हानिकारक कुप्रथाओं की शिकार हैं 14 करोड़ लड़कियाँ - साढ़े चार करोड़ भारत में
विश्व जनसंख्या स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की 2020 की एक प्रमुख रिपोर्ट में बाल विवाह, लिंग-पक्षपाती सैक्स चयन (लड़का-लड़की में भेद करके लड़कों को प्राथमिकता देना) और महिलाओं और लड़कियों को नुक़सान पहुँचाने वाली अन्य प्रथाओं को रोकने के लिए त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है.
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफ़पीए) द्वारा मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल लाखों लड़कियों को ऐसी प्रथाओं का सामना करना पड़ता है जिससे उन्हें शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से नुक़सान पहुँचता है, और उनके परिवारों, दोस्तों व समुदायों की इस स्थिति की जानकारी होती है और उनकी सहमति भी.
#DidYouKnow: Harm is discrimination today and trauma for a lifetime?Raise your voice by joining @UNFPA and the hundreds of thousands of girls subjected to harmful practices every day in saying #AgainstMyWill.Learn more: https://t.co/NcZvhql2L7#SWOP2020 pic.twitter.com/O4hnabVZGC
UNFPA
तीन प्रमुख हानिकारक प्रथाएँ
तथाकथित ख़ानदान या परिवार के सम्मान (प्रतिष्ठा) के नाम पर अपराधों से लेकर दहेज सम्बन्धी हिंसा तक, कम से कम 19 हानिकारक प्रथाएँ मानवाधिकार उल्लंघन मानी जाती हैं.
इस रिपोर्ट में तीन सबसे अधिक प्रचलित प्रथाओं पर ध्यान केन्द्रित किया गया है: बाल विवाह, पुत्र वरीयता और लिंग पक्षपाती सैक्स चयन व महिला जननांग विकृति (महिला ख़तना).
इस अवसर पर भारत में यूएनएफ़पीए की प्रतिनिधि, अर्जेंटीना मातावेल ने कहा, “पुत्र होने की इच्छा (पुत्रों को प्राथमिकता) और लिंग-पक्षपातपूर्ण सैक्स चयन के परिणामस्वरूप दुनिया भर में 14 करोड़ 20 लाख से ज़्यादा लड़कियाँ गायब हो गई हैं."
"केवल भारत में ही 4 करोड़ 60 लाख लड़कियाँ गुमशुदा हैं. यह एक गम्भीर वास्तविकता है और इसे क़तई स्वीकार नहीं किया जा सकता. इस स्थिति को तुरन्त बदलने की आवश्यकता है. परिवर्तन तभी आ सकता है जब लड़कियों और महिलाओं को महत्व देने के लिए असमान संरचना और मानदण्ड बदले जाएँ. हमें समानता, स्वायत्तता और पसन्द के सिद्धान्तों पर चलने वाली दुनिया के निर्माण की ओर बढ़ने की ज़रूरत है.”
भारत की स्थिति
भारत में, गर्भ में लिंग पक्षपाती सैक्स चयन (लड़कियों के बजाय लड़कों को वरीयता) के चलन की वजह से वर्ष 2013-17 के बीच, प्रत्येक वर्ष लगभग 4 लाख 60 हज़ार लड़कियाँ जन्म से पहले ही मौत का शिकार हो गईं. लिंग-पक्षपाती चयन के कारण केवल चीन (50%) और भारत (40%) में ही दुनियाभर के 90 प्रतिशत यानि कुल मिलाकर 1 करोड़ 20 लाख लड़कियों को जन्म से पहले ही मार देने के मामले होते हैं.
हालाँकि बाल विवाह जैसी कुछ हानिकारक प्रथाएँ उन देशों में जारी रही हैं, जहाँ वो पहले सबसे अधिक प्रचलित थीं. उदाहरण के लिए, 2005-06 में भारत में बाल विवाह में 47 प्रतिशत की उल्लेखनीय कमी देखी गई, वहीं 2015-16 में 27 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की गई.
क़ानून लागू करना भी ज़रूरी
रिपोर्ट कहती है कि महिलाओं के ख़िलाफ़ भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर कन्वेन्शन, बाल अधिकारों पर कन्वेन्शन और 1994 की जनसंख्या और विकास पर अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन की कार्रवाई जैसी अन्तरराष्ट्रीय सन्धियों और समझौतों की पुष्टि करने वाले देशों का कर्तव्य है कि वे परिवार के सदस्यों, धार्मिक समुदायों, स्वास्थ्य कर्मियों, वाणिज्यिक उद्यमों या राज्य संस्थानों द्वारा महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ होने वाले नुक़सान और भेदभाव को समाप्त करें.
कई देशों ने इस बारे में क़ानून तो बनाए हैं, लेकिन अनेक स्थानों पर उनका कार्यान्वयन कमज़ोर है. हालाँकि क़ानून, कार्रवाई के लिए एक अहम ढाँचा प्रदान करते हैं, लेकिन केवल क़ानून बनाने से मसला हल नहीं होता.
दशकों के अनुभव और अनुसन्धान से स्पष्ट है कि बिल्कुल निचले स्तर पर, ज़मीनी दृष्टिकोण के ज़रिये, स्थाई परिवर्तन लाने में ज़्यादा मदद मिलती है.
यूएनएफ़पीए की कार्यकारी निदेशक डॉक्टर नतालिया कानेम का कहना है, "इस समस्या से निपटने के लिए हमें मूल कारणों पर प्रहार करना होगा, विशेष रूप से लिंग-पक्षपाती मानदण्डों पर.
"इसकी रोकथाम के लिए हमें समुदायों को बेहतर सहयोग देना होगा और समझना होगा कि इन प्रथाओं का लड़कियों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है तथा इसकी रोकथाम से पूरे समाज को कितना फ़ायदा हो सकता है.”
रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं को समर्थन देती अर्थव्यवस्थाएँ और क़ानूनी प्रणालियाँ इस तरह पुनर्गठित की जानी चाहिए कि हर महिला को समान अवसर की गारण्टी मिले.
उदाहरण के लिए, सम्पत्ति विरासत के नियमों में बदलाव, बेटियों के बदले बेटों को प्राथमिकता देने की मानसिकता ख़त्म करने और बाल विवाह समाप्त करने का एक शक्तिशाली माध्यम बन सकता है.
लड़कियों को लम्बे समय तक स्कूली शिक्षा दिलाने, उन्हें जीवन कौशल सिखाने व पुरुषों और लड़कों को सामाजिक परिवर्तन में शामिल करने के प्रयासों के ज़रिये, दुनिया भर में 10 साल के भीतर बाल विवाह और महिला ख़तना समाप्त करना सम्भव है.
रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक 3 अरब 40 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश करने से इन दो हानिकारक प्रथाओं को समाप्त करके अनुमानित 8 करोड़ 40 लाख लड़कियों की परेशानियों का अन्त किया जा सकता है.
कोविड महामारी का असर
दुनिया भर में इन हानिकारक प्रथाओं को समाप्त करने की दिशा में हुई प्रगति पर कोविड-19 महामारी के कारण विपरीत असर होने की आशंका है.
हाल में हुए एक विश्लेषण से पता चला है कि अगर सभी सेवाएँ और छह महीने तक प्रभावित रहीं तो परिवारों पर आर्थिक दबाव बढ़ने से 1 करोड़ 30 लाख अतिरिक्त लड़कियों को जबरन शादी के लिए मजबूर किया जा सकता है और अब से लेकर 2030 तक 20 लाख लड़कियाँ महिला ख़तना का शिकार हो सकती हैं.
भारत में यूएनएफ़पीए की प्रतिनिधि, अर्जेंटीना मातावेल कहती हैं, “ये महामारी कई अन्य रूपों में भी महिलाओं और लड़कियों को प्रभावित कर रही है. गर्भनिरोधक और परिवार नियोजन सेवाओं की उपलब्धता में कमी से अनपेक्षित गर्भधारण के जोखिम में वृद्धि होगी."
"आपात स्थिति के दौरान लिंग आधारित हिंसा बढ़ जाती है. महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य, अधिकारों और सम्मान को बनाए रखने के लिए जीवनरक्षक और जीवन परिवर्तन स्वास्थ्य सुविधाओं तक निर्बाध पहुँच सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है - जैसे कि परिवार नियोजन, आपातकालीन प्रसूति देखभाल और यौन और लिंग आधारित हिंसा के शिकार पीड़ितों तक पहुँचने के साधन उपलब्ध होना बहुत ज़रूरी हैं.”