संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और कोविड-19 के कारण, ज़्यादा लोग भुखमरी की चपेट में
संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों ने सोमवार को चेतावनी भरे शब्दों कहा है कि दुनिया भर में संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और कोविड-19 महामारी के प्रभावों के कारण, भुखमरी आसमान छूने वाली रफ़्तार से बढ़ रही है और दुनिया भर में हर 5 में से एक यानि लगभग 20 प्रतिशत बच्चे नाटेपन के शिकार हैं.
कोरोनावायरस महामारी शुरू होने के बाद , दुनिया भर में खाद्य असुरक्षा की स्थिति का जायज़ा लेने के लिये, पहला व्यापक आकलन पेश किया गया है.
The world is not on track to end hunger & malnutrition by 2030. Between 720 and 811 million people faced hunger in 2020. We must transform our agri-#FoodSystems so everyone has access to the food they need. 📙UN Report 👉 https://t.co/TG4RSQ1rzs#SOFI2021 pic.twitter.com/CqnVzkriXm
FAO
इसमें वर्ष 2020 में, लगातार जारी रहने वाली भुखमरी से प्रभावित लोगों की संकेतात्मक संख्या प्रस्तुत की गई है जोकि पिछले पाँच वर्षों के दौरान हुई कुल वृद्धि से भी ज़्यादा है.
संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP), खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), अन्तरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (IFAD), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – यूनीसेफ़ ने कहा है कि इस स्थिति को पलटकर प्रगति की तरफ़ मोड़ने के प्रयासों में अगर दशकों नहीं तो वर्षों का समय लगेगा.
खाद्य प्रणालियों में सुधारों की पुकार
संयुक्त राष्ट्र की इन एजेंसियों के प्रमुखों ने इस वर्ष की रिपोर्ट में लिखा है, “महामारी ने हमारी खाद्य प्रणालियों में ऐसी ख़ामियों को उजागर करना जारी रखा हुआ है, जिनके कारण, दुनिया भर में लोगों की ज़िन्दगियों और आजीविकाओं के लिये जोखिम पैदा हो गया है.”
रिपोर्ट में बताया गया है कि विश्व आबादी का लगभग दसवाँ हिस्सा, यानि 81 करोड़ लोगों को वर्ष 2020 के दौरान, या तो भरपेट भोजन नहीं मिला या फिर वो कुपोषण के शिकार थे.
इनमें से, क़रीब 41 करोड़ 80 लाख लोग एशिया में और लगभग 28 करोड़ 20 लाख लोग अफ़्रीका में थे.
दुनिया भर में, वर्ष 2020 के दौरान, लगभग 2 अरब 40 करोड़ लोगों को समुचित रूप से पौष्टिक भोजन नहीं मिला और ऐसे लोगों की संख्या में केवल एक साल में 32 करोड़ की बढ़ोत्तरी देखी गई.
जलवायु परिवर्तन की असर
रिपोर्ट ये भी दिखाती है कि जलवायु परिवर्तन ने विकासशील देशों में किस तरह समुदायों को भुखमरी के कगार पर पहुँचा दिया है – इस तथ्य के बावजूद वैश्विक कार्बनडाइ ऑक्साइड उत्सर्जनों में इन देशों का योगदान बहुत कम है.
विश्व खाद्य कार्यक्रम, में जलवायु परिवर्तन और आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यक्रमों के मुखिया जैरनॉट लैगाण्डा का कहना है कि ये निर्धन देश ही, जलवायु परिवर्तन का मुक़ाबला करने के लिये सबसे कम तैयार हैं. मौसम सम्बन्धी झटके और दबाब व भुखमरी, अभूतपूर्ण रफ़्तार के साथ बढ़ा रहे हैं.
इन एजेंसियों ने एक वक्तव्य में कहा है कि इससे झलकता है कि दुनिया भर में वर्ष 2030 तक भुखमरी दूर करने का संकल्प पूरा करने के लिये, विशाल पैमाने पर प्रयासों की ज़रूरत होगी.
एजेंसियों ने खाद्य उत्पादन को ज़्यादा समावेशी, कुशल, सक्षम व परिस्थितियों के अनुकूल व टिकाऊ बनाने की भी पुकार लगाई है.
बाल - किशोर सर्वाधिक प्रभावित
रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों का स्वस्थ विकास भी प्रभावित हुआ है. 5 वर्ष से कम उम्र के लगभग 14 करोड़ 90 लाख बच्चे नाटेपन के शिकार हैं और क़रीब 37 करोड़ बच्चों को, वर्ष 2020 के दौरान स्कूली शिक्षा के दौरान मिलने वाली भोजन ख़ुराक से वंचित रहना पड़ा है, क्योंकि कोरोनावायरस महामारी के दौरान स्कूल बन्द करने पड़े थे.
विश्व खाद्य कार्यक्रम का कहना है कि आज के समय, लगभग 15 करोड़ बच्चों को, स्कूली शिक्षा के दौरान मिलने वाला दोपहर का भोजन नहीं मिल रहा है.
एजेंसी ने तमाम देशों से ग्रह किया है कि वो स्कूली शिक्षा के दौरान मुहैया कराए जाने वाले भोजन कार्यक्रम फिर शुरू करें, यहाँ तक कि पहले से बेहतर ऐसे कार्यक्रम लागू करें जिनके ज़रिये बच्चों और समुदायों के एक अच्छे भविष्य का रास्ता निकले.
यूएन खाद्य एजेंसी के कार्यकारी निदेशक डेविड बीज़ली के अनुसार, रिपोर्ट एक हृदयविदारक वास्तविकता दर्शाती है: भुखमरी को बिल्कुल ख़त्म करने यानि शून्य भुखमरी की तरफ़ जाने वाले रास्ते, संघर्षों, जलवायु परिवर्तन और कोविड-19 में नीहित दलदल में उलझ गए हैं.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि बच्चों की भविष्यगत सम्भावनाएँ, भूख के कारण नष्ट हो रही हैं.
“इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, दुनिया को इस पीढ़ी को बचाने के लिये सटीक और तत्काल कार्रवाई करनी होगी.”