अफ़ग़ानिस्तान: तालेबान के शासन में मानवाधिकार हनन व दुर्व्यवहार के मामले रेखांकित
अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र मिशन (UNAMA) की बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में पुष्टि की गई है कि अगस्त 2021 में तालेबान द्वारा देश की सत्ता पर नियंत्रण करने के बाद से, बुनियादी मानवाधिकारों का ह्रास हुआ है. रिपोर्ट में ध्यान दिलाया गया है कि देश में न्यायेतर मौतों, उत्पीड़न, मनमाने तरीक़े से गिरफ़्तारियों व बन्दीकरण, और बुनियादी स्वतंत्रताओं के हनन की ज़िम्मेदारी, तालेबान पर ही पड़ती है.
देश में यूएन मिशन की इस रिपोर्ट में ऐसी चिन्ताओं की पुष्टि की गई है जो तालेबान के 11 महीनों के शासन के दौरान उठाई जाती रही हैं.
While the de facto authorities have taken some steps aimed at improving the human rights situation, the report documents a range of human rights violations -- arbitrary arrests, detentions, torture, excessive use of force & extrajudicial killings. Report: https://t.co/o4rcmtIbpW pic.twitter.com/Gjqa10Efi7
UNAMAnews
ध्यान रहे कि अगस्त 2021 में देश से विदेशी सेनाओं के हट जाने और निर्वाचित सरकार का पतन होने के बाद, तालेबान ने देश की सत्ता पर नियंत्रण कर लिया था.
दमन
रिपोर्ट के अनुसार, सत्ता पर क़ाबिज़ अधिकारियों ने प्रदर्शनों पर दमन प्रयोग करके और मीडिया की स्वतंत्रताओं में कटौती करके, मत भिन्नता को सीमित कर दिया है.
रिपोर्ट में पत्रकारों, प्रदर्शनकारियों और सिविल सोसायटी कार्यकर्ताओं को मनमाने तरीक़े से गिरफ़्तार किये जाने की निन्दा की गई है.
अफ़ग़ानिस्तान में यूएन मिशन की मानवाधिकार प्रमुख फ़ियॉना फ़्रेज़र का कहना है, “शान्तिपूर्ण सभाएँ करने, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अपनी राय व्यकत करने की स्वतंत्रता, केवल बुनियादी
स्वतंत्रताएँ भर नहीं हैं, बल्कि वो किसी देश के विकास और प्रगति के लिये आवश्यक हैं.”
“इन स्वतंत्रताओं की बदौलत सार्थक चर्चा समृद्ध होती है, जिससे उन अधिकारियों को भी लाभ होता है जो शासन करते हैं और उन्हें जनता के सामने दरपेश मुद्दों व समस्याओं को बेहतर तरीक़े से समझने में मदद मिलती है.”
महिलाधिकारों का ह्रास
देश में शासन पर अचानक तालेबान का नियंत्रण होने जाने के 11 महीने बाद भी, महिलाधिकारों की स्थिति बदतर होना, इस सत्ताधीन प्रशासन के सर्वाधिक रेखांकित किये जाने वाले पहलुओं में से एक है.
मिशन ने रेखांकित करते हुए कहा है कि महिलाओं व लड़कियों ने शिक्षा, कामकाज के स्थलों और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी के अपने अधिकारों को प्रतिबन्धित होते हुए देखा है.
लड़कियों को सैकण्डरी स्कूल की शिक्षा हासिल करने की अनुमति नहीं देने का मतलब है कि लड़कियों की एक पूरी पीढ़ी अपनी बुनिय्दी शिक्षा के 12 वर्ष पूरे नहीं कर सकेगी.
अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र के कार्यवाहक विशेष प्रतिनिधि मार्कस पॉटज़ेल का कहना है, “शिक्षा ना केवल एक बुनियादी अधिकार है, बल्कि एक राष्ट्र के विकास की एक कुंजी भी है.”
‘समय से परे’

मार्कस पॉटज़ेल का कहना है, “देश में 20 वर्षों के सशस्त्र संघर्ष के बाद, तमाम अफ़ग़ान लोगों के लिये, शान्ति के साथ जीवन यापन करना और अपनी ज़िन्दगियाँ नए सिरे से शुरू करना, समय से परे की बात नज़र आती है.”
“हमारी निगरानी से पता चलता है कि 15 अगस्त के बाद से सुरक्षा स्थिति में सुधार होने के बावजूद, अफ़ग़ानिस्तान के लोग, विशेष रूप में महिलाएँ और लड़कियाँ, अपने मानवाधिकारों का पूर्ण आनन्द उठाने से वंचित हैं.”
रिपोर्ट में हालाँकि, तालेबान द्वारा हिंसा कम करने के लिये उठाए गए क़दमों का भी ज़िक्र किया गया है, मगर यूएन मिशन ने फिर भी आम लोगों के हताहत होने के 2,106 मामले दर्ज किये हैं जिनमें 700 लोग मारे गए और 1,404 घायल हुए.
हताहतों के इन मामलों के लिये, आतंकवादी गुट – आइसिल के ख़ोरोसान-प्रान्त धड़े के लक्षित हमलों को ज़िम्मेदार ठहराया गया है जोकि नस्लीय और धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाकर किये गए.
दण्डमुक्ति
यूएन मिशन ने, दण्डमुक्ति की उस भावना पर चिन्ता व्यक्त की है जिसके साथ सत्ताधीन संगठन के सदस्यों मानवाधिकारों के उल्लंघन को अंजाम दिया है.
रिपोर्ट के अनुसार, सबसे ज़्यादा प्रभावित वो लोग हुए हैं जो पूर्व सरकार और उसके सुरक्षा बलों के साथ सम्बद्ध थे, जिनमें 160 लोगों की न्यायेतर हत्याओं की पुष्टि हुई है.
178 लोगों को मनमाने तरीक़े से गिरफ़्तार किया गया है और बन्दी बनाया गया है, साथ ही उत्पीड़न के 56 मामले भी सामने आए हैं.
देश में असाधारण स्तर के आर्थिक, वित्तीय और मानवीय संकटों के कारण मानवाधिकार स्थिति और भी बदतर हुई है.
देश की लगभग 59 प्रतिशत आबादी को इस समय मानवीय सहायता की दरकार है – ये संख्या 2021 की तुलना में, 60 लाख ज़्यादा है.