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यूनेस्को की नई शिक्षा रिपोर्ट में, एक 'नए सामाजिक अनुबन्ध' की पुकार

बांग्लादेश में, एक यूनीसेफ़ समर्थित स्कूल में, एक विकलांग बच्ची अपनी शिक्षा प्रगति दर्शाते हुए.
UNICEF/Tapash Paul
बांग्लादेश में, एक यूनीसेफ़ समर्थित स्कूल में, एक विकलांग बच्ची अपनी शिक्षा प्रगति दर्शाते हुए.

यूनेस्को की नई शिक्षा रिपोर्ट में, एक 'नए सामाजिक अनुबन्ध' की पुकार

संस्कृति और शिक्षा

संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन – यूनेस्को ने 2050 तक शिक्षा के एक नए भविष्य की कल्पना करते हुए तीन प्रश्न उठाए हैं: क्या जारी रहे? क्या छोड़ दिया जाए? और किस क्षेत्र में, नए सिरे से रचनात्मक अन्वेषण की आवश्यकता है?

संगठन ने गुरूवार को – “अपने भविष्यों की साथ मिलकर परिकल्पना: शिक्षा के लिये एक नया सामाजिक अनुबन्ध” – नामक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें, इन तीन ज़रूरी सवालों के जवाब प्रस्तावित किये गए हैं.

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इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिये चली वैश्विक परामर्श प्रक्रिया में, 10 लाख से भी ज़्यादा लोगों ने शिरकत की.

रिपोर्ट में, अतीत में हुए अन्यायों को ठीक करने के लिये बड़े बदलाव किये जाने और एक ज़्यादा टिकाऊ व न्यायसंगत भविष्य की ख़ातिर, एक साथ मिलकर काम करने की क्षमता बढ़ाने का आहवान किया गया है.

यह रिपोर्ट तैयार करने में दो वर्ष का समय लगा और यूनेस्को की मंशा है कि यह रिपोर्ट, दुनिया भर में, माता-पिता, अभिभावकों, बच्चों, और शिक्षकों के बीच, एक वैश्विक सम्वाद की शुरुआत करे.

निर्णायक मोड़

यूएन शैक्षिक व सांस्कृतिक एजेंसी के अनुसार, विश्व इस समय एक निर्णायक मोड़ पर है और वैश्विक असमानताओं का मतलब है कि शिक्षा ने, शान्तिपूर्ण, न्यायसंगत, और टिकाऊ भविष्यों को आकार देने का अपना वादा अभी पूरा नहीं किया है.

संगठन का कहना है कि व्यापक विषमताओं के बीच, उच्च स्तर का रहन-सहन भी मौजूद है, और सार्वजनिक सक्रियता भी मौजूद है, मगर दुनिया भर में अनेक स्थानों पर सिविल सोसायटी और लोकतंत्र का आवरण कमज़ोर पड़ता जा रहा है.

यूनेस्को की नज़र में, टैक्नॉलॉजी के क्षेत्र में तेज़ी से हो रहे बदलावों से ज़िन्दगियाँ भी बदल रही हैं, मगर ये बदलाव या अन्वेषण, सीधे तौर पर समानता, समावेश और लोकतांत्रिक भागीदारी की तरफ़ मुख़ातिब नहीं हैं.

रिपोर्ट में दलील देते हुए कहा गया है, “इसीलिये, हमें शिक्षा की परिकल्पना नए सिरे से करनी होगी.”

तत्काल पुनःअन्वेषण

बीसवीं सदी के दौरान, सार्वजनिक शिक्षा मुख्य रूप से, राष्ट्रीय नागरिकताओं और विकास प्रयासों को समर्थन देने पर लक्षित थी और इन प्रयासों में, बच्चों व युवाओं के लिये अनिवार्य स्कूली शिक्षा का प्रावधान किया गया.

यूनेस्को का मानना है कि आज के दौर में, दुनिया के सामने भविष्य की ख़ातिर कहीं ज़्यादा गम्भीर जोखिम दरपेश हैं, “हमें, इन साझा चुनौतियों का सामना करने में मदद की ख़ातिर, तत्काल रूप में शिक्षा की पुनःखोज करनी होगी.”

यूएन एजेंसी ने, इस सन्दर्भ में, एक ऐसे नए सामाजिक अनुबन्ध का आहवान किया है जो दुनिया को “सामूहिक प्रयासों में एक सूत्र में पिरोए, और ऐसा ज्ञान व नवाचार मुहैया कराए, जिसकी ज़रूरत – सर्वजन के लिये टिकाऊ और शान्तिपूर्ण भविष्यों को आकार देने के लिये है, जोकि सामाजिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय न्याय में नज़र आएँ.”

महत्वपूर्ण सिद्धान्त

यूनेस्को के अनुसार, ये नया सामाजिक अनुबन्ध ऐसे व्यापक सिद्धान्तों की बुनियाद पर निर्मित हो जिसमें समावेश और समता, सहयोग, और एकजुटता जैसे मानवाधिकारों भी समाहित हों.

एजेंसी का कहना है कि ये नया सामाजिक अनुबन्ध, दो बुनियादी सिद्धान्तों से भी प्रशासित होना चाहिये: जीवन पर्यन्त गुणवत्ता वाली शिक्षा के अधिकार की सुनिश्चितता, और शिक्षा की एक सार्वजनिक साझा भलाई के रूप में मज़बूती.

रिपोर्ट में – सामाजिक व आर्थिक विषमता के बढ़ते दायरे, जलवायु परिवर्तन, जैव-विविधता की हानि, लोकतांत्रिक मूल्यों का ह्रास और बाधाएँ खड़ी करने वाले टैक्नॉलॉजी नवाचार जैसी चुनौतियों को भी रेखांकित किया गया है.

रिपोर्ट कहती है कि इस समय दुनिया भर में जिस तरीक़े से शिक्षा संगठित की जाती है, उससे न्यायसंगत और शान्तिपूर्ण समाज, एक स्वस्थ ग्रह, और सभी को फ़ायदा पहुँचाने वाली साझा प्रगति सुनिश्चित करने में कुछ ख़ास मदद नहीं मिलती है. बल्कि, हमारी कुछ कठिनाइयाँ तो इसी से पनपती हैं कि हमारी शिक्षा कैसी हुई है.