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भारत में विकलांग बच्चों की शिक्षा में अब भी अनेक बाधाएँ - यूनेस्को

यूनेस्को की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार भारत में विकलांग बच्चों की शिक्षा के रास्ते में अब भी बहुत सी अड़चने हैं.
UNESCO – India
यूनेस्को की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार भारत में विकलांग बच्चों की शिक्षा के रास्ते में अब भी बहुत सी अड़चने हैं.

भारत में विकलांग बच्चों की शिक्षा में अब भी अनेक बाधाएँ - यूनेस्को

संस्कृति और शिक्षा

संयुक्त राष्ट्र  शैक्षणिक, वैज्ञानिक व सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने भारत में विकलांग बच्चों की शिक्षा स्थिति के बारे में एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि भारत में समावेशी शिक्षा यानी सभी के लिए समान अवसरों वाली शिक्षा प्रणाली को लागू करना जटिल कार्य है और विभिन्न संदर्भों में बच्चों और उनके परिवारों की विविध आवश्यकताओं की एक अच्छी समझ विकसित करने की आवश्यकता है.

नई दिल्ली में बुधवार, तीन जुलाई को जारी इस रिपोर्ट में विकलांग बच्चों के शिक्षा के अधिकार के संबंध में उपलब्धियों और चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया.

'2019 स्टेट ऑफ द एजुकेशन रिपोर्ट फॉर इंडिया: चिल्ड्रन्स विद डिसेबिलिटी' नामक ये रिपोर्ट यूनेस्को की भारत शाखा द्वारा प्रकाशित ये अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है और यह हर वर्ष प्रकाशित करने के इरादे से शुरू की गई है.

भारत में विकलांग बच्चों को भी मुख्य धारा की शिक्षा व्यवस्था का हिस्सा बनाने के लिए माता-पिता, अभिभावक और शिक्षकों के नज़रिये में बदलाव बहुत ज़रूरी है.

इस संदर्भ के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेजों के व्यापक शोध के आधार पर तैयार यह रिपोर्ट विकलांग बच्चों की शिक्षा की वर्तमान स्थिति पर व्यापक और विस्तृत जानकारी प्रदान करती है और नीति-निर्माताओं के समक्ष दस प्रमुख सुझाव प्रस्तुत करती है.

यूनेस्को नई दिल्ली के निदेशक एरिक फाल्ट ने इस अवसर पर कहा, ‘’विकलांग बच्चों की शिक्षा के लिए भारत में पहले ही बहुत कुछ किया जा चुका है, लेकिन इस रिपोर्ट के साथ हम कई ठोस क़दम उठाने का सुझाव दे रहे हैं, जिससे कई और क़दम आगे बढ़ सकें और लगभग 80 लाख भारतीय विकलांग बच्चों को शिक्षा में उनकी वाजिब हिस्सेदारी मिल सके’.

भारत के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने इस अवसर पर अपने संदेश में आशा व्यक्त की कि “यूनेस्को की स्टेट ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2019 से इस संबंध में हमारी समझ बढ़ेगी और इससे शिक्षा प्रणाली को विकलांग विकलांग बच्चों की सीखने की ज़रूरत को बेहतर जवाबदेही देने में मदद मिलेगी.”

“इसने हमें किसी को भी पीछे न छोड़ने के अपने सामूहिक उद्देश्य की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति करने और सभी बच्चों और युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए समान अवसर प्रदान करने में सक्षम बनाया."

नज़रिए में बदलाव ज़रूरी

भारत ने एक मज़बूत क़ानूनी ढांचा और कार्यक्रमों तथा योजनाओं को एक श्रेणी में डालने के मामले में काफ़ी प्रगति की है जिसने स्कूलों में विकलांग बच्चों की नामांकन संख्या में सुधार किया है.

हालांकि एजेंडा 2030 के लक्ष्यों को और अधिक, विशेष रूप से टिकाऊ विकास लक्ष्य संख्या - 4 को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक बच्चे के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के वास्ते और ज़्यादा उपायों करने की आवश्यकता है.

वर्तमान में 5 वर्ष की आयु के विकलांग बच्चों में से तीन-चौथाई और 5 से 19 वर्ष की उम्र के एक-चौथाई बच्चे किसी भी शैक्षणिक संस्थान में नहीं जाते हैं. स्कूल में दाख़िला लेने वाले बच्चों की संख्या स्कूलिंग के प्रत्येक क्रमिक स्तर के साथ काफ़ी कम हो जाती है.

स्कूलों में विकलांग लड़कों की तुलना में विकलांग लड़कियों की संख्या कम देखी गई है.

महत्वपूर्ण कमियां लगातार जारी हैं, भले ही सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों ने बड़ी संख्या में विकलांग बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिलाया है.

उदाहरण के लिए, सहायक तकनीकों के क्षेत्र में और अधिक काम करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से डिजिटल अंतर को एक-दूसरे से जोड़ने और समान अवसरों संबंधी चिंताओं पर क़ाबू पाने पर ध्यान दिया गया है.

अच्छे कार्य के एक उदाहरण के रूप में, हाल ही में, पूर्वोत्तर में दो-वर्षीय अनुसंधान-सह-प्रलेखन परियोजना में, क्षेत्र में काम करने वाली सांकेतिक भाषाओं को 'एनईएसएल साइन बैंक' नामक वेब-आधारित अनुप्रयोग में संकलित किया गया था.

सुलभ संसाधनों की ज़रूरत

यह एक ऑनलाइन निशुल्क शैक्षणिक संसाधन है जिसमें बधिर समुदाय द्वारा उपयोग की जाने वाली सांकेतिक भाषाओं के प्रकारों के बारे में जानकारी शामिल है.

वर्तमान में एप्लिकेशन में 3000 शब्दों के डेटा शामिल है और इसमें डेटाबेस को और अधिक बढ़ाने की क्षमता है.

सरकारी निकायों ने विकलांग बच्चों के लिए संसाधनों को सुलभ बनाने के लिए कई अन्य पहल की हैं.

राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने बच्चों के लिए बरखा - ग्रेडेड रीडिंग सीरीज़ बनाई, जो सीखने के यूनिवर्सल डिज़ायन की संभावनाओं पर प्रकाश डालती है.

एनसीईआरटी ने प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर के शिक्षकों के लिए 'विशेष जरूरतों वाले बच्चों को शामिल करने' पर दो मैनुअल विकसित किए हैं.

कई राज्य उन्हें व्यापक रूप से पाठ्यक्रम अनुकूलन की आवश्यकता को समझने के लिए उपयोग कर रहे हैं, जहां विकलांग बच्चे समावेशी कक्षाओं में अन्य बच्चों के साथ अध्ययन करते हैं.

यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार, समावेशी शिक्षा के लक्ष्य को पूरा करने के लिए मुख्य धारा की शिक्षा में विकलांग बच्चों सहित माता-पिता और शिक्षकों का रवैया भी महत्वपूर्ण है.

समावेशी प्रथाओं के विकास के लिए लचीले पाठ्यक्रम और उपयुक्त संसाधनों की उपलब्धता की आवश्यकता होती है.

पाठ्यक्रम को विकसित करने के लिए पाठ्यक्रम डिजायन हेतु अलग-अलग रूपरेखाएं अपनाई जा सकती हैं जो सार्वभौमिक और अनुकूलन के लिए उपयुक्त हैं.

भौतिक बुनियादी ढांचे की उपलब्धता, स्कूल में प्रक्रियाएं, सहायक और आईसीटी प्रौद्योगिकी एवं उपकरण भी आवश्यक संसाधन हैं.

यूनेस्को उम्मीद जताई है कि रिपोर्ट उन नीतियों और कार्यक्रमों को बढ़ाने और प्रभावित करने के लिए एक संदर्भ साधन के रूप में काम करेगी जो विकलांग बच्चों के लिए समावेश और गुणवत्ता वाली शिक्षा के अवसरों की वकालत करते हैं.

रिपोर्ट की दस प्रमुख सिफ़ारिशें:

  • विकलांग बच्चों की शिक्षा की विशिष्ट समस्याओं को शामिल करते हुए, आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम के साथ बेहतर मिलान करने के लिए शिक्षा के अधिकार अधिनियम में संशोधन करना.
  • विकलांग बच्चों के सभी शिक्षा कार्यक्रमों के प्रभावी संकेंद्रण के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) के अंतर्गत एक समन्वय तंत्र स्थापित करना.
  • विकलांग बच्चों की सीखने की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए शिक्षा बजट में विशिष्ट और पर्याप्त वित्तीय आबंटन सुनिश्चित करना.
  • नियोजन, कार्यान्वयन और निगरानी हेतु डेटा प्रणालियों का सशक्तिकरण करना ताकि उन्हें मज़बूत, विश्वसनीय और उपयोगी बनाया जाए.
  • स्कूल पारिस्थितिकी प्रणालियों को समृद्ध बनाना और विकलांग बच्चों के समर्थन में सभी हितधारकों को शामिल करना.
  • विकलांग बच्चों की शिक्षा के लिए सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग का विस्तार करना.
  • हर बच्चे को मौक़ा देना और किसी भी बच्चे को विकलांगता के कारण पीछे न छोड़ना.
  • विविध शिक्षार्थियों को शामिल करने में सहायता करने वाली शिक्षण पद्धतियों में परिवर्तन.
  • रूढ़िवादिता से बाहर आना तथा कक्षा एवं उसके परे दोनों ही स्थानों पर विकलांग बच्चों के प्रति सकारात्मक निपटान का निर्माण करना.
  • विकलांग बच्चों के लाभ के लिए सरकार, नागरिक समाज, निजी क्षेत्र और स्थानीय समुदायों को शामिल करने वाली प्रभावी भागीदारी को प्रोत्साहन देना.

रिपोर्ट का सार टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान (TISS), मुंबई के शोधकर्ताओं की एक अनुभवी टीम ने यूनेस्को नई दिल्ली के मार्गदर्शन में विकसित किया है.