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महामारी के दौर में, शरणार्थियों के पुनर्वास की संख्या में बढ़ोत्तरी की प्रतीक्षा

फ़लस्तीन में, स्वेच्छा कर्मी, बुज़ुर्ग शरणार्थियों को, कोविड-19 वैक्सीन के लिये, पंजीकरण कराने को प्रोत्साहित करते हुए.
Fatima Abdel Jawad
फ़लस्तीन में, स्वेच्छा कर्मी, बुज़ुर्ग शरणार्थियों को, कोविड-19 वैक्सीन के लिये, पंजीकरण कराने को प्रोत्साहित करते हुए.

महामारी के दौर में, शरणार्थियों के पुनर्वास की संख्या में बढ़ोत्तरी की प्रतीक्षा

प्रवासी और शरणार्थी

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी - UNHCR) और विश्व बैंक की एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 की वजह से सीमाओं पर लगाई गई पाबन्दियों के कारण, सुरक्षित मेज़बान देशों में आश्रय दिये गए शरणार्थियों की संख्या में, तेज़ गिरावट दर्ज की गई है. इन हालात के कारण, निर्बल परिस्थितियों वाले लोगों के पुनर्वास में बाधाएँ बरक़रार हैं.

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इन दोनों संगठनों की गुरूवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2019 में, विदेशी मेज़बान देशों में, 64 हज़ार शरणार्थियों ने नया जीवन शुरू किया था, जबकि वर्ष 2020 में ये संख्या केवल 22 हज़ार 800 रही.

स्थाई पुनर्वास पाने वाले शरणार्थियों की संख्या में वर्ष 2021 में भी लगातार गिरावट देखी गई है. 

इस वर्ष, जनवरी से मार्च के तीन महीनों में केवल 4 हज़ार 500 शरणार्थियों का पुनर्वास हो पाया, जबकि 57 देशों ने, ग़ैर-नागरिकों के लिये प्रवेश अब भी रोक रखा है, और 73 देशों ने कुछ प्रतिबन्धों के साथ अपनी सीमाओं में दाख़िल होने की छूट दी हुई है.

कोविड-19 का प्रभाव

यूएन शरणार्थी एजेंसी – UNHCR और विश्व बैंक द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 के सामाजिक-आर्थिक असर ने शरणार्थियों और अन्य जबरन विस्थापित लोगों के जीवन के लगभग हर पहलू को प्रभावित किया है, ख़ासतौर से जो लोग दीगर स्थानों पर शिविरों में रह रहे हैं.

रिपोर्ट में, शरणार्थियों के मेज़बान आठ देशों में, कोविड-19 से पहले के आँकड़ों का हवाला देते हुए, अनुमान लगाया गया है कि मेज़बान देशों की मूल आबादी की तुलना में, शरणार्थियों के, ऐसे क्षेत्रों में कामकाज करने की 60 प्रतिशत ज़्यादा सम्भावना है जो कोविड-19 महामारी से प्रभावित हुए हैं.

इनमें, आवास और खाद्य सेवाएँ, निर्माण, और खुदरा क्षेत्र प्रमुख हैं.

शोधकर्ताओं ने आगाह करते हुए कहा कि कोविड-19 ने, हर जगह, शरणार्थियों और उन्हें पनाह देने वाले मेज़बान देशों के स्थानीय समुदाय, दोनों को ही बराबर और बहुत गहराई से प्रभावित किया है. 

यमन में स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता, अभी तक भी, महामारी के पहले के स्तर पर नहीं लौट सकी है और ऐसा वहाँ जारी संघर्ष के कारण हुआ है.