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यूएन महासचिव की न्यूयॉर्क में शरणार्थियों से भेंट, विकसित देशों से समर्थन का आग्रह

संयुक्त राष्ट्र महासचिव शनिवार को न्यूयॉर्क के ब्रुकलिन इलाक़े में सूज़न अल शम्मारी से मिले.
UN Photo/Eskinder Debebe
संयुक्त राष्ट्र महासचिव शनिवार को न्यूयॉर्क के ब्रुकलिन इलाक़े में सूज़न अल शम्मारी से मिले.

यूएन महासचिव की न्यूयॉर्क में शरणार्थियों से भेंट, विकसित देशों से समर्थन का आग्रह

प्रवासी और शरणार्थी

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने ‘विश्व शरणार्थी दिवस’ के सिलसिले में, न्यूयॉर्क में इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान के शरणार्थियों से शनिवार को मुलाक़ात की और उनके अनुभव सुने. यह अन्तरराष्ट्रीय दिवस हर वर्ष 20 जून को मनाया जाता है.

महासचिव गुटेरेश ने उनसे भेंट करने के बाद अपने ट्वीट सन्देश में लिखा, “विश्व भर में लाखों अन्य शरणार्थियों की तरह, वे अपने मेज़बान समुदायों में नया जीवन, समृद्धि और सम्पन्न विविधता लाने में मदद कर रहे हैं. हमें उन्हें समर्थन देना जारी रखना होगा.” 

एंतोनियो गुटेरेश ने, वर्ष 2005 से 2015 तक शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त के तौर पर संगठन की अगुवाई की है. 

उन्होंने शरणार्थियों की मेज़बानी करने और उन्हें अवसर प्रदान करने में विकसित देशों की भूमिका को रेखांकित किया, चाहे वे शरणार्थी कोई भी हों, और कहीं से भी आए हों. 

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यूएन प्रमुख का पहला पड़ाव ब्रुकलिन था, जहाँ वो एक इराक़ी शरणार्थी सूज़न अल शम्मारी से मिले, जिन्होंने वर्ष 2010 में अपने परिवार के साथ बग़दाद से भागकर मिस्र की राजधानी काहिरा में शरण ली थी. 

शरणार्थी मामलों के लिये संयुक्त राष्ट्र एजेंसी ने उनका पंजीकरण किया, जिसके बाद उनके लिये कैलिफ़ोर्निया में बसना सम्भव हुआ. इसके बाद भी उन्हें सहयोग जारी रहा, जिससे उनके लिये न्यूयॉर्क आने का रास्ता खुल गया.  

अल शम्मारी ने महासचिव को बताया कि चूँकि वो युद्ध की छाया में पली-बढ़ीं, वो अन्य शरणार्थियों को भी समर्थन प्रदान करना चाहती हैं. 

वह इसी भावना से, ब्रिटेन की एक युनिवर्सिटी से मास्टर्स की डिग्री हासिल करने के बाद एक ग़ैर-सरकारी संगठन में एक कर्मचारी के रूप में कार्यरत हैं.

“हर दिन आप सोचते हैं कि यह आपका अन्तिम दिन होने जा रहा है. और यह सिर्फ़ उनमें से एक बात नहीं है...यह वास्तव में अन्तिम दिन हो सकता है.”

“मैं जब अपने परिवार के साथ मिस्र गई, तो वहाँ अधर में रहने वाले एक शरणार्थी के रूप में जीवन जीना कठिन था. इसलिये अमेरिका आना, भले ही यह कितना बड़ा आशीर्वाद रहा है, मुझे यह सोचने और ढालने में कुछ वर्षों का समय लगा कि कल मेरे जीवन का अन्त नहीं हो जाएगा.” 

नए जीवन का अवसर

उन्होंने कहा कि लोगों को फिर से बसने का अवसर मिलना, अपना घर मजबूरी में छोड़कर भागने वाले लोगों के लिये दूसरा मौक़ा होता है, जिसमें हर देश और नेता को योगदान देना चाहिये.

अल शम्मारी का मानना है कि वो उन चन्द भाग्यशाली लोगों में हैं, जिनके पास अपने लिये एक सुरक्षित घर ढूंढने का अवसर के अलावा, अपने मेज़बान देश की भाषा में शिक्षा और धाराप्रवाहिता थी. 

“मैं अपने अभिभावकों के निजी अनुभव से बता सकती हूँ कि एक अनजान देश में आना और एक ऐसी भाषा बोलना आसान नहीं होता है, जिसे आप ना बोलते हों.” 

संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, इराक़ में फ़िलहाल आन्तरिक रूप से विस्थापितों की संख्या क़रीब 12 लाख है. देश में 2014 से 2017 के दौरान आइसिल (ISIL) की हिंसा के कारण पहले 60 लाख से अधिक विस्थापित हुए थे.  

इराक़ में पिछले कई वर्षों से सीरिया और अन्य देशों से आने वाले दो लाख 90 हज़ार लोगों ने भी शरण ली है, जिनमें से अधिकांश लोग, देश के कुर्दिस्तान प्रान्त में हैं. 

वर्ष 2021 के अन्त तक, इराक़ के मध्य और दक्षिणी हिस्सों में घरेलू स्थापितों के लिये बनाए अधिकांश शिविर बन्द कर दिये गए हैं. 

अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका तक

सूज़न अल शम्मारी से मिलने के बाद, यूएन प्रमुख ने क्वीन्स (Queens) इलाक़े में रह रहे एक अफ़ग़ान दम्पत्ति, शफ़ी अलीफ़ और रोहिना सोफ़ीज़ादा के घर में उनसे मुलाक़ात की, जहाँ उनका ग्रीन टी और पारम्परिक अफ़ग़ान मिष्ठान से स्वागत किया गया. 

शफ़ी अलीफ़ का परिवार जब वर्ष 1992 में जब अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर पाकिस्तान पहुँचा, तो उनकी उम्र केवल पाँच वर्ष थी. 

पाकिस्तान में शरण लेने के लिये उनके परिवार को 40 दिनों तक पैदल चलना पड़ा, जहाँ वे फिर 10 सालों तक रहे. उनका पंजीकरण भी यूएन शरणार्थी एजेंसी ने किया. 

शफ़ी अलीफ़ और उनके परिजन, यूएन एजेंसी की सहायता से स्वैच्छिक रूप से 2002 में पाकिस्तान लौट गए और उन्हें काबुल में फिर जीवन शुरू करने के लिये वित्तीय समर्थन भी मिला. 

अफ़ग़ान शरणार्थी शफ़ी अलीफ़ और रोहिना सोफ़ीज़ादा के साथ यूएन महासचिव.
UN Photo/Eskinder Debebe
अफ़ग़ान शरणार्थी शफ़ी अलीफ़ और रोहिना सोफ़ीज़ादा के साथ यूएन महासचिव.

अफ़ग़ान दम्पत्ति के मुताबिक़ वर्ष 2018 तक उन्होंने शान्तिपूर्ण समय गुज़ारा और तभी रोहिना सोफ़ीज़ादा को अमेरिका में बसने के लिये एक विशेष वीज़ा मिला, जोकि काबुल में अमेरिकी दूतावास के लिये सेवारत थीं.

इसके कुछ समय बाद ही अलीफ़ भी एक विशेष वीज़ा के तहत वहाँ पहुँच गए, चूंकि उन्होंने काबुल में पोलैण्ड की सेना के साथ काम किया था. 

परिजनों के लिये चिन्ता

आज उन्हें अमेरिका में बस पाने की ख़ुशी तो है, मगर अपने परिजन की चिन्ता भी है जो 2021 में तालेबान द्वारा सत्ता हथियाए जाने के बाद अब पाकिस्तान चले गए हैं. 

सूज़न अल शम्मारी की तरह, शफ़ी अलीफ़ भी एक ग़ैर-सरकारी संगठन के लिये काम कर रहे हैं, जोकि अफ़ग़ानिस्तान से आने वाले लोगों की मदद करता है. 

उनका कहना है कि कोई भी शरणार्थी ख़ुशी से अपना देश नहीं छोड़ता, बल्कि इसलिये चूँकि उन्हें हिंसा या उत्पीड़न का जोखिम होता है और उनके पास कोई अन्य विकल्प भी नहीं होता है. 

शफ़ी अलीफ़ ने ज़ो देकर कहा है कि ऐसे स्थानों की संख्या बढ़नी चाहिये, जहाँ लोग जाकर बस सकें. इसके अलावा, आवास समेत अन्य बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद भी दी जानी चाहिये. 

यूएन शरणार्थी एजेंसी के अनुसार, विश्व भर में कुल शरणार्थियों में एक विशाल संख्या अफ़ग़ानिस्तान से आने वाले लोगों की है. 

दुनिया भर में 26 लाख अफ़ग़ान शरणार्थी पंजीकृत किये गए हैं, जिनमें से 22 लाख लोगों का पंजीकरण केवल ईरान और पाकिस्तान में हुआ है. 35 लाख लोग देश के भीतर ही, विस्थापन का शिकार हैं. 

विकसित देशों से सहायता की अपील

यूएन महासचिव ने इन शरणार्थियों के अनुभव सुनने के बाद, विकसित देशों से शरणार्थियों का स्वागत करने और उन्हें एक सुरक्षित माहौल में नए जीवन की शुरुआत करने का अवसर प्रदान करने का आग्रह किया. 

यूएन के शीर्षतम अधिकारी ने ध्यान दिलाया कि शरणार्थी एजेंसी के प्रमुख के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान, शरण की तलाश करने वाले लोगों के पास कहीं और बसने के दोगुना अवसर थे. 

इस क्रम में, उन्होंने सदस्य देशों से अपनी सीमाओं को, आश्रय तलाश कर रहे लोगों के लिये खोलने और उनके जीवन के लिये बेहतर परिस्थितियाँ सुनिश्चित करने का आग्रह किया है.  

संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में नई रिपोर्ट जारी की है, जिसके अनुसार 10 मई को विश्व भर में शरणार्थियों की संख्या, 10 करोड़ से ज़्यादा हो गई है. 

बड़े पैमाने पर विस्थापन के लिये खाद्य असुरक्षा, जलवायु संकट, यूक्रेन में युद्ध और अफ़्रीका से अफ़ग़ानिस्तान तक अन्य आपात परिस्थितियों को मुख्य वजह बताया गया है.