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विकलांगों का समावेशन उनका 'बुनियादी मानवाधिकार'

माली में विकलांगों को साबुन और जूते बनाना सिखाया जा रहा है.
MINUSMA/Sylvain Liecht
माली में विकलांगों को साबुन और जूते बनाना सिखाया जा रहा है.

विकलांगों का समावेशन उनका 'बुनियादी मानवाधिकार'

एसडीजी

विकलांगता के शिकार लोगों के अधिकारों को वास्तविकता में अमल में लाना न्यायसंगत है और हमारे साझा भविष्य में व्यावहारिक निवेश भी है. विकलांग  व्यक्तियों के अधिकारों पर हुई संधि के वार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए यूएन महासचिव ने विकलांगों के समावेशन को टिकाऊ विकास एजेंडे की दृष्टि से भी अहम बताया.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के मुताबिक़ कामकाजी दुनिया से विकलांगों को बाहर रखने पर देशों को उनके सकल घरेलू उत्पाद में सात फ़ीसदी तक का नुक़सान हो सकता है.

यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने माना कि मानसिकताओं, क़ानूनों और नीतियों को बदलने के लिए अभी एक लंबा रास्ता तय करना है लेकिन विकलांगों के लिए अधिकारों, अवसरों और गरिमा को सुनिश्चित करने के लिए इस लक्ष्य की ओर बढ़ना बेहद ज़रूरी है.  

उन्होंने कहा कि विकलांगों का समावेशन सुनिश्चित किया जाना उनका एक बुनियादी मानवाधिकार है. “जब हम उन अधिकारों को सुनिश्चित करने की लड़ाई लड़ते हैं तो हम संयुक्त राष्ट्र चार्टर के मूलभूत मूल्यों और सिद्धांतों को कायम रखते हैं.”

महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि विकलांगों का समावेशन टिकाऊ विकास लक्ष्यों के 2030 एजेंडा के भी केंद्र में है. “जब हम विकलागों के रास्ते में आने वाली नीतियों, पूर्वाग्रहों और बाधाओं को हटाते हैं तो उसका लाभ पूरी दुनिया को मिलता है.”

समान अवसरों का अभाव

पिछले साल दिसंबर में पहली बार विकलांगता और विकास के विषय पर यूएन रिपोर्ट को जारी किया था. इसके ज़रिए तीन मुख्य चुनौतियों को रेखांकित किया गया: ग़रीबी का असंगत स्तर; शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, रोज़गार तक पहुंच न होना; निर्णय लेने की प्रक्रिया और राजनीति में हिस्सेदारी न होना.

महासचिव गुटेरेश ने भरोसा दिलाया कि सदस्य देशों, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली, नागरिक समाज संगठनों, विकलांगों के लिए काम करने वाले संगठनों, निजी क्षेत्र और शिक्षा जगत में सहयोग मज़बूत करने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे. उनका लक्ष्य समाज को सभी के लिए समावेशी, सुलभ और टिकाऊ बनाना है.  

विकलांगों, ख़ासकर महिलाओं और बच्चों के प्रति भेदभाव को रोकने और उन्हें अलग-थलग न होने देने के लिए और प्रयास किए जाने की आवश्यकता है.

“स्कूलों, स्वास्थ्य सेवाओं, कार्यस्थलों, मनोरंजन गतिविधियों, खेलकूद और जीवन के हर क्षेत्र में उनकी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए हमें बहुत कुछ किए जाने की ज़रूरत है.”

उन्होंने ध्यान दिलाया कि परिवहन, बुनियादी ढांचे और सूचना और संचार तकनीक से जुड़े क्षेत्र में कदम उठाने होंगे ताकि शहरों, ग्रामीण क्षेत्रों और समाजों को समावेशी बनाया जा सके.

महासचिव गुटेरेश ने सीरिया के अलेप्पो शहर से आई शरणार्थी नुजीन मुस्तफ़ा का ज़िक्र किया जो 20 साल की हैं और सेरेब्रल पाल्सी का शिकार होने की वजह से व्हीलचेयर पर हैं.

सुरक्षा परिषद में अपने अनुभवों को साझा करतीं सीरियाई शरणार्थी नुजीन मुस्तफ़ा.
UN Photo/Loey Felipe
सुरक्षा परिषद में अपने अनुभवों को साझा करतीं सीरियाई शरणार्थी नुजीन मुस्तफ़ा.

कुछ ही सप्ताह पहले नुजीन ने सुरक्षा परिषद को बताया था कि हिंसा के दौरान विकलांगता से पीड़ित लोगों के जीवन कितना कठिन होता है – हर दिन सामने आने वाली मुश्किलें, चुनौतियां और निरंतर भय का एहसास कि उनकी विकलांगता की वजह से उनके परिवार को बमबारी से बचने में देर न हो जाए.

नुजीन ने अपनी अपील में कहा था कि ‘नो वन लेफ़्ट बिहाइंड’ या ‘कोई भी पीछे न छूटने पाए’ सिर्फ़ शब्द नहीं होने चाहिए और जीवन के हर क्षेत्र में विकलांगों का ख़्याल रखा जाना चाहिए.

यूएन प्रमुख ने बताया कि इसी दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं और ‘आम लोगों की सुरक्षा’ से जुड़ी पहली रिपोर्ट में पिछले एक दशक में पहली बार विकलांगता के शिकार लोगों की स्थिति पर भी जानकारी दी गई है.

महासचिव गुटेरेश ने संधि का समर्थन करने वाले सभी सदस्य देशों और उनके अंतरराष्ट्रीय साझेदारों से आग्रह किया कि संधि के बुनियादी संकल्पों को पूरा करने के लिए और महत्वाकांक्षी होने की आवश्यकता है.

इन प्रयासों में संयुक्त राष्ट्र को उदाहरण प्रस्तुत करना होगा लेकिन फ़िलहाल यूएन मुख्यालय से लेकर विभिन्न देशों में स्थित यूएन कार्यालयों में इस संबंध में कई कमियां हैं और अभी बेहतरी की काफ़ी गुंजाईश है. इसके मद्देनज़र महासचिव गुटेरेश ने संयुक्त राष्ट्र विकलांगता समावेशन रणनीति को शुरू करने की घोषणा की है.

उन्होंने कहा कि यह शब्दों की रणनीति नहीं है बल्कि कार्रवाई की रणनीति है जिसके ज़रिए संयुक्त राष्ट्र प्रदर्शन के मानकों को ऊपर उठाने का प्रयास करेगा.

“मेरी उम्मीद है कि विकलांगता के शिकार लोग – विशेषकर महिलाएं और बच्चे – एक दिन ऐसी दुनिया में रहें जहां उनका सम्मान, रक्षा और मूल्य हो.”