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भुखमरी और कोविड-19: ताकि कोई भी पीछे न छूट जाए

बांग्लादेश के कॉक्सेज़ बाज़ार के उखिया इलाक़े में एक बच्चे को भोजन खिलाती महिला. कोविड-19 महामारी ने भुखमरी कम करने के प्रयासों के लिये बड़ा संकट पैदा कर दिया है.
WFP/Saikat Mojumder
बांग्लादेश के कॉक्सेज़ बाज़ार के उखिया इलाक़े में एक बच्चे को भोजन खिलाती महिला. कोविड-19 महामारी ने भुखमरी कम करने के प्रयासों के लिये बड़ा संकट पैदा कर दिया है.

भुखमरी और कोविड-19: ताकि कोई भी पीछे न छूट जाए

मानवीय सहायता

भारत और मालदीव के लिये यूएन शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) मिशन के प्रमुख, ऑस्कर मुंडिया और भारत में विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) के प्रतिनिधि और देश निदेशक, बिशोउ पराजुली का मानना है कि कोविड-19 महामारी से सबक़ सीखकर, खाद्य सुरक्षा का दायरा बढ़ाना चाहिये, ताकि भविष्य में भुखमरी की महामारी से बचा जा सके. 

वर्ष 2020 ख़त्म होते-होते भी, मानवता के सामने भुखमरी की महामारी मुँह बाएँ खड़ी है. यह स्थिति काफ़ी हद तक कोरोनवायरस महामारी का परिणाम है और जो हमारे साथ अगले वर्ष भी रहने वाली है.

कोविड-19 स्वास्थ्य संकट के रूप में शुरू हुआ और इसने तेज़ी से पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया. इससे रोज़मर्रा के जीवन के हर पहलू, समुदाय के प्रत्येक पहलू, राष्ट्र की अर्थव्यवस्था और दशकों में अर्जित सामाजिक और आर्थिक लाभों को नष्ट कर दिया.

यद्यपि फिलहाल सभी का ध्यान चिकित्सा पर केन्द्रित है - विशेष रूप से टीका विकसित करने और उस तक समान पहुँच सुनिश्चित करने पर – लेकिन उन लाखों लोगों की बुनियादी ज़रूरतों पर भी अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है, जो ग़रीबी से जूझ रहे हैं, संघर्षभरे क्षेत्रों में हैं या फिर जलवायु संकट के कारण विस्थापित हो गए हैं और हाशिये पर धकेले जाने के जोखिम में हैं.

भोजन तक पहुँच और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना कोविड-19 की जवाबी कार्रवाई के केन्द्र में होना बेहद आवश्यक है. तालाबन्दी लागू होने के कारण, लोग पहले ही, आजीविका में व्यवधान से भुखमरी के कगार पर पहुँच चुके हैं.

महामारी ने सभी के लिये जीवन को कठिन बना दिया है, लेकिन पहले से ही भुखमरी का दंश झेल रहे, कमज़ोर समुदायों और खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे लोगों के लिये हालात और बदतर हो गए हैं.

नोबेल शान्ति पुरस्कार

हाल ही में रोम में आयोजित नोबेल शान्ति पुरस्कार स्वीकृति समारोह में, विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) के प्रमुख ने कहा था कि लाखों लोग भुखमरी की ओर बढ़ रहे थे और ‘भुखमरी की महामारी’ को रोकने के लिये तत्काल कार्रवाई किया जाना आवश्यक है.

विश्व खाद्य कार्यटक्रम के कार्यकारी निदेशक, डेविड बीज़ली ने कहा,  “शायद हम आधुनिक इतिहास के सबसे विडम्बनापूर्ण क्षण में खड़े हैं. एक तरफ़ - अत्यधिक ग़रीबी ख़त्म करने के लिये बड़े पैमाने पर संघर्ष में सफलता मिलने के बावजूद, आज भी, हमारे लगभग 27 करोड़ पड़ोसी भुखमरी के कगार पर हैं. यह संख्या पूरे पश्चिमी यूरोप की जनसंख्या से भी अधिक है.” 

दूसरी ओर, आज हमारी दुनिया में 400 ट्र्लियन डॉलर की दौलत व सम्पदा मौजूद है. यहाँ तक कि जब कोविड महामारी सबसे उठान पर थी, केवल 90 दिनों में, अतिरिक्त 2.7 ट्रिलियन डॉलर की अतिरिक्त धनराशि इकट्ठी हो गई. जबकि 3 करोड़ लोगों को अकाल से बचाने के लिये हमें केवल 5 अरब डॉलर की आवश्यकता होगी.” 

संघर्ष-प्रभावित क्षेत्रों में शान्ति बहाली के प्रयासों के लिये बेहतर हालात स्थापित करने और भुखमरी को युद्ध और संघर्ष के हथियार के रूप में इस्तेमाल करने से रोकने के प्रयासों के लिये, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को 2020 नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

सामूहिक प्रतिक्रिया के लिये साझेदारी

चूँकि कोविड-19 ने नए जनसंख्या समूहों को भुखमरी के हालात में धकेल दिया है, इसलिये विश्व के हर हिस्से में सामाजिक सुरक्षा और मानवीय सहायता से वंचित विभिन्न संवेदनशील समूहों की मदद करने के लिये नई साझेदारी विकसित की जा रही हैं.

विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) और दो बार नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित, यूएन शरणार्थी एजेन्सी (UNHCR), प्रत्येक दिन, कोविड-19 के दौरान दुनिया भर में आपात स्थितियों से निपटने में लगी है.

यमन के अल मज़रक़ शिविर में कुछ विस्थापित लड़कियाँ. उनकी माताओं ने उनके लिये दाल रोटी की साधारण ख़ुराक तैयार की है.
WFP/Abeer Etefa
यमन के अल मज़रक़ शिविर में कुछ विस्थापित लड़कियाँ. उनकी माताओं ने उनके लिये दाल रोटी की साधारण ख़ुराक तैयार की है.

ये एजेंसियाँ सुनिश्चित करते हैं कि दुनिया भर में शरणार्थी और आन्तरिक रूप से विस्थापित लोगों के शिविरों समेत सभी लोगों तक, जीवन की बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने वाली चीज़ें पहुँच सकें.

दोनों एजेंसियाँ, भोजन और पानी उपलब्ध कराने और सुरक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करने या भुखमरी के मूल कारणों को दूर करने के अलावा, समुदायों में लचीलापन व मज़बूती लाने पर भी काम करती हैं, ताकि लोगों को, उनके परिवारों की बुनियादी ज़रूरतें पूरा करने के लिये सशक्त किया जा सके और कोई भी पीछे न रह जाए.

हालाँकि ग्रामीण और शहरी दोनों तरह की आबादी महामारी से प्रभावित हुई हैं, लेकिन इस संकट से शहरी क्षेत्रों में उसके असमान प्रभाव को उजागर किया है. यूएनएचसीआर और डब्ल्यूएफ़पी ने शहरी क्षेत्रों का लक्ष्य बढ़ाकर राजधानियों और अन्य शहरी केन्द्रों में प्रत्यक्ष सहायता प्रदान की है.

भारत जैसे कुछ देशों में, यूएनएचसीआर ने शरणार्थियों और इन शहरी केन्द्रों में स्थानीय समुदायों को प्रत्यक्ष सहायता प्रदान की है, जबकि डब्ल्यूएफ़पी ने मध्य अमेरिका जैसे देशों की शहरी आबादी के लिये खाद्य सहायता में बढ़ोत्तरी की है. विभिन्न सिविल सोसायटी संगठन और दुनिया भर के स्थानीय अधिकारी, हर सम्भव स्थानों पर मेजबान समुदाय के साथ, शरणार्थियों व आश्रय चाहने वाले लोगों की मदद में लगे हैं.

कोई भी पीछे न छूट जाए

हमारे कार्यकाल के दौरान, चाहे अफ्रीका हो, एशिया, अमेरिका या योरोप, शहरी या दुनिया भर के शिविरों में शरणार्थी या आन्तरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति – इन सभी स्थानों पर हमें ऐसी माताएँ मिलीं जिन्हें अपने भूखे बच्चों और परिवारों के बारे में अपनी चिन्ताएँ व्यक्त की हैं.

इनमें भी सबसे अधिक नुक़सान उन लोगों को उठाना पड़ा था, जो संघर्ष या जलवायु-प्रेरित विस्थापन के कारण अपने घरों से भागने के लिये मजबूर हुए थे, वो भी केवल पीठ पर अपने बच्चों और थोड़ा सा सामान लेकर. सुरक्षित जगहों पर पहुँचने के लिये कई दिनों तक पैदल चलने के कारण, अपने बच्चों के लिये माताओं के स्तनों का दूध भी सूख गया था. रात्रि में शान्त आकाश के बीच उनके भूखे बच्चों के क्रन्दन से उनकी आत्मा तक घायल हो चुकी थी. सुरक्षित स्थानों तक पहुँचने तक, घास, पत्ते और पानी ही उनका भोजन थे. सुरक्षित स्थान यानि कोई शरणार्थी या फिर अगर रास्ते में कोई ऐसे लोग मिल जाएँ, जो उनके बच्चों की भूख शान्त करने के लिये गर्म सूप या पतली दाल की कटोरी देकर मदद करे.

भुखमरी से निपटने के लिये कोविड-19 आपातकालीन कार्य अब पहले से कहीं अधिक ज़रूरी हो गया है; कारण यह है कि मौजूदा स्वास्थ्य संकट के मद्देनज़र, पौष्टिक भोजन की उपलब्धता ही महामारी से बचाव का सबसे बेहतर तरीक़ा है. इसके अलावा, जो लोग मुख्यधारा के खाद्य सुरक्षा दायरे से बाहर हैं, भूख और खाद्य सुरक्षा प्रतिक्रिया कार्रवाई में उनका समावेश बहुत आवश्यक है. मतलब ये कि ‘किसी को भी पीछे न छोड़ने’ के नारे के निष्पादन पर अटूट ध्यान देना होगा.

समावेश और खाद्य सुरक्षा जाल

भारत सरकार की समयोचित और व्यापक प्रतिक्रिया व देश की विशाल सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से दुनिया के सबसे बड़े खाद्य सुरक्षा नैटवर्क का निर्माण – इससे स्पष्ट होता है कि खाद्य संकट को टालने के लिये, संवेदनशीलता की समझ और प्रवासियों की आवश्यकताओं को समझकर कैसे पात्रता का मानदण्ड निर्धारित किया जा सकता है.

मेडागास्कर के दक्षिणी हिस्से में लगातार सूखा पड़ने, कोविड-19 और अशान्ति के हालात ने, पहले से ही मौजूद खाद्य असुरक्षा और कुपोषण के हालात को और नाज़ुक बना दिया है.
WFP/Tsiory Andriantsoarana
मेडागास्कर के दक्षिणी हिस्से में लगातार सूखा पड़ने, कोविड-19 और अशान्ति के हालात ने, पहले से ही मौजूद खाद्य असुरक्षा और कुपोषण के हालात को और नाज़ुक बना दिया है.

महामारी की प्रतिक्रिया ने सुरक्षा जाल और खाद्य प्रणालियों पर काम जारी रखने की आवश्यकता को रेखांकित किया है. सरकारों, समुदाय, निजी क्षेत्र, नागरिक समाज और व्यक्तियों द्वारा सामूहिक प्रतिक्रिया - जो विशेष रूप से भोजन और पोषण सुरक्षा प्रदान करने में लोगों की मदद करने के लिये है - उससे दक्षता, समन्वय, आपूर्ति श्रृँखला प्रबन्धन और नवाचार के प्रेरक उदाहरण भी सामने आए हैं, जिनमें डिजिटल प्रौद्योगिकी के भी अनगिनत उदाहरण शामिल हैं.

अगर हम 2030 तक दुनिया को भुखमरी से मुक्त देखना चाहते हैं और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के वादे पूरे करना चाहते हैं, तो सरकारों, नागरिकों, नागरिक समाज संगठनों और निजी क्षेत्रों को निवेश, नवाचार व सभी के लिये स्थाई समाधान बनाने के मक़सद से मिलकर काम करना होगा.

हम अपने समय की सबसे बड़ी चुनौती से निपटने के लिये वैश्विक स्तर पर युद्ध का सामना कर रहे हैं. हमें अब बेहतर तरीक़े से निर्माण करने और हर जगह जीवन व समुदायों में बदलाव लाने के लिये कार्य करने चाहिये, ख़ासतौर पर उन लोगों के लिये जो पीछे छूट जाते हैं और जीवन रक्षक सेवाओं तक पहुँच न होने के कारण भूखे पेट सोने को मजबूर हैं. उनकी ज़रूरतों को पूरा करने में असफल रहने से भुखमरी की ऐसी महामारी पैदा हो सकती है, जिसके सामने कोविड-19 का असर भी बौना प्रतीत होगा.

जब हम सोचते हैं कि इसमें हम सभी कैसे व्यक्तिगत तौर पर भूमिका निभाकर बदलाव ला सकते हैं, तो यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भुखमरी को समाप्त करने के लिये ‘सभी हाथों’ की आवश्यकता होगी - तभी यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि कोई भी पीछे न रह जाए.