अफ़ग़ानिस्तान में अब भी सम्भव है ‘नई वास्तविकता’ को आकार दे पाना

संयुक्त राष्ट्र की एक वरिष्ठ अधिकारी ने सुरक्षा परिषद को सम्बोधित करते हुए कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में सहज विकल्प उपलब्ध ना होने के बावजूद, देश की सहायता के लिये, अन्तरराष्ट्रीय प्रयास और अटल संकल्प जारी रखने होंगे. उन्होंने ध्यान दिलाया कि ऐसा किया जाना, अफ़ग़ान जनता के लिये सर्वोत्तम नतीजे सुनिश्चित करने के लिये अहम है.
अफ़ग़ानिस्तान के लिये यूएन महासचिव की विशेष प्रतिनिधि और यूएन मिशन (UNAMA) की प्रमुख डेबराह लियोन्स ने गुरूवार को, अफ़ग़ानिस्तान में मौजूदा हालात के बारे में, सुरक्षा परिषद को अवगत कराया.
उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान की नाज़ुक अर्थव्यवस्था के मद्देनज़र ऐसे तरीक़े ढूँढे जाने बेहद आवश्यक हैं जिनसे देश के लिये, उन अरबों डॉलर के ज़रिये मदद पहुँचाई जा सके, जिन पर फ़िलहाल रोक लगाई गई है.
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यूएन मिशन प्रमुख ने विश्वसनीय रिपोर्टों के हवाले से बताया कि बदले की भावना से हत्याएँ की जा रही हैं, महिला स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जा रहा है, और नए तालेबान प्रशासन द्वारा मानवाधिकारों का हनन हो रहा है.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में अब वस्तुत: तालेबान की सरकार है और संयुक्त राष्ट्र को तालेबान सरकार के उन उच्चस्तरीय सदस्यों से सम्पर्क व बातचीत के तरीक़ों पर निर्णय लेने की ज़रूरत है, जो फ़िलहाल प्रतिबन्धों की यूएन सूची में शामिल हैं.
विशेष प्रतिनिधि के मुताबिक़ 15 अगस्त को काबुल पर तालेबान का वर्चस्व होने के बाद, दुनिया ने देश की वास्तविकता, वहाँ मची अफ़रा-तफ़री और फिर विरोध प्रदर्शन के दृश्य देखे हैं.
“दुनिया भर में देखे गए ये दृश्य... दिखाते हैं कि तालेबान ने सत्ता तो हासिल कर ली है, मगर वो, अफ़ग़ान जनता का भरोसा नहीं जीत पाए हैं.”
उन्होंने स्पष्ट किया कि सुरक्षा परिषद और वैश्विक समुदाय को अब आगे की कार्रवाई के बारे में अपने आप से सवाल करना होगा, और स्पष्ट किया कि मौजूदा परिस्थितियों में कोई भी जवाब सहज नहीं है.
यूएन मिशन प्रमुख डेबराह लियोन्स ने कहा कि जिन लोगों ने तालेबान से समावेशन की उम्मीद और आग्रह किया था, वे निराश हुए होंगे, चूँकि तालेबान ने सरकार में किसी भी महिला, अल्पसंख्यक प्रतिनिधि या ग़ैर-तालेबान व्यक्तियों को जगह नहीं दी है.
इसके अलावा, नई सरकार में प्रधानमंत्री के रूप में मनोनीत मुल्लाह हसन अखूण्ड सहित अनेक उच्च-पदस्थ अधिकारी, यूएन प्रतिबन्धों की सूची में हैं.
बताया गया है कि तालेबान द्वारा सत्ता पर क़ब्ज़ा किये जाने के बाद के हफ़्तों में, देश में एक मिलीजुली तस्वीर उभर रही है.
संयुक्त राष्ट्र परिसर का मोटे तौर पर फ़िलहाल सम्मान किया गया है, मगर यूएन के अफ़ग़ान कर्मचारियों के उत्पीड़न व उन्हें डराए-धमकाए जाने की रिपोर्टें चिन्ता का कारण हैं.
विशेष प्रतिनिधि ने चिन्ता जताई है कि तालेबान ने अफ़ग़ान राष्ट्रीय सुरक्षा बलों और पूर्व राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी की सरकार के अधिकारियों को आम माफ़ी दिये जाने के सिलसिले में बयान दिए थे.
मगर, ऐसी रिपोर्टें मिल रही हैं कि तालेबान अधिकारी घर-घर जाकर तलाशी ले रहे हैं और ज़ब्त करने की कार्रवाई में जुटे हैं.
महिला अधिकारों के मुद्दे पर दिये गए आश्वासनों के बावजूद, ख़बरों के अनुसार कार्यस्थलों पर महिलाओं के काम करने या पुरुष संगी के बग़ैर बाहर सार्वजनिक स्थान पर नज़र आने पर पाबन्दी लगा दी गई है.
लड़कियों के लिये स्कूली शिक्षा की सुलभता सीमित होने पर व्याप्त चिन्ताओं के बीच, पाकिस्तानी कार्यकर्ता और नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला युसूफ़ज़ई ने भी सुरक्षा परिषद को सम्बोधित किया.
मलाला कोष की संस्थापक ने सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों को अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान के अतीत में सरकार के दौरान, महिलाओं व लड़कियों की ज़िन्दगी के बारे में ध्यान दिलाया.
“मैंने देखा कि मेरा घर, महज़ तीन वर्षो में, एक शान्ति स्थल से भय के स्थल में तब्दील हो गया था.
मलाला युसूफ़ज़ई ने सड़कों पर गोलीबारी व विस्फोट होने की घटनाओं से बचने के अपने अनुभव बयान करते हुए कहा कि 15 वर्ष पहले उनका बचपन, सार्वजनिक रूप से कोड़े लगाए जाने की घटनाओं, लड़कियों के लिये स्कूल बन्द होने और शॉपिंग मॉल में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति ना होने वाले बैनर को देखते हुए बीता.
“अगर हमने कार्रवाई नहीं की तो यह एक ऐसी कहानी है, जो फिर अन्य अफ़ग़ान लड़कियाँ भी, आपबीती के तौर पर सुनाएंगी करेंगी.”
मलाला ने सुरक्षा परिषद से तालेबान को एक सुस्पष्ट सन्देश भेजने का आग्रह किया है – महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों की रक्षा किया जाना, किसी भी कामकाजी रिश्ते के लिये एक पूर्व शर्त है.
यूएन की विशेष प्रतिनिधि डेबराह लियोन्स ने अफ़ग़ानिस्तान की जनता के लिये संगठन की मौजूदगी व सहायता प्रदान करने का संकल्प दोहराया.
उन्होंने कहा कि इसका अर्थ यह है कि तालेबान के साथ सम्पर्क स्थापित करना होगा और साथ ही अफ़ग़ानिस्तान में धन का प्रवाह बनाए रखने के लिये रास्ते ढूँढे जाने होंगे.
इस क्रम में, 13 सितम्बर को एक उच्चस्तरीय अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है, ताकि देश की बढ़ती ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए सहायता धनराशि का प्रबन्ध किया जा सके.
एक अन्य संकट उन अरबों डॉलर की सम्पत्तियों और दानदाता कोषों का है, जिन पर फ़िलहाल देशों ने रोक लगा दी है, ताकि तालेबान उनका इस्तेमाल ना कर पाए.
मगर, विशेष प्रतिनिधि ने आगाह किया कि इस क़दम से देश के, एक गम्भीर आर्थिक संकट की चपेट में आने की आशंका है, जिससे लाखों लोग निर्धनता व भुखमरी का शिकार होंगे, शरणार्थियों की एक नई लहर पैदा होगी और अफ़ग़ानिस्तान कई पीढ़ियों के लिये पीछे लौट जाएगा.
उन्होंने तालेबान नेताओं के साथ अपने आरम्भिक अनुभवों का हवाला देते हुए बताया कि तालेबान ने अन्तरराष्ट्रीय मदद की आवश्यकता को, स्पष्टता से सामने रखा है, और इसके मद्देनज़र, वैश्विक समुदाय के पास उनके क़दमों को प्रभावित करने का साधन है.
विशेष प्रतिनिधि ने ज़ोर देकर कहा कि इस नई वास्तविकता को एक ज़्यादा सकारात्मक दिशा में आकार दिया जा सकता है.