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ऑटिज़्म: महामारी से उबरने के प्रयास, समावेश बढ़ाने का एक मौक़ा

ऑटिज़्म के साथ रह रहे लोगों के अधिकार सुनिश्चित करने के लिये लम्बे समय से प्रयास जारी हैं.
© UNICEF/Rehab El-Dalil
ऑटिज़्म के साथ रह रहे लोगों के अधिकार सुनिश्चित करने के लिये लम्बे समय से प्रयास जारी हैं.

ऑटिज़्म: महामारी से उबरने के प्रयास, समावेश बढ़ाने का एक मौक़ा

स्वास्थ्य

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने शुक्रवार, 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस पर कहा है कि ऐसे में जबकि तमाम देश कोविड-19 महामारी से बाहर आने के लिये जद्दोजहद कर रहे हैं तो, एक ऐसी समावेशी व सभी के लिये सुलभ दुनिया बनाना बहुत अहम है जिसमें तमाम लोगों के योगदान को पहचान व मान्यता मिले, जिनमें विकलांगता वाले लोगों को पहचान भी शामिल हो.

यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने कह है कि स्वास्थ्य संकट ने नई तरह की बाधाएँ और चुनौतियाँ उत्पन्न कर दी हैं.

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लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था में फिर से जान फूँकने के प्रयासों में, एक अवसर भी नज़र आता है कि कार्यस्थलों की प्रकृति के बारे में नए सिरे से सोचा जाएँ जहाँ विविधता, समावेश और समता, को वास्तविकता बनाया जाए.

उन्होंने कहा, “आर्थिक पुनर्बहाली हमारी शिक्षा व प्रशिक्षण प्रणालियों के बारे में भी नए सिरे से सोचने का एक मौक़ा है, ये सुनिश्चित करने के लिये कि ऑटिज़्म की स्थिति वाले व्यक्तियों को भी अपनी क्षमताओं और सम्भावनाओं को हक़ीक़त में बदलने के अवसर मिल सकें.”

पुरानी आदतों को बदलना अहम

एंतोनियो गुटेरेश ने ज़ोर देकर कहा कि पुरानी आदतों को बदलना बहुत ज़रूरी होगा. ऑटिज़्म की स्थिति वाले व्यक्तियों को समानता के आधार पर गरिमामय कामकाज उपलब्ध कराने के लिये, अनुकूल वातावरण बनाना होगा जहाँ कुछ हद तक लचीलापन स्वीकार्य हो.

उन्होंने कहा, “टिकाऊ विकास के लिये 2030 एजेण्डा की प्राप्ति के प्रयासो में, सही मायने में, किसी को भी पीछे ना छूटने देने के लिये, हमें, विकलांगता वाले व्यक्तियों के अधिकारों को एक वास्तविकता बनाना होगा, इनमें ऑटिज़्म स्थिति वाले व्यक्ति भी शामिल हैं. इसमें सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन में उनकी पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करना भी शामिल है.”

“आइये, एकजुटता के साथ, विकलांगता वाले व्यक्तियों और उनके प्रतिनिधिक संगठनों के साथ मिलकर काम करें, ताकि बेहतर पुनर्बहाली और सभी के लिए एक बेहतर दुनिया बनाने के लिये, अनुकूल व नवाचार वाले समाधान खोजे जा सकें.”

कोविड-19 से विषमताएँ बदतर हुईं

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार औसतन 160 में से एक बच्चे को ऑटिज़्म की दिमाग़ी स्थिति (ASD) होती है. एएसडी बचपन में ही शुरू हो जाती है, और ये किशोरावस्था और वयस्क उम्र में भी जारी रहती है. 

संगठन का कहना है कि इस स्थिति वाले बच्चों के स्वास्थ्य कल्याण और विकास की सम्भावनाओं को साकार करने की ख़ातिर बचपन में ही प्रोत्साहन दिया जाना बहुत अहम है.

संगठन का ये भी कहना है कि एएसडी वाले बच्चों के विकास की निगरानी करना, मातृत्व व बाल स्वास्थ्य देखभार का ही एक नियमित हिस्सा बनाया जाना चाहिये.

एएसडी स्थिति वाले कुछ व्यक्ति स्वतन्त्र रूप से ज़िन्दगी जी पाते हैं, मगर कुछ अन्य को गम्भीर विकलांगता होती है और उन्हें जीवन भर देखभाल और सहायता की ज़रूरत होती है.

एएसडी वाले व्यक्तियों को भी अक्सर कलंक की मानसिकता व भेदभाव का निशाना बनाया जाता है, और उन्हें ज़रूरी स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, क़ानून के अन्तर्गत संरक्षण, और उनके समुदायों में भागीदारी व जुड़ाव से वंचित रखा जाता है जोकि अन्यायपूर्ण है. 

विश्व दिवस

विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस, हर वर्ष 2 अप्रैल को मनाया जाता है और यूएन महासभा ने इस अन्तरराष्ट्रीय दिवस की घोषणा, दिसम्बर 2007 में की थी. 

महासभा ने इस दिवस की घोषणा करते हुए कहा था, "अन्तरारष्ट्रीय सर्वसम्मत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये ये बहुत ज़रूरी है कि विकलांगता वाले सभी लोगों के मानवाधिकारों और बुनियादी स्वतन्त्रताओं को सम्भव बनाने के लिये पूर्ण प्रोत्साहन सुनिश्चित किया जाए.”  

यूएन महसभा ने ऑटिज़्म की स्थिति की बचपन में ही जाँच व उपयुक्त शोध और व्यक्ति की वृद्धि व विकास के लिये उपयुक्त इलाज की महत्ता को भी रेखांकित किया था.

साथ ही, ऑटिज़्म की स्थिति वाले बच्चों के बारे में, समाजों में जागरूकता बढ़ाने के लिये प्रयास करने का भी आहवान किया, जिसमें परिवारों के स्तर पर जागरूकता फैलाना भी शामिल हो.