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गणित में लड़कों के बराबर पहुँच रही हैं लड़कियाँ, मगर बाधाएँ बरक़रार, यूनेस्को

भारत के गुजरात में एक 13 वर्षीय लड़की, गणित का एक सवाल हल करते हुए.
© UNICEF/Mithila Jariwala
भारत के गुजरात में एक 13 वर्षीय लड़की, गणित का एक सवाल हल करते हुए.

गणित में लड़कों के बराबर पहुँच रही हैं लड़कियाँ, मगर बाधाएँ बरक़रार, यूनेस्को

संस्कृति और शिक्षा

संयुक्त राष्ट्र ने लैंगिक समानता और अवसरों के लिये वैश्विक जद्दोजेहद में बुधवार को एक सकारात्मक ख़बर प्रकाशित की है जिसमें पता चलता है कि गणित के मामले में लड़कियाँ भी अब कक्षाओं में लड़कों की ही तरह अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं, अलबत्ता अब भी बहुत से कारक लड़कियों के रास्ते में बाधाएँ खड़ी कर रहे हैं.

संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन – यूनेस्को ने ये सकारात्मक समाचार, 120 देशों में प्राइमरी और सैकण्डरी शिक्षा क्षेत्र में कराए गए एक विश्लेषण के आधार पर प्रकाशित किया है.

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शोधकर्ताओं ने पाया है कि वैसे तो शुरुआती वर्षों में, गणित में, लड़कियों की तुलना में, लड़के ज़्यादा बेहतर प्रदर्शन करते हैं, मगर ये लैंगिक खाई, सैकण्डरी शिक्षा के स्तर तक आकर ख़त्म हो जाती है, यहाँ तक कि दुनिया के निर्धनतम देशों में भी.

लड़कियाँ बढ़त पर

कुछ देशों में लड़कियाँ, गणित में लड़कों की तुलना में, बेहतर प्रदर्शन करती हैं, मसलन मलेशिया में 14 वर्ष की उम्र में लड़कियाँ गणित में, लड़कों से 7 प्रतिशत की बढ़त हासिल कर रही हैं,

कम्बोडिया में तीन प्रतिशत, और फ़िलिपीन्स में 1.4 प्रतिशत.

यूनेस्को का कहना है कि इस प्रगति के बावजूद, लैंगिक पूर्वाग्रह और दकियानूसी सोच, लड़कियों की शिक्षा को प्रभावित करती रहेंगे क्योंकि तमाम देशों में गणित के उच्च स्तर पर, लड़कों का ही प्रतिनिधित्व ज़्यादा रहने की सम्भावना है.

ये समस्या विज्ञान तक भी पहुँचती है. मध्य और उच्च आय वाले देशों से प्राप्त आँकड़ों से पता चलता है कि लड़कियाँ अलबत्ता विज्ञान विषयों में सैकण्डरी स्तर पर काफ़ी ज़्यादा अंक हासिल करती हैं, इसके बावजूद उनके विज्ञान, टैक्नॉलॉजी, इंजीनियरिंग और गणित के क्षेत्रों में अपना करियर बनाने की बहुत कम सम्भावना है. इन्हें STEM विषय कहा जाता है.

लड़कियाँ का अध्याय

लड़कियाँ वैसे तो गणित और विज्ञान में तो अच्छा प्रदर्शन करती ही हैं, वो पाठन (reading) में भी ज़्यादा कुशलता दिखाती हैं और पाठन में न्यूनतम निपुणता हासिल करने में, लड़कों की तुलना में, ज़्यादा लड़कियाँ बढ़त लेती हैं.

यूनेस्को का कहना है कि प्राइमरी शिक्षा में सबसे ज़्यादा अन्तर सऊदी अरब में है जहाँ ग्रेड-4 (9-19 वर्ष की आयु) में पाठन में न्यूनतम निपुणता हासिल करने वाली लड़कियों की संख्या 77 प्रतिशत है जबकि लड़कों की संख्या 51 प्रतिशत.

थाईलैण्ड में, पाठन की निपुणता में, लड़कियाँ लड़कों को 18 प्रतिशत अंकों से पीछे छोड़ती हैं. डोनिमिकन गणराज्य में ये संख्या 11 प्रतिशत और मोरक्को में 10 प्रतिशत है.

मलाला कोष की सह संस्थापक मलाला यूसुफ़ज़ई का कहना है, “लड़कियाँ ये दिखा रही हैं कि अगर उन्हें शिक्षा तक पहुँच उपलब्ध हो तो वो कितना अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं. मगर बहुत सी लड़कियों, ख़ासतौर पर वंचित पृष्ठभूमि की लड़कियों को, शिक्षा हासिल करने का अवसर ही नहीं मिल रहा है. हमें इस सम्भावना से क़तई नहीं डरना चाहिये.”

मलाला यूसुफ़ज़ई का कहना है, “हमें इसे बढ़ावा देना चाहिये और आगे बढ़ते देखना चाहिये. मसलन, ये देखना कितना भयावह है कि अफ़ग़ानिस्तान में लड़कियों को अपने ये हुनर, दुनिया को दिखाने के अवसर नहीं मिलते.”

यूनेस्को की वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट के निदेशक मानोस ऐण्टॉनिनिस का कहना है कि वैसे तो अभी और आँकड़ों की ज़रूरत है, ताज़ा आँकड़ों से, शिक्षा हासिल करने में मौजूद लैंगिक खाई की तस्वीर को समझने में मदद मिलती है.  

उनका कहना है कि लड़कियाँ पाठन और विज्ञान में, लड़कों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं और गणित में भी बढ़त दर्ज कर रही हैं. मगर मौजूदा पूर्वाग्रहों और दकियानूसी सोच के कारण, गणित में लड़कियों के शीर्ष प्रदर्शन के मुक़ाम पर पहुँचने की कम ही सम्भावना है. 

“शिक्षा में लैंगिक समता की दरकार है और ये सुनिश्चित करने की ज़रूरत भी है कि हर किसी को अपनी पूर्ण सम्भावनाएँ हासिल करने का मौक़ा मिले.”