हुए आतंकवादी हमलों, और उनके बाद लन्दन, मैड्रिड और बाली में हुए हमलों के बाद, अनेक मुस्लिम देशों और कुछ पश्चिमी देशों की बीच पैदा हुई कड़वाहट के मद्देनज़र, वर्ष 2005 में अलायन्स ऑफ़ सिविलाइज़ेशन्स (UNAOC) गठित किया था.

इस संगठन के मौजूदा उच्च प्रतिनिधि मिगेल एन्गेल मॉरेतीनॉस ने याद करते हुए बताया कि इस पहल को एक “राजनैतिक कोमल सत्ता औज़ार” के रूप में शुरू किया गया और इसके उद्देश्यों में, विभिन्न संस्कृतियं व धर्मों के बीच आपसी सम्मान को बढ़ावा देना शामिल था.

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश मिस्र की राजधानी काहिरा में अल अज़हर मस्जिद में बोलते हुए. उन्होने इस्लामोफ़ोबिया का मुक़ाबला करने और एकजुटता का आहवान किया. (2 अप्रैल 2019)
UN Photo/Mahmoud Abd ELLatiff
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश मिस्र की राजधानी काहिरा में अल अज़हर मस्जिद में बोलते हुए. उन्होने इस्लामोफ़ोबिया का मुक़ाबला करने और एकजुटता का आहवान किया. (2 अप्रैल 2019)

उन्होंने कहा, “अन्तर-सांस्कृतिक व अन्तर-आस्था सम्वादों को बढ़ावा देकर, समझदारी के जो पुल बनाने में मदद मिली है, उसके बावजूद, मुस्लिम विरोधी धारणाएँ ज्यों की त्यों बनी हुई हैं, बल्कि उन्होंने भिन्न रूप धारण कर लिये हैं.”

उन्होंने कहा कि हर किसी को अपने धर्मों व आस्थाओं के रीति-रिवाज़ों को मुक्त और सुरक्षित तरीक़े से निभाने के लिये खुला स्थान मुहैया कराकर, आपसी सम्मान, अन्तर-आस्थाओं के बीच सदभाव और शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व हासिल किये जा सकते हैं.  

एकजुटता, समानता और सम्मान

यूएन महासभा के अध्यक्ष वोल्कान बोज़किर की नज़र में, किसी भी तरह का भेदभाव, जिसमें धर्म या आस्था पर आधारित भेदभाव भी शामिल है, वो गहन व्यक्तिगत हमला होता है.

उन्होंने तमाम देशों से, यूएन चार्टर और मानवाधिकारों के सार्वभौमिक घोषणा-पत्र व अन्य सम्बन्धित सन्धियों व समझौतों के प्रति अपना संकल्प फिर से ताज़ा करने का आग्रह किया है. साथ ही उन्होंने ये उम्मीद भी जताई कि वे इस तरह के राष्ट्रीय क़ानूनों के लिये बुनियाद तैयार करेंगे जिनके ज़रिये नफ़रत भरी भाषा और घृणा-अपराधों को रोका जा सके.

वोल्कान बोज़किर ने कहा, “आज हमारी चर्चा इस्लामोफ़ोबिया पर केन्द्रित है, लेकिन इस अभिशाप का स्रोत एक इस तरह का स्रोत है जो हम सभी को ख़तरे में डालता है. इसका जवाब है – एकजुटता, समता, और समान गरिमा के लिये सम्मान, और हर एक व्यक्ति को बुनियादी मानवाधिकारों की गारण्टी.”

उन्होंने कहा कि लोगों को अतिवाद से बचाने के लिये एक वैश्विक रणनीति की आवश्यकता है जिसमें हिंसक विचारधाराओं के सभी रूपों को मात देना शामिल हो.

वोल्कान बोज़किर ने सहनशीलता बढ़ाने का आग्रह करते हुए, आशा स्रोत के रूप में, युवाओं पर अपनी नज़र टिकाई...

उन्होंने सिफ़ारिश करने के अन्दाज़ में कहा, “युवजन भविष्य के नेतृत्व कर्ता और समझने वाले हैं – और उन्हें ये सिखाना हमारा कर्तव्य है कि हर एक इनसान को समान गरिमा और ऐसे मानवाधिकारों की गारण्टी का अधिकार हो, जिन्हें अलग ना किया सके.”

“औपचारिक शिक्षा से भी परे, हमें उनके भीतर ऐसे नैतिक मानक भरने होंगे जिनसे उन्हें कठिन परिस्थितियों से उबरने में मदद मिल सके.”